संविधान का अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उचित प्रतिबंधों का संतुलन
Himanshu Mishra
5 Nov 2024 7:36 PM IST
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में।
यह अनुच्छेद संविधान के भाग III में शामिल है और इसमें कई महत्वपूर्ण स्वतंत्रताएं दी गई हैं, जिनमें से अनुच्छेद 19(1)(a) विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
हालांकि, यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है; अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है, ताकि समाज में संतुलन बनाए रखा जा सके, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा हो सके।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression): अनुच्छेद 19(1)(a) का मूल
अनुच्छेद 19(1)(a) सभी भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक शासन के लिए एक मौलिक पहलू है। यह अधिकार केवल शब्दों या लेखन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कला, डिजिटल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए अभिव्यक्ति शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार को एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक बताया है, ताकि लोग अपने विचार व्यक्त कर सकें, सार्वजनिक चर्चा में भाग ले सकें, और नीतियों की आलोचना कर सकें।
अनुच्छेद 19(1)(a) के अर्थ को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मुख्य तत्वों का उल्लेख किया: चर्चा, समर्थन, और उत्तेजना। किसी विशेष विचार का चर्चा करना या समर्थन करना, भले ही वह विचार अलोकप्रिय क्यों न हो, अनुच्छेद 19(1)(a) के दायरे में आता है।
हालांकि, जब यह अभिव्यक्ति उत्तेजना (Incitement) की सीमा तक पहुँच जाती है - अर्थात्, ऐसा कार्य करने के लिए उकसाती है जिससे सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाए - तब अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंधों को लागू किया जा सकता है।
अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों (Reasonable Restrictions) का आधार
अनुच्छेद 19(2) के तहत राज्य को कुछ शर्तों के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध (Restrictions) लगाने की अनुमति दी गई है। ये शर्तें हैं:
1. भारत की संप्रभुता और अखंडता (Sovereignty and Integrity of India)
2. राज्य की सुरक्षा (Security of the State)
3. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Foreign States)
4. सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order)
5. शिष्टाचार और नैतिकता (Decency or Morality)
6. न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
7. मानहानि (Defamation)
8. अपराध के लिए उकसाना (Incitement to an Offence)
किसी भी प्रतिबंध की वैधता तभी होती है जब उसका सीधा और तर्कसंगत संबंध इनमें से किसी एक आधार से हो। यह प्रतिबंध मनमाना या अति व्यापक नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इन आधारों को कई ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से स्पष्ट किया है।
अनुच्छेद 19 की व्याख्या करने वाले ऐतिहासिक निर्णय (Landmark Judgments)
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19 की व्याख्या करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनमें विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे और सीमाओं पर प्रकाश डाला गया है:
1. रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950): इस शुरुआती फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और कहा कि यह स्वतंत्रता "सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव" है। इस मामले में, अदालत ने सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर लगाए गए प्रतिबंधों को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि ऐसे प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के दायरे से बाहर थे।
2. सकल पेपर्स (पी) लिमिटेड बनाम भारत संघ (1962): इस मामले में, अदालत ने कहा कि संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे केवल अनुच्छेद 19(2) में वर्णित सीमाओं के तहत ही सीमित किया जा सकता है।
3. बेनेट कोलमैन एंड कंपनी बनाम भारत संघ (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे "लोकतंत्र का संरक्षक" बताया। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक आलोचना लोकतंत्र के संस्थानों के सुचारु संचालन के लिए आवश्यक है।
4. एस. खुशबू बनाम कनियामल (2010): इस मामले में, अदालत ने असहमति को सहन करने के महत्व पर जोर दिया और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों के सामूहिक जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
अदालत ने अमेरिकी न्यायशास्त्र का भी उल्लेख किया, खासकर Schenck v. United States (1919) के "स्पष्ट और वर्तमान खतरे" (Clear and Present Danger) के परीक्षण का उपयोग किया, यह देखने के लिए कि क्या अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध तत्काल खतरे के आधार पर उचित है।
अनुच्छेद 19(2) के प्रतिबंधों को लागू करने के लिए परीक्षण (Tests)
भारतीय न्यायालयों ने यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न परीक्षण (Tests) लागू किए हैं कि अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाया गया प्रतिबंध उचित और वैध है:
1. स्पष्ट और वर्तमान खतरे का परीक्षण (Clear and Present Danger Test): यह परीक्षण, जो अमेरिकी न्यायशास्त्र से लिया गया है, कहता है कि अभिव्यक्ति को तभी रोका जा सकता है जब वह एक सीधा और तत्काल खतरा उत्पन्न करता हो। Schenck v. United States में जस्टिस होम्स ने कहा था कि "स्पष्ट और वर्तमान खतरे" की स्थिति में अभिव्यक्ति को सीमित किया जा सकता है।
2. निकटता परीक्षण (Proximity Test): यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि प्रतिबंध तभी वैध होता है जब अभिव्यक्ति और अनुमानित नुकसान के बीच एक नजदीकी संबंध हो।
3. उचितता का परीक्षण (Reasonableness Test): इस परीक्षण में न्यायालय यह देखता है कि प्रतिबंध संतुलित और आवश्यक है या नहीं। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि अभिव्यक्ति पर लगाया गया प्रतिबंध अत्यधिक न हो और न ही यह जनहित के लिए अत्यधिक हो।
अनुच्छेद 19 की न्यायिक व्याख्या (Judicial Analysis)
अनुच्छेद 19 के मामलों में, भारतीय न्यायपालिका अभिव्यक्ति के अधिकार और सामाजिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखती है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि स्वतंत्रता के नाम पर कोई भी अभिव्यक्ति जो सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, या शिष्टाचार को नुकसान पहुंचाए, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
सार्वजनिक व्यवस्था बनाम कानून और व्यवस्था का अंतर (Public Order vs Law and Order)
अनुच्छेद 19(2) के तहत "सार्वजनिक व्यवस्था" की व्याख्या करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इसे "कानून और व्यवस्था" से अलग किया है। सार्वजनिक व्यवस्था से तात्पर्य सामाजिक शांति बनाए रखने से है, जो व्यक्तिगत अपराधों से अधिक है।
उदाहरण के लिए, सुपरिटेंडेंट, सेंट्रल जेल, फतेहगढ़ बनाम राम मनोहर लोहिया (1960) में, अदालत ने कहा कि एक कानून जो अभिव्यक्ति को सीमित करता है, उसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के साथ एक निकट संबंध होना चाहिए।
विचारों के बाज़ार का महत्व (Marketplace of Ideas)
अदालत ने सार्वजनिक सूचना तक पहुंच के अधिकार को मान्यता दी और "विचारों के बाज़ार" को लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। इसका मतलब है कि समाज को विभिन्न प्रकार के विचारों और दृष्टिकोणों से लाभ होता है, जिससे नागरिक सूचित निर्णय ले सकते हैं।
प्रतिबंधों की उचितता और आनुपातिकता (Reasonableness and Proportionality of Restrictions)
यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिबंध मनमाने न हों, न्यायपालिका उचितता और आनुपातिकता का परीक्षण करती है। चिंतामन राव बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1950) में अदालत ने कहा कि किसी भी प्रतिबंध को कम से कम दखल देने वाला होना चाहिए ताकि उसके उद्देश्य को हासिल किया जा सके। मद्रास राज्य बनाम वी.जी. रो (1952) में न्यायालय ने प्रतिबंधों के प्रसार, प्रभावित अधिकार की प्रकृति, और इसकी संतुलनता जैसे कारकों पर विचार किया