हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

20 March 2022 5:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 मार्च, 2022 से 18 मार्च, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    मोटर दुर्घटना दावा - लापरवाह ड्रायवर का बयान चार्जशीट का हिस्सा नहीं बन सकता : गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि जब ड्रायवर की लापरवाही के कारण हुई मोटर दुर्घटना लिए एक ड्रायवर के खिलाफ कार्यवाही शुरू की जाती है तो उस ड्रायवर के बयान उसके खिलाफ दायर आरोप पत्र का हिस्सा नहीं हो सकते।

    जस्टिस उमेश त्रिवेदी ने कहा, " जिस वाहन ट्र्क से एक्सिडेंट हुआ, उसके ड्रायवर के खिलाफ दायर आरोप पत्र दायर होने पर उस पर अदालत में मुकदमा चलाया जाता है। यदि ड्रायवर के खिलाफ चार्जशीट दायर की जाती है और उक्त आपराधिक मामले में उसका अपना बयान दर्ज किया जाता है तो ऐसा बयान चार्जशीट का हिस्सा नहीं बन सकता, क्योंकि ट्रायल के दौरान उसके खिलाफ इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। "

    केस शीर्षक: रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम आशाबेन विक्रमभाई चौहान

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    भरण-पोषण आवेदन की तिथि से दिया जाता है, आदेश की तिथि से नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा और एक अन्य, (2021) 2 एससीसी 324 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा है कि भरण-पोषण को आवेदन की तारीख से अवार्ड किया जाना है, न कि आदेश की तारीख से।

    जस्टिस समित गोपाल की खंडपीठ ने एक फैसले में राय दी कि आदेश की तारीख से एक महिला और उसके नाबालिग बच्चों को भरण-पोषण देने का रीविजनल कोर्ट का आदेश अवैध है।

    केस शीर्षक - श्रीमती रेखा गौतम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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    फिल्म निर्माण इकाइयां पॉश एक्ट के तहत आंतरिक शिकायत समिति गठन करें: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, जिसे आमतौर पर POSH अधिनियम के रूप में जाना जाता है, के अनुसार फिल्म निर्माण इकाइयों की जिम्‍मेदारी है कि वे एक आंतरिक शिकायत समिति बनाएं।

    कोर्ट ने कहा कि अन्य संबंधित एसोसिएशन जैसे फिल्म एम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ केरल (एफईएफकेए), केरल फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स को आंतरिक शिकायत समिति बनाना चा‌हिए।

    केस टाइटल: वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य। [डब्ल्यूपी (सी) 34273/2018]

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    माता-पिता के गैर-भारतीय नागरिक होने के एकमात्र आधार पर बच्चे को पासपोर्ट देने से इनकार नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही नाबालिग के माता-पिता में से एक ने सहमति देने से इनकार कर दिया हो लेकिन पासपोर्ट जारीकर्ता प्राधिकारी को नाबालिग को पासपोर्ट जारी करने का अधिकार है, बशर्ते अपेक्षित फॉर्म जमा किया गया हो।

    मामले में एक नाबालिग लड़की की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने यह भी कहा कि नाबालिग बच्चे के पासपोर्ट में गैर-नागरिक को कानूनी अभिभावक के रूप में शामिल करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

    केस शीर्षक: चैतन्य एस नायर (नाबालिग) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने में विफलता के लिए राजनीतिक दलों को जिम्मेदार नहीं बना सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव घोषणापत्र में किए गए अपने वादों को पूरा करने में विफल रहने की स्थिति में राजनीतिक दलों को प्रवर्तन अधिकारियों के शिकंजे में लाने के लिए किसी भी क़ानून के तहत कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं है।

    जस्टिस दिनेश पाठक की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि चुनाव के भ्रष्ट आचरण को अपनाने के लिए एक पूरे के रूप में एक राजनीतिक दल को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता।

    केस का शीर्षक - खुर्शीदुर्रहमान एस. रहमान बनाम यूपी राज्य और अन्य

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    अगर आरोप या सबूत अपराध की स्थापना नहीं करते हैं तो एफआईआर और चार्जशीट रद्द की जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि अगर एफआईआर या शिकायत में लगाए गए आरोप या एकत्र किए गए साक्ष्य किसी अपराध के किए जाने का खुलासा नहीं करते हैं, तो प्राथमिकी और आरोपपत्र को रद्द किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करने या न करने का न्यायालय का निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों पर आधारित होगा। हालांकि, तथ्यों पर विचार करते हुए, अदालत प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता या अन्यथा के रूप में जांच शुरू नहीं कर सकती है।

    केस का शीर्षक: अभिषेक गुप्ता एंड अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एंड अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 111 के तहत आदेश में कार्यकारी मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के कारण होने चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 के तहत तैयार किए गए आदेश के दायरे और आवश्यक अवयवों को समझाया। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जब एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट, ऐसी जानकारी पर विचार करने पर कि किसी व्यक्ति द्वारा शांति भंग होने की संभावना है, संतुष्ट है कि उस व्यक्ति के खिलाफ संबंधित धाराओं (धारा 107 से 110) के तहत कार्रवाई करना आवश्यक है तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट को पहले उस व्यक्ति को धारा 111 सीआरपीसी के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करना होगा ताकि उसे आरोपों को नकारने या अपना स्पष्टीकरण देने का मौका दिया जा सके।

    केस का शीर्षक - टीटू बनाम यूपी राज्य एंड 2 अन्य

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    जब चेक पर किए सिग्नेचर को स्वीकार कर लिया गया है तो हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की नियुक्ति का सवाल ही नहीं उठता: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के इस विचार को बरकरार रखा कि जब किसी प्रश्न में शामिल चेक पर हस्ताक्षर को विशेष रूप से अस्वीकार नहीं किया गया है तो प्रश्न में चेक पर हैंड राइटिंग की तुलना करने के लिए हस्तलेखन विशेषज्ञ की नियुक्ति को कोई प्रश्न नहीं है।

    जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की खंडपीठ इन्‍हीं टिप्पणियों के साथ सुधीर कुमार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, सोहना, गुरुग्राम के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने निचली चेक पर राइटिंग के संबंध में अदालत से एक हस्त-लेखन विशेषज्ञ की नियुक्ति के बारे में एक विशेषज्ञ राय प्राप्त करने की मांग की थी।

    केस शीर्षक - सुधीर कुमार बनाम पदम सिंह

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    अभियोजन को खुद के सबूतों के आधार पर खड़ा होना चाहिए, घरेलू जांच में भी संदेह को सबूत की जगह नहीं लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष को खुद की सबूतों की बिनाह पर खड़ा होना चाहिए। घरेलू जांच में भी संदेह को सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने उक्त टिप्‍पण‌ियों के साथ उत्तर प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ शराब के नशे में अपने रसोइए के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए पारित बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया।

    अदालत ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता ने आरोपों का जवाब नहीं दिया था और जांच के दौरान तय की गई तारीखों पर पेश नहीं हुआ था, जांच अधिकारी का यह अनिवार्य कर्तव्य था कि वह यह देखे कि क्या आरोप उस साक्ष्य के आधार पर साबित हुए, जिसका नेतृत्व उसके द्वारा किया गया था।

    केस शीर्षक - संग्राम यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य

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    इच्छुक गवाह की गवाही की अतिरिक्त सावधानी और सतर्कता के साथ जांच की जानी चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा है कि मामले की सुनवाई के दौरान इच्छुक गवाहों की गवाही की अतिरिक्त सावधानी और सतर्कता से जांच की जानी चाहिए। हत्या के प्रयास के मामले में निचली अदालत के बरी करने के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दायर एक अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

    मामले में रुचि रखने वाले गवाहों के बयानों में गंभीर विसंगतियां पाते हुए, जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अक्टूबर 2014 के एएसजे, महोबा द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा, जिसके तहत धारा 387, 307/34, 452, 323/34 और 427 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए दो आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

    केस शीर्षक - नोखे लाल बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 125 अनुच्छेद 15 (3) के संवैधानिक दायरे में आता है; यह महिलाओं, बच्चों और कमजोर माता-पिता की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सामाजिक न्याय के लिए और विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों और बूढ़े और कमजोर माता-पिता की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है और यह प्रावधान अनुच्छेद 15 (3) के संवैधानिक दायरे में आता है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 द्वारा फिर से लागू किया गया है।

    न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि यह प्रावधान एक व्यक्ति के अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के प्राकृतिक और मौलिक कर्तव्य को तब तक प्रभावी बनाता है जब तक वे खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।

    केस का शीर्षक - मुकिस बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड 2 अन्य

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    देरी के आधार पर जीएसटी रिफंड आवेदन की अस्वीकृति अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि माल और सेवा कर (जीएसटी) के तहत रिफंड आवेदन को केवल देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने कहा, "हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता के रिफंड के आवेदन को प्रतिवादी केवल देरी के आधार पर खारिज नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है तो वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर रहा है।"

    केस शीर्षक: गामा गाना लिमिटेड बनाम भारत संघ

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    पवित्र कुरान में हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं, हिजाब ना पहनने पर इस्लाम का अस्तित्व समाप्त नहीं होता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिए फैसले में माना कि हिजाब इस्लाम की एक 'आवश्यक धार्मिक प्रथा' नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "पवित्र कुरान में मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या सिर का पहनावा अनिवार्य नहीं किया गया है"। कोर्ट ने यह भी कहा कि हिजाब के संबंध में सुरा में दिए निर्देश अनिवार्य नहीं हैं।

    कोर्ट ने कहा, "पवित्र कुरान में मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या सिर के पहनावे के संबंध में आदेश नहीं दिया गया है। हमारा मानना हैं कि सुराओं में जो कुछ भी कहा गया है, वे केवल निर्देश हैं, क्योंकि हिजाब ना पहनने के लिए किसी सजा या प्रयाश्‍चित के निर्देश का ना होना, आयजों की भाषाई संरचना इस दृष्टिकोण का समर्थन करती है।"

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    अंडरपैंट पहनी महिला की वजाइना या यूरेथ्रा के ऊपर पुरुष अंग रगड़ना रेप माना जाएगा: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट (Meghalaya High Court) ने कहा कि अंडरपैंट पहनी महिला की वजाइना या यूरेथ्रा के ऊपर पुरुष अंग रगड़ना आईपीसी की धारा 375 (बी) के तहत पेनिट्रेशन के समान माना जाएगा। हाईकोर्ट के खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और डब्ल्यू डिएंगदोह शामिल थे।

    केस का शीर्षक: चीयरफुलसन स्नैतांग बनाम मेघालय राज्य

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    जहां संपत्ति का टाइटल विवाद है, वहां घोषणा के लिए सूट दायर किया जाना चाहिए, स्थायी निषेधाज्ञा के लिए नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के एक मामले में कहा कि जहां संपत्ति का टाइटल विवाद है, संबंधित पक्षों को घोषणा के लिए एक सूट दायर करना चाहिए, स्थायी निषेधाज्ञा के लिए नहीं।

    न्यायमूर्ति सुब्बा रेड्डी सत्ती ने कहा, "यद्यपि शीर्षक का प्रश्न आकस्मिक रूप से निषेधाज्ञा के लिए दायर एक मुकदमे में जाएगा, जब विरोधी पक्ष पंजीकृत दस्तावेजों के तहत अनुसूचित संपत्ति का दावा कर रहे हैं, वादी को घोषणा के लिए मुकदमा दायर करना चाहिए था। स्थायी निषेधाज्ञा के लिए सूट दायर करके टाइटल का जटिल प्रश्न निर्धारित नहीं किया जा सकता है। न्यायालय केवल मुकदमा दायर करने की तारीख पर वादी के कब्जे से संबंधित होगा।"

    केस का शीर्षक: कारुकोला वासुदेवराव बनाम कर्री सुशीलम्मा एंड अन्य।

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    हल्का मोटर वाहन लाइसेंस रखने वाले व्यक्ति द्वारा भारी माल वाहन चलाने पर बीमा कंपनी मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं : कर्नाटक कोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि हल्का मोटर वाहन लाइसेंस रखने वाले व्यक्ति द्वारा भारी माल वाहन चलाने पर बीमा कंपनी मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगी।

    जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की एकल न्यायाधीश पीठ ने टिपर लॉरी के मालिक महंतेश द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा, "विचाराधीन वाहन जिसे भारी माल वाहन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2(16) के अर्थ के अंतर्गत आता है क्योंकि सकल वाहन का वजन निर्विवाद रूप से 12000 किलोग्राम से अधिक है। परिस्थितियों में, ट्रिब्यूनल यह मानते हुए पूरी तरह से उचित था कि उल्लंघन करने वाले वाहन का इस्तेमाल पॉलिसी के नियमों और शर्तों के उल्लंघन में किया गया था और इसलिए उल्लंघन करने वाले वाहन का बीमाकर्ता मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है ।"

    केस: महंतेश बनाम नेथरवती

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    तहसीलदार द्वारा न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम के तहत पति को अनुचित लाभ देकर पद का कथित रूप से दुरुपयोग किया गया, सुरक्षा के हकदार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में कहा कि एक तहसीलदार ने अपने पति के साथ-साथ अपने नौकर को अनुचित लाभ देकर अपने पद का दुरुपयोग किया है। वे न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम, 1985 के तहत सुरक्षा के हकदार नहीं हैं।

    मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति वी.के. शुक्ला एक आपराधिक पुनरीक्षण से निपट रहे थे, जिसमें आवेदक निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती दे रही थी, जिसके तहत उसे न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम, 1985 के तहत सुरक्षा से वंचित कर दिया गया था।

    केस का शीर्षक: दीपाली जाधव बनाम मध्य प्रदेश एंड अन्य राज्य।

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    एड- हॉक कर्मचारी रोजगार के दौरान होने वाली गर्भावस्था के लिए अनुबंध की अवधि से परे मातृत्व लाभ की हकदार होगी : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुबंध के आधार पर कार्यरत महिलाओं की सहायता सहायता से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि एक तदर्थ कर्मचारी मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत अनुबंध, रोजगार के कार्यकाल के दौरान होने वाली गर्भावस्था के लिए अनुबंध की अवधि से परे मातृत्व लाभ की हकदार होगी।

    चूंकि मातृत्व लाभ अधिनियम का उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद महिला को लाभ देना है, हाईकोर्ट ने कहा कि इसलिए, लाभों को अनुबंध की अवधि से नहीं जोड़ा जा सकता है।

    टाइटल: डॉ बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल सरकार, एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य बनाम डॉ कृति मेहरोत्रा

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    ''सीआरपीसी की धारा 167 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए डिटेंशन अधिकृत करने से पहले पूरी तरह संतुष्ट हों'': आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सभी न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के सभी न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए डिटेंशन को अधिकृत करने से पहले वह अपनी संतुष्टि दर्ज करें और उन्हें मामले के तथ्यों को प्राप्त करने में निष्पक्ष रूप से अपने दिमाग को लगाना चाहिए और एक तर्कयुक्त आदेश पारित करना चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ए.वी शेषा साई की खंडपीठ ने भी यह भी स्पष्ट किया है कि इस संबंध में किसी भी लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा और संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट हाईकोर्ट की तरफ से की जाने वाली विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।

    केस का शीर्षक -बोलिनेनी राजगोपाल नायडू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य व अन्य

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