पवित्र कुरान में हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं, हिजाब ना पहनने पर इस्लाम का अस्तित्व समाप्त नहीं होता: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 March 2022 7:01 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिए फैसले में माना कि हिजाब इस्लाम की एक 'आवश्यक धार्मिक प्रथा' नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "पवित्र कुरान में मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या सिर का पहनावा अनिवार्य नहीं किया गया है"।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि हिजाब के संबंध में सुरा में दिए निर्देश अनिवार्य नहीं हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "पवित्र कुरान में मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या सिर के पहनावे के संबंध में आदेश नहीं दिया गया है। हमारा मानना हैं कि सुराओं में जो कुछ भी कहा गया है, वे केवल निर्देश हैं, क्योंकि हिजाब ना पहनने के लिए किसी सजा या प्रयाश्‍चित के निर्देश का ना होना, आयजों की भाषाई संरचना इस दृष्टिकोण का समर्थन करती है।"

    चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की फुल बेंच ने 129 पेज के फैसले में अब्दुल्ला यूसुफ अली की 'द होली कुरान: टेक्स्ट, ट्रांसलेशन एंड कमेंट्री' (गुडवर्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित; 2019 पुनर्मुद्रण) पर भरोसा किया। पीठ ने विभिन्न सुराओं का उल्लेख किया और कहा, "यह शब्द (हिजाब), जैसा कि कुरान में शामिल नहीं है, विवादित नहीं हो सकता है, हालांकि टिप्पणीकारों ने इसे शामिल किया हो सकता है।"

    आयत 53, फुटनोट 3760 , (संदर्भित पवित्र कुरान) को उद्धृत करने के बाद कोर्ट ने कहा, "... उन्ही शब्दों पर ध्यान दें कि आम तौर पर मुस्लिम महिलाओं के लिए किसी भी ओट या हिजाब का उल्लेख नहीं किया जाता है, हालांकि एक पर्दे का उल्लेख केवल छाती को ढंकने के लिए किया जाता है, और पहनावे में में शीलता का उल्लेख किया जाता है..."।

    पीठ ने कहा, "इस प्रकार, इस दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए किताबों में पर्याप्त आंतरिक सामग्री है कि हिजाब पहनना केवल अनुशंसात्मक है, यदि ऐसा है तो।"

    हिजाब सबसे अच्छा सांस्कृतिक अभ्यास

    कोर्ट ने नोट किया कि किसी धर्म के अनिवार्य हिस्से को प्राथमिक रूप से उस धर्म के सिद्धांत के संदर्भ में ही पता लगाया जाए। पीठ ने सूरा (xxxiii), आयत 59 पर भरोसा करने वाले याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि हिजाब पहनना इस्लामी आस्था की एक अनिवार्य आवश्यकता है।

    कोर्ट ने उक्त सुरा के ऐतिहासिक पहलुओं पर विचार किया और कहा कि हिजाब एक सांस्कृतिक प्रथा हो सकती है न कि धार्मिक।

    "हिजाब पहनने की अनुशंशा महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में और सार्वजनिक क्षेत्र तक उनकी सुरक्षित पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई है। अधिक से अधिक इस वस्‍त्र को पहनने की प्रथा का संस्कृति के साथ संबंध हो सकता है लेकिन निश्चित रूप से धर्म के साथ नहीं।"

    पीठ ने कहा,

    "जिस क्षेत्र और समय में इस्लाम की उत्पत्ति हुई, वह अपवाद नहीं था। इस्लाम की शुरूआत से पहले के युग को जाहिलिया के रूप में जाना जाता है यानि बर्बरता और अज्ञानता का समय। कुरान 'निर्दोष महिलाओं के साथ छेड़छाड़' के मामलों पर अपनी चिंता दिखाता है। और इसलिए, इसने सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में इस और अन्य परिधानों को पहनने की सिफारिश की। हो सकता है कि समय के साथ, धर्म के कुछ तत्व इस प्रथा में प्रवेश कर गए, जैसा कि किसी भी धर्म में होता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "इस प्रकार, यह उचित रूप से माना जा सकता है कि हिजाब पहनने की प्रथा का उस क्षेत्र में प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों से गहरा संबंध था। घूंघट महिलाओं के लिए अपने घरों की सीमाओं को छोड़ने का एक सुरक्षित साधन था।"

    अदालत ने यह भी कहा, "जो धार्मिक रूप से अनिवार्य नहीं है, इसलिए सार्वजनिक आंदोलनों या अदालतों में भावुक तर्कों के माध्यम से धर्म का सर्वोत्कृष्ट पहलू नहीं बनाया जा सकता है।"

    शायरा बानो (तीन तलाक) के फैसले पर भरोसा

    पीठ ने कहा, "धर्म चाहे जो भी हो, शास्त्रों में जो कुछ भी कहा गया हो, वह थोक रूप से अनिवार्य नहीं हो जाता है। इस तरह आवश्यक धार्मिक अभ्यास की अवधारणा गढ़ी गई है। सब कुछ तार्किक रूप से यदि धर्म के लिए आवश्यक होता तो इस अवधारणा ने जन्म नहीं लिया होता।

    कोर्ट ने कहा, "यह इस आधार पर है कि शायरा बानो में सुप्रीम कोर्ट ने इस्लाम में तीन तलाक की 1400 साल पुरानी हानिकारक प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया है। पवित्र कुरान द्वारा अनुशंशा की गई एक प्रथा को हदीस द्वारा अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।"

    हिजाब नहीं पहनने वाली महिलाएं पापी नहीं

    "यह शायद ही तर्क दिया जा सकता है कि हिजाब को पोशाक का विषय होने के कारण इस्लामी विश्वास के लिए मौलिक माना जा सकता है। ऐसा नहीं है कि यदि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का पालन नहीं किया जाता है तो हिजाब नहीं पहनने वाले पापी बन जाते हैं, इस्लाम की ग‌रिमा खत्म होती है।"

    केरल के फैसले का पालन नहीं किया गया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले का पालन नहीं करने का फैसला किया, जिसने अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट के लिए ड्रेस कोड से संबंधित मामले में हिजाब को एक आवश्यक अभ्यास घोषित कर दिया था। न्यायालय ने कहा कि केरल हाईकोर्ट के सिंगल जज जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक ने इस प्रथा के संबंध में मतभेद को स्वीकार किया है।

    हाईकोर्ट ने नोट किया, "विद्वान न्यायाधीश (केरल एचसी के) सभी अनुग्रह में कहते हैं:" हालांकि, इजिथिहाद (स्वतंत्र तर्क) के आधार पर इस्लाम के विश्वासियों के लिए अलग-अलग विचार या राय होने की संभावना है।"

    याचिकाकर्ता दलील और सबूत की सीमा की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहे

    पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि रिट याचिकाओं में आवश्यक तथ्यों का अभाव है।

    कोर्ट ने कहा, "हमारे पास किसी भी मौलाना द्वारा शपथ लिया हुआ, याचिकाकर्ता पक्ष द्वारा उद्धृत सुरा के निहितार्थ को स्पष्ट करने वाला हलफनामा नहीं है। सभी याचिकाकर्ता कब से हिजाब पहन रहे हैं, यह विशेष रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है।"

    अदालत ने कहा कि, "यह शायद ही तर्क दिया जा सकता है कि पोशाक का मामला होने के नाते हिजाब को उचित रूप से इस्लामी विश्वास के लिए मौलिक माना जा सकता है।"

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