हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

6 Aug 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (31 जुलाई, 2023 से 04 अगस्त, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    महिला की पहचान उसकी वैवाहिक स्थिति पर निर्भर नहीं, विधवा को मंदिर में प्रवेश से रोकने के किसी भी प्रयास के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने विधवा को मंदिरों में प्रवेश करने से रोकने की प्रथा की कड़ी आलोचना की और कहा कि कानून के शासन द्वारा शासित सभ्य समाज में यह कभी जारी नहीं रह सकता।

    अदालत ने कहा, “यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस राज्य में यह पुरातन मान्यता कायम है कि यदि कोई विधवा मंदिर में प्रवेश करती है तो इससे अपवित्रता हो जाएगी। हालांकि सुधारक इन सभी मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, फिर भी कुछ गाँवों में इसका अभ्यास जारी है। ये हठधर्मिता और पुरुष द्वारा अपनी सुविधा के अनुरूप बनाए गए नियम हैं और यह वास्तव में एक महिला को सिर्फ इसलिए अपमानित करता है, क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया है।”

    केस टाइटल: थंगामणि बनाम कलेक्टर, इरोड जिला

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    एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 19 के तहत पूर्व-जमा के बिना, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन रोक के उद्देश्य से अभी 'जन्मा नहीं': कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में पश्चिम बंगाल राज्य सूक्ष्म लघु उद्यम सुविधा परिषद ("एमएसएमई परिषद") द्वारा पारित एक मध्यस्थ अवॉर्ड के संचालन पर रोक लगाने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंदरगाह, कोलकाता के लिए प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण के बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया।

    याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज करते हुए कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत एक आवेदन दाखिल करना अदालत के लिए रोक के सवाल पर विचार-विमर्श करने के लिए पर्याप्त होगा, जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा, एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 19 के अनुपालन में, अवॉर्ड की 75% राशि पूर्व-जमा के अभाव में, 1996 अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन पुरस्कार पर रोक लगाने के उद्देश्य से "अजन्मा" बना रहेगा।

    मामला: बॉर्ड ऑफ मेजर पोर्ट अथॉरिटी फॉर श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट, कोलकाता बनाम मरीन क्राफ्ट इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड।

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    साक्ष्य अधिनियम की धारा 114(ए) के तहत अनुमान का विस्तार अभियोगात्मक परिस्थितियों के अभाव में आरोपी को हत्या का दोषी ठहराने के लिए नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी भी आपत्तिजनक परिस्थितियों के अभाव में, और जहां मृत्यु के कारण की एक से अधिक संभावना है, साक्ष्य अधिनियम की धारा 114(ए) के तहत अनुमान को आरोपी को हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराने के लिए विस्तारित नहीं किया जा सकता है।

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 114(ए) में प्रावधान है कि "अदालत यह मान सकती है कि जिस व्यक्ति के पास चोरी के तुरंत बाद चोरी का सामान है, वह या तो चोर है या उसने यह जानते हुए भी सामान प्राप्त किया है कि चोरी हो गई है, जब तक कि वह अपने कब्जे का हिसाब न दे सके"।

    केस टाइटल: भागवत सिंग @ भीम सिंग बनाम केरल राज्य

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    जब रोजगार के दौरान मृतक द्वारा वाहन चलाया गया हो तो बीमा कंपनी केवल कामगार मुआवजा अधिनियम के तहत मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित एक अवार्ड को संशोधित किया और माना कि बीमा कंपनी की देनदारी को श्रमिक मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत प्रतिबंधित करना होगा, न कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत, जब मामले में शामिल वाहन वाहन मालिक की नौकरी कर रहे मृत चालक द्वारा चलाया जा रहा था।

    जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा: "1988 के अधिनियम की धारा 147(1) से जुड़े प्रावधान के तहत निहित प्रावधानों के मद्देनजर, यह न्यायालय खुद को यह मानने में असमर्थ पाता है कि अपीलकर्ता बीमा कंपनी 1988 के अधिनियम की धारा 163ए के तहत मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है। विचाराधीन वाहन को वाहन के मालिक के रोजगार के दौरान मृत चालक द्वारा स्वयं चलाया जा रहा था, इसलिए, बीमा पॉलिसी के संदर्भ में बीमा कंपनी की देनदारी को 1923 के डब्‍ल्यूसी अधिनियम के तहत लागू करने योग्य तक ही सीमित रखना होगा।"

    केस टाइटल: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम गेन सिंह और अन्य

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    यूएपीए | जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने विशेष रूप से अभियोजन साक्ष्य के चरण के दौरान सुनवाई में तेजी लाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने विशेष रूप से अभियोजन साक्ष्य के चरण के दौरान मुकदमों में तेजी लाने के लिए राज्य में ट्रायल कोर्टों को दिशानिर्देशों का एक सेट जारी किया है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस मोहन लाल की पीठ ने यूएपीए के एक आरोपी द्वारा जमानत की मांग को लेकर दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिशानिर्देश पारित किए।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मुकदमे में देरी ने संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित त्वरित सुनवाई के अपीलकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है।

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (जेकेएल) 207

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    हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम | मां की मृत्यु के बाद बेटी, उसकी ओर से किया गया भरण-पोषण का दावा जारी नहीं रख सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि बेटी अपनी मां की मृत्यु के बाद उसके पति से भरण-पोषण का दावा जारी नहीं रख सकती, क्योंकि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (एचएएमए) के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ एक व्यक्तिगत अधिकार है।

    औरंगाबाद में जस्टिस रवींद्र वी घुगे और जस्टिस वाईजी खोबरागड़े की खंडपीठ ने एक मृत महिला की विवाहित बेटी को अपनी मां को दिए गए गुजारा भत्ता में वृद्धि के दावे को जारी रखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटलः जयश्री @ पुष्पा बनाम सत्येन्द्र पुत्र शिवराम जिंदाम

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    राज्य एनडीपीएस मामलों में प्रतिबंधित वस्तुओं की समय पर जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करेगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य को एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) मामलों में प्रतिबंधित वस्तुओं की समय पर जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुविधाएं देने का निर्देश दिया।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान ए.ए. कथित प्रतिबंधित सामग्री की पहचान करने के लिए साइंटिफिक जांच रिपोर्ट प्राप्त करने में अधिकांश मामलों में अत्यधिक देरी को ध्यान में रखते हुए अंतरिम आदेश जारी किया।

    केस टाइटल: अनुराज बनाम केरल राज्य

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    ‘बातिल’ विवाह से पैदा हुआ बच्चा नाजायज है, उसे पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहींः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि मुस्लिम कानून के तहत ‘बातिल’ विवाह (void-ab-initio) से पैदा हुआ बेटा नाजायज है और कानून के तहत उसके पास उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं है।

    जस्टिस वी श्रीशानंदा की एकल पीठ ने नबीसाब सन्नामणि (मूल वादी) द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और प्रथम अपीलीय अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने हटेलसाब सन्नामणि (मूल प्रतिवादी) को पैतृक संपत्ति का आधा हिस्सा दिया था। प्रथम अपीलीय अदालत ने यह माना था कि वह हुच्चेसाब और फकीराम्मा से पैदा हुआ वैध पुत्र है, जो वादी का पिता है।

    केस टाइटल- नबीसाब पुत्र हुच्चेसाब सन्नामणि बनाम हटेलसाब पुत्र हुच्चेसाब सन्नामणि

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    ज्ञानवापी | 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण से वादी, प्रतिवादी दोनों को समान रूप से मदद मिलेगी; एएसआई सर्वेक्षण के दौरान पक्षकार उपस्थित रहने के लिए स्वतंत्र': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वेक्षण के लिए वाराणसी कोर्ट के 21 जुलाई के आदेश को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज कहा कि विवादित स्थल का वैज्ञानिक सर्वेक्षण "न्याय के हित में आवश्यक" है और इससे "वादी और प्रतिवादी को समान रूप से लाभ होगा" और यह मामले में उचित निर्णय पर पहुंचने के लिए "ट्रायल कोर्ट की सहायता" भी करेगा।

    न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अंजुमन मस्जिद समिति की रिट याचिका खारिज होने से एएसआई द्वारा की जाने वाली वैज्ञानिक जांच के समय मुकदमे के पक्षकारों के उपस्थित रहने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    केस टाइटलः अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम राखी सिंह और 8 अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 241241 [MATTERS UNDER ARTICLE 227 No.7955 of 2023]

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    अनुबंध के तहत केवल पैसे का भुगतान न करना आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक अनुबंध के तहत भुगतान किए गए पैसे का भुगतान न करना समझौते के पक्षकार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का आधार नहीं हो सकता है और किसी भी मामले में "आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत आवेदन को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता है"।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने विजय पाल प्रजापति को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर उत्खनन की गई रेत की बिक्री और विपणन से संबंधित समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।

    केस टाइटलः विजय पाल प्रजापति बनाम उत्तर प्रदेश राज्य प्रधान सचिव होम लखनऊ [CRIMINAL MISC ANTICIPATORY BAIL APPLICATION U/S 438 CR.P.C. No. - 57 of 2023]

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    बच्चे को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता है, भले ही उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया हो: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाण हाईकोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराध के आरोप के मामले में जब किसी किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाता है, तब भी उसे किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 के तहत जमानत का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस एन.एस. शेखावत ने एक किशोर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता/सीसीएल पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन फिर भी वह कानून के साथ संघर्ष में किशोर बना हुआ है और उसे कभी भी अधिनियम की धारा 12 के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: एक्स बनाम हरियाणा राज्य

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    शांति बनाए रखना मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी है, 'तालिबान' 'गुंडा' शब्दों का इस्तेमाल असहनीय : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्रकार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया महत्वपूर्ण समाचार प्रकाशित करके आम जनता की जरूरतों को पूरा करते हैं और शांति बनाए रखने की उनकी सामाजिक जिम्मेदारी है। जस्टिस वी श्रीशानंद की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि समाचारों के प्रकाशन का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और इसलिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में की जाने वाली रिपोर्टों को प्रेस द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार सख्ती से पालन होना आवश्यक है।

    केस टाइटल: लोक शिक्षण ट्रस्ट और अन्य और दावलसाब पुत्र मल्लिकसाब नदाफ

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    ठेकेदार के कर्मचारी की दुर्घटना/मृत्यु के लिए विलंबित मुआवज़े पर ब्याज/जुर्माने के लिए प्रधान नियोक्ता उत्तरदायी नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ठेकेदार के कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु/चोट के मामले में मुख्य नियोक्ता का दायित्व कर्मचारी मुआवजा अधिनियम की धारा 12 के तहत मुआवजे की राशि तक सीमित है और इसमें डिफ़ॉल्ट के लिए जुर्माना और ब्याज शामिल नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, "...नियोक्ता की ओर से वैधानिक दायित्व का पालन करने में विफलता के लिए उस पर ब्याज और जुर्माना देने की अतिरिक्त देनदारी हो सकती है, हालांकि मुख्य नियोक्ता, जिसे धारा 12 के तहत मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी बनाया गया है कर्मचारी मुआवजा अधिनियम को ब्याज और जुर्माने का भुगतान करने के दायित्व के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।”

    केस टाइटल- मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद, अहमदनगर और अन्य बनाम सुरैया रफीक खलीफा और अन्य।

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    एस्टेट ड्यूटी एक्ट 1953 | कथित वक़िफ़ अगर वक़्फ़ डीड में संशोधन करने का अधिकार सुरक्षित रखता है तो वो धारा 12 के तहत छूट का हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अगर वकिफ ने वक्फ संपत्ति से लाभ प्राप्त करने के लिए वक्फ विलेख और उसमें प्रावधानों में संशोधन करने का अधिकार सुरक्षित रखा है, तो संपत्ति शुल्क अधिनियम, 1953 के तहत संपत्ति शुल्क का भुगतान करने से छूट का दावा नहीं किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता गुलाम आजाद खान की गोद ली हुई संतान है, जिसने कथित तौर पर मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम, 1913 के तहत वक्फ-अलाल-औलाद बनाया था। वक्फ डीड के अनुसार, कुल आय में से 100 रुपए का जनरल इंजीनियरिंग वर्क्स (वक्फ संपत्ति) को सर्वशक्तिमान की ओर खर्च किया जाना था और शेष आय का उपयोग उनके जीवनकाल के दौरान वक्फ गुलाम अहमद खान की इच्छा के अनुसार किया जाना था। गुलाम अहमद खान ने वक्फ डीड में बदलाव करने और जनरल इंजीनियरिंग वर्क्स सहित वक्फ को सौंपी गई संपत्तियों को बेचने का अधिकार भी सुरक्षित रखा।

    केस टाइटल: आज़ाद अहमद खान बनाम आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण [रिट सी संख्या 1000800/2000]

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    18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति का 'लिव इन रिलेशन' में रहना अस्वीकार्य, ऐसे कृत्य अनैतिक और अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि 18 साल से कम उम्र का कोई 'बच्चा' लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता। ऐसा करना न केवल अनैतिक बल्कि गैरकानूनी कृत्य होगा। न्यायालय ने कहा कि लिव-इन रिलेशन को विवाह की प्रकृति का संबंध मानने के लिए कई शर्तें हैं और किसी भी मामले में, व्यक्ति को बालिग (18 वर्ष से अधिक) होना चाहिए, भले ही वह विवाह योग्य आयु (21 वर्ष) का न हो।

    उल्लेखनीय है कि जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की पीठ ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र का आरोपी किसी बालिग लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर सुरक्षा नहीं मांग सकता है और इस प्रकार, वह अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमे को रद्द करने की मांग नहीं कर सकता है, क्योंकि उसका कृत्य "कानून में स्वीकार्य नहीं है और इस प्रकार अवैध है"।

    केस टाइटलः सलोनी यादव और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 238

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    आपराधिक न्यायालय द्वारा सम्मन समाज में छवि को प्रभावित करता है, आपराधिक शिकायत के लिए सिविल कार्यवाही को छुपाना उत्पीड़न है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि आपराधिक अदालत में जाना और दीवानी मुकदमा दायर करने के बाद आपराधिक शिकायत दर्ज करना, दीवानी मुकदमे की लंबितता को दबाना उत्पीड़न का एक रूप है।

    जस्टिस सोफी थॉमस ने तिरुवनंतपुरम में एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए इस प्रकार कहा: “चूंकि उन्होंने पहले ही नागरिक उपचार का सहारा लेते हुए सिविल अदालत का दरवाजा खटखटाया था, इसलिए उनके द्वारा दायर की गई बाद की आपराधिक शिकायत, सिविल मुकदमे की पेंडेंसी को दबाते हुए, केवल उत्पीड़न के हथियार के रूप में देखी जा सकती है। “

    केस टाइटल: मोहनदास बनाम केरल राज्य

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    "कट्टरपंथी मुस्लिम की तुलना किसी चरमपंथी या अलगाववादी से नहीं की जा सकती": जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, "एक कट्टरपंथी मुस्लिम की तुलना किसी चरमपंथी या अलगाववादी से नहीं की जा सकती।" यह टिप्पणी जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने एक 22 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की प्र‌िवेंटिव डिटेंशन के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

    उसे इस अधार पर हिरासत में लिया गया था कि कि वह एक "कट्टरपंथी" बन गया है और स्वेच्छा से लश्कर ए तैयबा के कथित संगठन टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) के ओवर ग्राउंड वर्कर के रूप में काम करने के लिए सहमत हो गया है।

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    किसी आरोपी के न्यायिक हिरासत में रहने के बाद उसे उसी मामले में दूसरी बार पुलिस हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी के लंबे समय तक न्यायिक हिरासत में रहने के बाद उसे उसी मामले में दूसरी बार पुलिस हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने आंशिक रूप से इमैनुएल माइकल की याचिका को अनुमति दी, जिस पर नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस अधिनियम) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है और विशेष अदालत द्वारा छह महीने की पुलिस हिरासत देने को अवैध घोषित किया गया है। उसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

    केस टाइटल: इमैनुएल माइकल और भारत संघ

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    कर्मचारी की मृत्यु के 26 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति कमाने वाले की असामयिक मृत्यु के कारण परिवार की तात्कालिक कठिनाइयों से निपटने के लिए दी जाती है और कर्मचारी की मृत्यु के 26 वर्ष बीत जाने के बाद यह नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस जे जे मुनीर ने कहा, “...सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि याचिकाकर्ता की मां का निधन हुए वास्तव में 26 साल बीत चुके हैं। समय के इस लंबे समय के दौरान, जैसे-जैसे जीवन आगे बढ़ रहा है, यह निष्कर्ष निकालना वैध निष्कर्ष है कि याचिकाकर्ता की मां के असामयिक निधन से उत्पन्न वित्तीय संकट, चाहे वह किसी भी तरह से हो, याचिकाकर्ता द्वारा निपटा लिया गया होगा। इसलिए अब आर्थिक संकट में फंसे परिवार को बाहर निकालने की कोई मौजूदा आवश्यकता नहीं है, जिसकी सहायता से यह न्यायालय याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने के लिए परमादेश जारी कर सके।”

    केस टाइटल: अवनीश टंडन बनाम सहायक महाप्रबंधक [रिट ए नंबर 10831/2023]

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    पहली पत्नी पति की दूसरी शादी को शून्य घोषित करने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन दायर कर सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने पति की दूसरी शादी को शून्य घोषित करने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 (शून्य विवाह) के तहत आवेदन दायर करने के पहली पत्नी के अधिकार को बरकरार रखा है।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की सामंजस्यपूर्ण व्याख्या पर कहा, “ अगर पहली पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत उपाय मांगने से वंचित किया जाता है तो यह अधिनियम के मूल उद्देश्य और इरादे को विफल कर देगा। ऐसे परिदृश्य में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5, 11 और 12 के तहत कानूनी रूप से विवाहित पत्नियों को दी जाने वाली सुरक्षा महत्वहीन हो जाएगी।"

    केस टाइटल : गरिमा सिंह बनाम प्रतिमा सिंह और अन्य [प्रथम अपील नंबर 623/2022]

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