‘बातिल’ विवाह से पैदा हुआ बच्चा नाजायज है, उसे पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहींः कर्नाटक हाईकोर्ट
Manisha Khatri
3 Aug 2023 7:30 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि मुस्लिम कानून के तहत ‘बातिल’ विवाह (void-ab-initio) से पैदा हुआ बेटा नाजायज है और कानून के तहत उसके पास उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस वी श्रीशानंदा की एकल पीठ ने नबीसाब सन्नामणि (मूल वादी) द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और प्रथम अपीलीय अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने हटेलसाब सन्नामणि (मूल प्रतिवादी) को पैतृक संपत्ति का आधा हिस्सा दिया था। प्रथम अपीलीय अदालत ने यह माना था कि वह हुच्चेसाब और फकीराम्मा से पैदा हुआ वैध पुत्र है, जो वादी का पिता है।
वादी की प्राथमिक दलील यह थी कि फकीराम्मा की शादी मौलसाब मेनसागी नामक व्यक्ति से हुई थी और उस शादी के विघटन के किसी भी सबूत के अभाव में, उसके पिता के साथ उसकी दूसरी शादी मुस्लिम कानून की धारा 253 के तहत शून्य/निरर्थक थी।
पीठ ने वादी द्वारा पेश किए गए गवाह के साक्ष्य को ध्यान में रखा, जिनमें यह उल्लेख किया गया था कि मुकदमे की भूमि के संबंध में प्रतिवादी का नाम शामिल करने के लिए राजस्व प्राधिकरण की ‘वरदी’ (रिपोर्ट) में, एक मौलसाब सन्नामनी ने प्रतिवादी के लिए उनके बड़े भाई के रूप में हस्ताक्षर किए थे।
जिसके बाद अदालत ने कहा, ‘‘चूंकि प्रतिवादी डीडब्ल्यू-1 ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि एक मौलसाब सन्नामनी, जो डीडब्ल्यू-1 का बड़ा भाई है, ने डीडब्ल्यू-1 के संरक्षक के रूप में हस्ताक्षर किए हैं, तो यह माना जाता है कि फकीराम्मा की शादी हुच्चेसाब के साथ होने से पहले मौलसाब मेनसागी से हुई होगी।’’
इसके अलावा यह भी कहा कि,‘‘चूंकि प्रतिवादी ने यह दलील दी है कि वह हुच्चेसाब के माध्यम से फकीराम्मा से पैदा हुआ बेटा है, जो वादी का पिता है, इसलिए प्रतिवादी के लिए यह स्थापित करना अनिवार्य था कि हुच्चेसाब के साथ फकीराम्मा का विवाह एक वैध विवाह था।’’
यह माना गया कि जब तक फकीराम्मा की मौलसाब मेनसागी के साथ हुई पहली शादी को मुस्लिम कानून के अनुसार विधिवत भंग नहीं किया जाता, तब तक हुच्चेसाब के साथ उसकी शादी को ‘बातिल’ शादी माना जाना चाहिए।
‘‘इसलिए, भले ही प्रतिवादी फकीराम्मा के माध्यम से पैदा हुच्चेसाब का पुत्र है, उसे एक नाजायज पुत्र माना जाएगा। प्रथम अपीलीय न्यायालय ने अपना निष्कर्ष दर्ज करते समय इस बात पर कोई चर्चा नहीं है कि प्रतिवादी और उसकी बहन फतुबी फकीराम्मा के वैध पुत्र और पुत्री हैं। इसलिए इस अपील में इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।”
तदनुसार, कोर्ट ने अपील को अनुमति दे दी और प्रथम अपीलीय अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। “प्रतिवादी की ओर कोई ऐसा विश्वसनीय सबूत पेश नहीं किया गया कि फकीराम्मा मुस्लिम कानून के अनुसार तलाक या विवाह विच्छेद की डिक्री के बिना, हुच्चेसाब से शादी करने के योग्य थी। इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि प्रथम अपीलीय न्यायालय के न्यायाधीश ने यह मानते हुए कि प्रतिवादी एक वैध पुत्र है,विपरीत निष्कर्ष दर्ज किया है और इसलिए इस न्यायालय की सुविचारित राय में मुकदमे को खारिज करना एक विकृत निष्कर्ष है।’’
केस टाइटल- नबीसाब पुत्र हुच्चेसाब सन्नामणि बनाम हटेलसाब पुत्र हुच्चेसाब सन्नामणि
केस नंबर- रेगुलर सेकेंड अपील नंबर-1467/2007
साइटेशन- 2023 लाइवलॉ (केएआर) 293
आदेश की तिथि- 14 जुलाई 2023
प्रतिनिधित्व- अपीलकर्ताओं के लिए एडवोकेट सादिक एन गुडवाला और टी.एम.नदाफ
प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट सूरज एम कटगी
फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें