सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
31 July 2022 10:30 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (25 जुलाई, 2022 से 29 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
एक ही धार्मिक संप्रदाय के विवाद में पूजा स्थल अधिनियम को लागू करने के लिए अनुच्छेद 32 लागू नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट ने जैन संप्रदाय से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को श्वेतांबर मूर्तिपुजक जैन धर्म के तपगछ संप्रदाय के मोहिजीत समुदाय के सदस्यों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में उसी संप्रदाय के दूसरे वर्ग द्वारा पूजा स्थलों का कथित रूपांतरण पर पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को लागू करने की मांग की गई थी।
[मामले टाइटल: शरद जावेरी और अन्य बनाम यूओआई और अन्य]
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अग्रिम जमानत आदेश में तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाले अनुल्लंघनीय निर्देश जारी नहीं किए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि अग्रिम जमानत आदेश में किसी तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाले अनुल्लंघनीय (अनिवार्य रूप से पालनीय) निर्देश जारी नहीं किये जा सकते हैं। अभी हाल ही में, एक अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हाईकोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल में तीसरे पक्ष को पक्षकार बनाने की आजादी नहीं है।
कंचन कुमारी बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 640 | सीआरए 1031/2022 | 25 जुलाई 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय
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धारा 306 आईपीसी : आत्महत्या के लिए उकसाना एक जघन्य अपराध; समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 306 आईपीसी (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत प्राथमिकी को समझौते के आधार पर धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द नहीं किया जा सकता है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि 'आत्महत्या के लिए उकसाना' भी जघन्य और गंभीर अपराधों की श्रेणी में आता है और इसे समाज के खिलाफ अपराध के रूप में माना जाना चाहिए न कि केवल व्यक्ति के खिलाफ।
दक्साबेन बनाम गुजरात राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 642 | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 1132-1155/ 2022 | 29 जुलाई 2022
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'केंद्रीय कानून के प्रतिकूल नहीं' : सुप्रीम कोर्ट ने केरल मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1976 की धारा 4(7), 4(8) और 15 को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने केरल मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1976 की धारा 4(7), 4(8) और 15 और केरल मोटर परिवहन श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम, 1985 की धारा 8ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलों को खारिज करते हुए जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि ये प्रावधान मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के विरोध में नहीं हैं।
ऑल केरल डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 639 | सीए 4502/2009 | 27 जुलाई 2022 | जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस सीटी रविकुमार
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नागालैंड स्थानीय निकाय चुनाव: सुप्रीम कोर्ट ने नागालैंड चुनाव आयोग को जनवरी, 2023 तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागालैंड सरकार और नागालैंड राज्य चुनाव आयोग को स्थानीय निकायों के चुनावों को पूरा करने और जनवरी, 2023 के अंत तक परिणाम घोषित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की डिवीजन बेंच ने आदेश दिया, "हमने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि चुनाव प्रक्रिया को पूरा किया जाना है और परिणाम जनवरी, 2023 के अंत से पहले घोषित किए गए हैं। तदनुसार, कार्यक्रम तैयार किया जाना है।"
[केस टाइटल: पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम द स्टेट ऑफ नागालैंड | सिविल अपील संख्या 3607/2016]
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ताजा खबरें वह राहत जिसके लिए कोई प्रार्थना या याचना नहीं की गई, नहीं दी जानी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह राहत जिसके लिए कोई प्रार्थना या याचना नहीं की गई थी, उसे नहीं दिया जाना चाहिए। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि यदि कोई न्यायालय प्रतिवादी को ऐसी राहत का विरोध करने के अवसर से वंचित कर ऐसी राहत पर विचार करता है या अनुदान देता है जिसके लिए कोई प्रार्थना या निवेदन नहीं किया गया था, तो यह न्याय का पतन होगा।
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जैविक पिता की मौत के बाद मां द्वारा अपने बच्चे को दूसरे पति का सरनेम देने में कुछ भी असामान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जैविक पिता की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां बच्चे का उपनाम (surname ) तय कर सकती है और उसे अपने नए परिवार में शामिल कर सकती है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें एक मां को अपने बच्चे का उपनाम बदलने और अपने नए पति का नाम केवल 'सौतेले पिता' के रूप में रिकॉर्ड में दिखाने का निर्देश दिया था।
केस टाइटल-अकिला ललिता बनाम श्री कोंडा हनुमंत राव
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न्यायिक शक्तियों के प्रयोग में एडिशनल सीएमएम को सीएमएम के अधीनस्थ नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां तक न्यायिक शक्तियों के प्रयोग का संबंध है, एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, "इसके अलावा चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के पास प्रशासनिक शक्तियां हो सकती हैं। हालांकि, अन्य सभी उद्देश्यों के लिए और विशेष रूप से सीआरपीसी के तहत प्रयोग की जाने वाली शक्तियां दोनों समान हैं।"
आरडी जैन एंड कंपनी बनाम कैपिटल फर्स्ट लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (SC) 634 | सीए 175/ 2022 | 27 जुलाई 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना
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सीआरपीसी की धारा 226 : लोक अभियोजक का कर्तव्य है कि वह अभियोजन के मामले के संबंध में ट्रायल कोर्ट को एक उचित विचार दे: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने से पहले, लोक अभियोजक का कर्तव्य है कि वह अभियोजन के मामले के संबंध में न्यायालय को एक उचित विचार दे। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा सीआरपीसी की धारा 226 अभियोजन पक्ष को एक मामले के संबंध में पहली छाप बनाने की अनुमति देती है, जिसे दूर करना मुश्किल हो सकता है।
गुलाम हसन बेग बनाम मोहम्मद मकबूल माग्रे | 2022 लाइव लॉ (SC ) 631 |एसएलपी (सीआरएल) 4599/ 2021 | 26 जुलाई 2022 |
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ईडी अधिकारी "पुलिस अधिकारी" नहीं हैं, अनुच्छेद 20(2) गिरफ्तारी को बाद उपलब्ध है, समन के चरण में नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी जो धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत धन शोधन मामलों की जांच कर रहे हैं, वे "पुलिस अधिकारी" नहीं हैं। इसलिए, ईडी अधिकारियों द्वारा पीएमएलए अधिनियम की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयान अपराध की आय की जांच करते समय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) ( खुद ही अपराध का दोषी ठहराने के खिलाफ अधिकार) से प्रभावित नहीं होते हैं।
केस: विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (SC ) 633 |एसएलपी (सीआरएल) 4634/ 2014 | 27 जुलाई 2022 |
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सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के तहत ED के गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा; कोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002 के प्रावधानों को बरकरार रखा, जो प्रवर्तन निदेशालय (ED) के गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी और जब्ती की शक्ति से संबंधित है। कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो ईडी की गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्तियों से संबंधित हैं। अदालत ने अधिनियम की धारा 24 के तहत सबूत के उल्टे बोझ को भी बरकरार रखा और कहा कि अधिनियम के उद्देश्यों के साथ इसका "उचित संबंध" है।
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हज ग्रुप ऑर्गनाइजर कोई धार्मिक समारोह आयोजित नहीं करते, जीएसटी से छूट नहीं मांग सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हज ग्रुप ऑर्गनाइजर्स (एचजीओ) या प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स (पीटीओ) जीएसटी अधिनियम के तहत जारी मेगा छूट अधिसूचना के अनुसार अपनी सेवाओं के लिए माल और सेवा कर (जीएसटी) से छूट नहीं मांग सकते हैं।( ऑल इंडिया हज उमराह टूर ऑर्गनाइज़र एसोसिएशन मुंबई बनाम भारत संघ और अन्य) अधिसूचना ने "किसी भी धार्मिक समारोह के संचालन" के लिए छूट प्रदान की, जैसा कि इसके खंड 5 (बी) में कहा गया है। कोर्ट ने कहा कि एचजीओ खुद कोई धार्मिक समारोह आयोजित नहीं कर रहे हैं और केवल हज यात्रा की सुविधा दे रहे हैं।
केस : ऑल इंडिया हज उमराह टूर ऑर्गनाइजर एसोसिएशन मुंबई बनाम भारत संघ
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पोस्टमार्टम रिपोर्ट स्वयं कोई ठोस सबूत नहीं होती, सिर्फ इसके आधार पर हत्या का आरोपी आरोपमुक्त नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई ट्रायल कोर्ट केवल पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर हत्या के आरोपी को आरोपमुक्त नहीं कर सकता है, जिसमें मौत का कारण "कार्डियो रेस्पिरेटरी फेल्योर" बताया गया है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, "पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, अपने आप में, ठोस सबूत नहीं बनाती है। अदालत में डॉक्टर का बयान ही वास्तविक सबूत है।"
गुलाम हसन बेग बनाम मोहम्मद मकबूल माग्रे | 2022 लाइव लॉ (SC) 631 |एसएलपी (सीआरएल) 4599/ 2021 | 26 जुलाई 2022 | जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस जेबी पारदीवाला
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सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के विधिक सचिवों को 2017-2022 तक न्यायपालिका के लिए वितरित फंड का विवरण देने का निर्देश दिया
कई राज्यों में उचित न्यायिक बुनियादी ढांचे की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को सभी राज्य सरकारों के विधिक सचिवों को बजट आवंटन और उपयोग से संबंधित हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
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ओएमआर शीट में निर्धारित भाषा का प्रयोग ना करने वाले उम्मीदवार को अयोग्य ठहराना गलत नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने ओएमआर शीट की तुलना में आवेदन पत्र में अलग भाषा का इस्तेमाल करने वाले उम्मीदवार की उम्मीदवारी की अस्वीकृति को बरकरार रखा। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, चूंकि विज्ञापन में आवेदन पत्र भरने के तरीके और उत्तर पुस्तिकाओं के प्रयास पर विचार किया गया था, इसलिए इसे निर्धारित तरीके से किया जाना चाहिए, इस मामले में, उम्मीदवार ने अपना आवेदन पत्र अंग्रेजी में भरा और उसके हस्ताक्षर अंग्रेजी में दो अक्षरों "एम" और "एस" से मिलकर बने हैं। वह 23.6.2013 को लिखित परीक्षा के लिए उपस्थित हुए जहां उसने ओएमआर शीट पर हिंदी में पैराग्राफ लिखा। विज्ञापन में दी गई शर्त के उल्लंघन के आधार पर उसकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया गया था कि आवेदन उसी भाषा में होना चाहिए जिसके लिए उम्मीदवार प्रश्न पत्र का प्रयास करना चाहते हैं। उनकी रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि आवेदन पत्र वर्ष 2011 में भरा गया था, जबकि परीक्षा वर्ष 2013 में हुई थी, इसलिए, उसने अनजाने में आवेदन पत्र भरने और परीक्षा देने के समय के अंतराल के कारण हिंदी में ओएमआर शीट भर दी थी।
भारत संघ बनाम महेंद्र सिंह | 2022 लाइव लॉ (SC) 630 | सीए 4807/2022 | 25 जुलाई 2022 | जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ
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आमतौर पर सीपीसी की धारा 24 के तहत स्थानांतरण याचिका पर विचार करते समय पत्नी की सुविधा को ध्यान में रखा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के तहत स्थानांतरण याचिका पर विचार करते समय आम तौर पर पत्नी की सुविधा का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए।
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा, "वैवाहिक मामलों में, जहां भी कोर्ट को स्थानांतरण याचिका पर विचार करने के लिए अनुरोध किया जाता है, कोर्ट को दोनों पक्षों की आर्थिक सुदृढ़ता, पति-पत्नी के सामाजिक स्तर और उनके व्यवहार पद्धति, विवाह से पहले और बाद के जीवन स्तर को तथा दोनों पक्षों की अपनी आजीविका चलाने की उन परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए जिसके संरक्षण में वे अपने भरण-पोषण की मांग रहे हैं।"
एनसीवी ऐश्वर्या बनाम एएस सरवना कार्तिक शा | 2022 लाइव लॉ (एससी) 627 | सीए 4894/2022 | 18 जुलाई 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जेके माहेश्वरी
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वन विभाग स्वयं वन्य जीवन अधिनियम की धारा 33 के तहत जुर्माना नहीं लगा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वन विभाग वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 33 के तहत जुर्माना नहीं लगा सकता। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, इसके लिए प्राधिकरण को हर्जाने का निर्धारण / पता लगाने के लिए उपयुक्त अदालत / मंच के समक्ष उचित कार्यवाही शुरू करनी होगी।
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज 2022 लाइव लॉ (SC) 626 | एसएलपी (सी) 10084-85/2022| 12 जुलाई 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना