अग्रिम जमानत आदेश में तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाले अनुल्लंघनीय निर्देश जारी नहीं किए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा

LiveLaw News Network

30 July 2022 11:38 AM IST

  • अग्रिम जमानत आदेश में तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाले अनुल्लंघनीय निर्देश जारी नहीं किए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि अग्रिम जमानत आदेश में किसी तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाले अनुल्लंघनीय (अनिवार्य रूप से पालनीय) निर्देश जारी नहीं किये जा सकते हैं।

    अभी हाल ही में, एक अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हाईकोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल में तीसरे पक्ष को पक्षकार बनाने की आजादी नहीं है।

    इस मामले में, कथित रूप से धोखाधड़ी के मामले में शामिल एक आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए, पटना हाईकोर्ट ने बेंगलुरु के वरिष्ठ डाक अधीक्षक को कंचन कुमारी नामक एक डाकघर एजेंट को दिए गए लाइसेंस/ प्राधिकार को रद्द करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि उसे बिहार या कहीं और एजेंट के रूप में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कंचन कुमारी इस अग्रिम जमानत अर्जी में पक्षकार नहीं थीं। हाईकोर्ट के आदेश में कारण स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के निर्देश जारी करने की वजह क्या है।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, कंचन कुमारी ने दलील दी कि इस तरह के प्रतिकूल आदेश अग्रिम जमानत की कार्यवाही में पारित नहीं किये जाने चाहिए थे, वह भी बिना नोटिस जारी किये, जबकि वह इसमें पक्षकार भी नहीं है। उसने आगे कहा कि उसकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यह निर्देश उसे जीवन भर के लिए काली सूची में डालने जैसा है। सरकार ने यह भी दलील दी कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अर्जी से निपटने वाले कोर्ट को खुद को उसके समक्ष प्रस्तुत इस मुद्दे तक सीमित रखना चाहिए कि क्या आवेदक ने अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए पर्याप्त आधार रखा है या नहीं।

    कोर्ट ने कहा कि इस तरह का एक अनिवार्य निर्देश और वह भी बिना कोई नोटिस जारी किए स्पष्ट रूप से अनुचित था।

    बेंच ने विपरीत टिप्पणियों को हटाते हुए कहा,

    "हम आश्वस्त हैं कि कोर्ट सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आवेदन के निपटान के लिए जरूरी बातों से आगे निकल गया है। हमारे सामने जो आक्षेपित किया गया है वह केवल एक अवलोकन नहीं है। यह किसी तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाला एक अनिवार्य निर्देश है। निर्देश का प्रतिकूल प्रभाव अपीलकर्ता की आजीविका पर पड़ने वाला है। इस निर्देश का अपीलकर्ता के लिए नागरिक परिणाम भी है। इस तरह का एक अनिवार्य निर्देश और वह भी, अपीलकर्ता को कोई नोटिस जारी किए बिना, स्पष्ट रूप से अनुचित था।"

    मामले का विवरण

    कंचन कुमारी बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 640 | सीआरए 1031/2022 | 25 जुलाई 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय

    हेडनोट्स

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 138 - अग्रिम जमानत - अग्रिम जमानत की कार्यवाही में हाईकोर्ट द्वारा तीसरे पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल आदेश - यह एक तीसरे पक्ष को प्रभावित करने वाला अनिवार्य निर्देश है। निर्देश का प्रतिकूल प्रभाव अपीलकर्ता की आजीविका पर पड़ता है। अपीलकर्ता के लिए इसके नागरिक परिणाम भी हैं। इस तरह का अनिवार्य निर्देश और वह भी, अपीलकर्ता को कोई नोटिस जारी किए बिना, स्पष्ट रूप से अनुचित था।

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