सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

26 Dec 2021 5:00 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (20 दिसंबर, 2021 से 24 दिसंबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 397 आईपीसी : पीड़ित के मन में डर या आशंका पैदा करने के लिए खुले तौर पर हथियार लहराना या दिखाना अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित के मन में डर या आशंका पैदा करने के लिए अपराधी द्वारा खुले तौर पर हथियार लहराना या दिखाना आईपीसी की धारा 397 के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है।

    सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आईपीसी की धारा 392/397 और मध्य प्रदेश डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम 1981 ("अधिनियम") की धारा 11/13 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि को बरकरार रखने के आदेश की अपील पर विचार कर रही थी।

    केस: राम रतन बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2018 की आपराधिक अपील संख्या 1333

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    यदि जमानत आदेश में कारणों का अभाव है तो अभियोजन या शिकायतकर्ता इसे ऊंची अदालतों के समक्ष चुनौती दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि जमानत देने का आदेश प्रासंगिक कारण रहित है तो वह अभियोजन या शिकायतकर्ता को ऊंचे मंच पर इसका विरोध करने का अधिकार देगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हालांकि जमानत देते समय विस्तृत कारणों को निर्दिष्ट करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन किसी भी तर्क से रहित कोई गुप्त आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने पटना हाईकोर्ट के एक आरोपी को जमानत देने के आदेश को गुप्त और प्रासंगिक कारणों से रहित होने के कारण रद्द कर दिया।

    [मामला शीर्षक: बृजमणि देवी बनाम पप्पू कुमार और अन्य SLP (CrL) No 6335 of 2021]

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    अगर यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था तो दहेज मृत्यु का अनुमान होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार अभियोजन यह स्थापित करने में सक्षम हो जाता है कि एक महिला को उसकी मृत्यु से पहले दहेज की किसी भी मांग के लिए या के संबंध में उसके साथ क्रूरता की गई थी या उसका उत्पीड़न किया गया था तो न्यायालय इस अनुमान पर आगे बढ़ेगा कि जिन लोगों ने दहेज की मांग के साथ उसके साथ क्रूरता की है, वह भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत दहेज हत्या का कारण बना है।

    चीफ जस्टिस एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ झारखंड हाईकोर्ट के एक मई 2007 के फैसले ("आक्षेपित निर्णय") के खिलाफ आरोपी व्यक्तियों (मृतक के पति और सास) द्वारा दायर आपराधिक अपीलों पर विचार कर रही थी।

    केस शीर्षक: पार्वती देवी बनाम बिहार राज्य अब झारखंड राज्य और अन्य Criminal Appeal No. 574 Of 2012 और राम सहाय महतो बनाम बिहार राज्य अब झारखंड राज्य और अन्य। Criminal Appeal No. 575 Of 2012

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    यदि हस्ताक्षर से इनकार नहीं किया जाता है तो दस्तावेज के लेखक की जांच की आवश्यकता नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर को दिए एक फैसले में कहा है कि किसी दस्तावेज के लेखक की परीक्षा की आवश्यकता नहीं है, अगर उन्होंने दस्तावेज पर अपने हस्ताक्षर से इनकार नहीं किया था, लेकिन केवल उसके निष्पादन में दबाव का दलील दी थी।

    कोर्ट ने फैसले में कहा, "हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह मानते हुए गलती की कि अपीलकर्ता ने दस्तावेजों के लेखक की जांच नहीं की थी। इस तरह का तर्क बिल्कुल गलत है क्योंकि लिखित बयान में, प्रतिवादियों ने अपीलकर्ता द्वारा संदर्भित दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर से इनकार नहीं किया था, लेकिन इन बड़ी संख्या में दस्तावेजों को निष्पादित करने में दबाव डाला था।"

    [केस शीर्षक: मेसर्स स्टार पेपर मिल्स लिमिटेड बनाम मेसर्स बिहारीलाल मदनलाल जयपुरिया लिमिटेड और अन्य सिविल अपील नंबर 4102 ऑफ 2013]

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    एनसीडीआरसी कार्यवाही में संशोधन के निर्देश नहीं दे सकता क्योंकि शिकायतकर्ता 'डोमिनस लिटिस' है : सुप्रीम कोर्ट

    दावे के बाद खंडन को चुनौती देने की एक शिकायत में संशोधन के लिए एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द करते हुए (बीमाकर्ता को दावे का निपटान करने और भुगतान करने की निर्देश की मांग करते हुए), सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की है कि "जो पक्ष फोरम में पहुंचता है वह डोमिनस लिटिस ( मुख्य वादी) है और यह तय करने का हकदार है कि याचिका में संशोधन किया जाए या नहीं या शिकायत को आगे बढ़ाया जाए या नहीं।"

    केस: मेसर्स एक्मे क्लीनटेक सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य

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    अनुच्छेद 14 नकारात्मक समानता की परिकल्पना नहीं करता; यदि राज्य ने गलती की है, तो उसे उसी गलती को कायम रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डेली रेटेड कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के साथ वेतनमान की समानता का दावा नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 14 को समानता के आधार पर लाभ का दावा करने के लिए लागू नहीं कर सकते यदि वे अन्यथा इस तरह के लाभ के हकदार नहीं हैं।

    कोर्ट ने कहा, "कानून के निर्धारित प्रस्ताव के अनुसार संविधान का अनुच्छेद 14 अकेले सकारात्मक समानता की अवधारणा का प्रतीक है, न कि नकारात्मक समानता का। अवैधता और अनियमितता को कायम रखने के लिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।"

    केस: राजेश प्रवीणचंद्र राज्यगुरु बनाम गुजरात जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड और अन्य। | 2021 की सिविल अपील संख्या 7578 और राधाकृष्णन अय्यप्पन एज़ुवा और अन्य बनाम गुजरात जल आपूर्ति एवं सीवरेज एवं अन्य 2021 की सिविल अपील संख्या 7579

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    अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गलत तरीके से नियमित किए गए व्यक्तियों के संदर्भ में नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने नियमित करने के दावे के संबंध में झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गलत तरीके से नियमितीकरण का लाभ पाने वाले व्यक्तियों के लिए नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने टिप्पणी की, "हम पाते हैं कि कुछ कर्मचारी हैं जिनके संदर्भ में शिकायत की गई है, लेकिन उन लोगों के लिए नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत नियमितीकरण का लाभ गलत तरीके से दिया गया है।"

    केस का शीर्षक: राजेंद्र बदैक बनाम झारखंड राज्य एंड अन्य | Special Leave to Appeal (c) No.10207/2018

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    "बरी करने के आदेश को तभी पलटा जा सकता है जब ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण न केवल गलत हो, बल्कि अनुचित और विकृत भी हो" : सुप्रीम कोर्ट

    हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश को पलटने के मामले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि बरी करने की अनुमति तभी दी जा सकती है जब ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण न केवल गलत हो, बल्कि अनुचित और विकृत भी हो।

    न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील में यह टिप्पणी की, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी करने के फैसले को उलट दिया गया था और अपीलकर्ता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

    केस: सुमन चंद्रा बनाम सीबीआई

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    धारा 482 सीआरपीसी : हाईकोर्ट किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल आदेश या टिप्पणी नहीं दे सकता जो इसके समक्ष नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के तहत आरोपी द्वारा दायर याचिका को खारिज करने के लिए किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ कार्यवाही के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता जो न तो अदालत के समक्ष था और न ही आदेश पारित करने से पहले उसे कोई अवसर दिया गया था।

    न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 20 नवंबर, 2018 के आदेश को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी,जिसमें हाईकोर्ट ने पुलिस स्टेशन, चंडीगढ़ द्वारा दर्ज अपराध अपीलकर्ता (प्रासंगिक समय पर स्कूल के प्राचार्य) के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश पर ("आक्षेपित निर्णय") जारी किया था।

    केस: अनु कुमार बनाम राज्य (यूटी प्रशासन) और अन्य | एसएलपी (सीआरएल) सं। 4567/ 2019

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    मंदसौर गैंगरेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने सात साल की बच्ची के साथ रेप के मामले में आरोपी को फांसी की सजा पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 2018 में मंदसौर में सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में आरोपी को दी गई मौत की सजा पर रोक लगा दी है, इस मामले पर आगे विचार किया जाएगा। पीठ ने आरोपी का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करने और उसके लिए एक मूल्यांकन टीम के गठन का भी निर्देश दिया है।

    न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने वाले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका में निर्देश जारी किया है।

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    अनुकंपा नियुक्ति के लिए संशोधित नियम की प्रयोज्यता दावे पर विचार करने की तिथि के बजाय मृत्यु की तारीख पर आधारित होगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) के लिए संशोधित नियम की प्रयोज्यता दावे पर विचार करने की तिथि के बजाय मृत्यु की तारीख पर आधारित होगी।

    न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने यह मानने से इनकार कर दिया कि कर्नाटक सिविल सेवा (अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति) (सातवां संशोधन) नियम, 2012 को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है ताकि अनुकंपा नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति को नया संशोधन का लाभ प्रदान किया जा सके।

    केस का शीर्षक: सचिव, शिक्षा विभाग (प्राथमिक) और अन्य बनाम भीमेश उर्फ भीमप्पा सिविल| अपील संख्या 7752/ 2021

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    समान हित वाले उपभोक्ता संयुक्त शिकायत दायर कर सकते हैं; प्रतिनिधि क्षमता में शिकायत दायर करने की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जहां समान शिकायत वाले एक से अधिक उपभोक्ता हैं, तो यह आवश्यक नहीं है कि वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 35 (1) (सी) के तहत प्रतिनिधि क्षमता में उपभोक्ता शिकायत दर्ज करें। इसके बजाय, ये कुछ उपभोक्ता एक साथ जुड़ सकते हैं और एक संयुक्त शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

    अदालत ने कहा, "उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में इन कुछ उपभोक्ताओं को एक साथ शामिल होने और संयुक्त शिकायत दर्ज करने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं है।"

    केस: ब्रिगेड एंटरप्राइजेज लिमिटेड बनाम अनिल कुमार विरमानी और अन्य 2021 की सिविल अपील संख्या 1779

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    समानता का अधिकार उस व्यक्ति पर लागू होगा जिसके पास मानक अनुबंध स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प न हो, भले ही वह अनुचित हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रादेशिक सेना (Territorial Army) में नामांकन के समय अपीलकर्ता के दस्तखत किये हुये एक दस्तावेज पर भारत संघ द्वारा दिखाई गई विश्वसनीयता को खारिज करते हुए प्रादेशिक सेना के एक सदस्य को दिव्यांगता पेंशन (disability pension) देने का निर्देश दिया है। दरअसल इस दस्तावेज में उसने स्पष्ट रूप से अपनी बढ़ी हुई पेंशन के अधिकार को छोड़ दिया था।

    कोर्ट ने कहा कि पक्षकारों के बीच असमान सौदेबाजी की शक्ति (unequal bargaining power) को देखते हुए सेना उक्त दस्तावेज पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

    केस: पानी राम बनाम भारत संघ और अन्य | 2019 की सिविल अपील नंबर 2275

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