अगर यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था तो दहेज मृत्यु का अनुमान होगा: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

24 Dec 2021 1:46 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार अभियोजन यह स्थापित करने में सक्षम हो जाता है कि एक महिला को उसकी मृत्यु से पहले दहेज की किसी भी मांग के लिए या के संबंध में उसके साथ क्रूरता की गई थी या उसका उत्पीड़न किया गया था तो न्यायालय इस अनुमान पर आगे बढ़ेगा कि जिन लोगों ने दहेज की मांग के साथ उसके साथ क्रूरता की है, वह भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत दहेज हत्या का कारण बना है।

    चीफ जस्टिस एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ झारखंड हाईकोर्ट के एक मई 2007 के फैसले ("आक्षेपित निर्णय") के खिलाफ आरोपी व्यक्तियों (मृतक के पति और सास) द्वारा दायर आपराधिक अपीलों पर विचार कर रही थी।

    आक्षेपित फैसले में, हाईकोर्ट ने गिरिडीह के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित 20 सितंबर 1999 को धारा 3o4बी और धारा 201 सहप‌ठित धारा 34 के तहत दोषसिद्धि के फैसला बरकरार रखा था, उन्हें और नेमा महतो (मृतक के ससुर) को सजा सुनाई थी।

    मृतक के पति को राम सहाय महतो बनाम बिहार राज्य अब झारखंड राज्य व अन्य में आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हुए और पार्वती देवी बनाम बिहार राज्य अब झारखंड और अन्य में सास की अपील की अनुमति देते हुए पीठ ने कहा कि,

    "साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के साथ पढ़ी गई धारा 304बी आईपीसी इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ती है कि एक बार अभियोजन यह प्रदर्शित करने में सक्षम हो गया है कि मृत्यु से ठीक पहले दहेज की किसी भी मांग के संबंध में महिला के साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया है। उसकी मृत्यु पर न्यायालय इस अनुमान पर आगे बढ़ेगा कि जिन व्यक्तियों ने दहेज की मांग के संबंध में उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया है, उन्होंने धारा 304बी आईपीसी के अर्थ में दहेज मृत्यु का कारण बना दिया है। हालांकि, उक्त अनुमान खंडन योग्य है और अभियुक्त द्वारा ठोस सबूत के माध्यम से प्रदर्शित करने में सक्षम होने पर हटाया जा सकता है कि धारा 304 बी आईपीसी की सभी सामग्री संतुष्ट नहीं हुई है।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, मुखबिर (बोधि महतो) ने 1997 में अपनी बेटी (फुलवा देवी) की शादी राम सहाय महतो (अपीलकर्ता 1) से करवा दी और शादी के कुछ महीनों के भीतर ही राम सहाय की मां (पार्वती देवी/अपीलकर्ता 3) और उनके पिता नेमा महतो ने मोटरसाइकिल के 20 हजार रुपये की मांग कर बेटी को परेशान करना शुरू कर दिया। जब उसकी बेटी ने अपने माता-पिता की ओर से मांगों को पूरा करने में असमर्थता व्यक्त की, तो उसके साथ बेरहमी से मारपीट की गई और धमकी दी गई कि उसके पति की शादी दूसरी लड़की से कर दी जाएगी। चूंकि बोधि महतो की बेटी अपने ससुराल से लापता हो गई थी, इसलिए उसने 13 अगस्त 1997 को आईपीसी की धारा 304/201/34 के तहत शिकायत दर्ज कराई। जांच पूरी होने पर तीनों आरोपियों के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के साथ आरोप पत्र दायर किया गया था।

    एफआईआर दर्ज करने के पांच दिन बाद, गांव सिरमडीह से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बराकर नदी के किनारे से एक कंकाल बरामद किया गया, जिसे फुलवा देवी का माना जाता है। इसके बाद तीनों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 बी/34, 201/34 के तहत आरोप तय किए गए।

    निचली अदालत ने 20 सितंबर 1999 को आरोपी(ओं) को आईपीसी की धारा 304 बी और 201 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें और नेमा महतो (मृतक के ससुर) को दस साल और तीन साल की अवधि के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

    इससे व्यथित आरोपियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एक मई, 2007 को झारखंड हाईकोर्ट ने निचली अदालत के दोषसिद्धि का फैसला बरकरार रखा। इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

    अभियोजन पक्ष के मामले की जांच करने के लिए, ज‌स्टिस हिमा कोहली द्वारा लिखित फैसले में पीठ ने पहले आईपीसी की धारा 304 बी का उल्लेख किया।

    इस संबंध में, पीठ ने आईपीसी की धारा 304बी के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पालन किया:

    (i) कि किसी महिला की मृत्यु जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई हो या सामान्य परिस्थितियों से अलग हुई हो;

    (ii) कि ऐसी मृत्यु उसकी शादी के सात साल की अवधि के भीतर हुई होगी;

    (iii) महिला को उसकी मृत्यु से ठीक पहले अपने पति के हाथों क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार होना चाहिए; और

    (iv) कि ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की किसी मांग के लिए या उससे संबंधित रहा होगा।

    पीठ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113बी और धारा 304बी आईपीसी से जुड़े स्पष्टीकरण का हवाला देते हुए कहा,

    "मौजूदा मामले में, अभियोजन पक्ष द्वारा की गई घटिया जांच के बावजूद, हमारा विचार है कि आईपीसी की धारा 304 बी में निर्धारित परिस्थितियों को इस तथ्य के आलोक में स्थापित किया गया है कि मृतक फुलवा देवी शादी के कुछ म‌हीनो के भीतर, दहेज की मांग के बाद अपने वैवाहिक घर से लापता हो गई थी और उसकी मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में हुई थी, ऐसी मृत्यु को "दहेज मृत्यु" के रूप में वर्णित करना होगा।"

    हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार करते हुए बेंच ने कहा,

    "हमारे विचार में, ए-1 पर लगाया गया आक्षेपित निर्णय और सजा का आदेश हस्तक्षेप के योग्य नहीं है और बनाए रखा जाता है। ए-1 द्वारा दायर 2012 की आपराधिक अपील संख्या 575 तदनुसार खारिज की जाती है। उक्त अपीलकर्ता जो वर्तमान में जमानत पर है, सजा की शेष अवधि पूरी करने के लिए चार सप्ताह के भीतर निचली अदालत/जेल अधीक्षक के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है।"

    मृतक की सास द्वारा दी गई आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि दहेज की मांग के संबंध में उसके खिलाफ केवल कुछ सर्वव्यापक आरोप लगाए गए थे। कोर्ट ने कहा कि ए -3 द्वारा दायर अपील को अनुमति दी जाती है यदि किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है, तो उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया जाता है।

    केस शीर्षक: पार्वती देवी बनाम बिहार राज्य अब झारखंड राज्य और अन्य Criminal Appeal No. 574 Of 2012 और राम सहाय महतो बनाम बिहार राज्य अब झारखंड राज्य और अन्य। Criminal Appeal No. 575 Of 2012

    कोरम: सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली

    सीटेशन : एलएल 2021 एससी 764

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