सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, शीर्ष अदालत में हुए ये महत्वपूर्ण फैसले
LiveLaw News Network
8 Oct 2019 11:45 AM IST
अक्टूबर 2019 के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। देखिए सुप्रीम कोर्ट का वीकली राउंड अप में पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय।
जिस विवाह को कायम रखना मुश्किल हो रहा हो, उसके विच्छेद के लिए अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह उन मामलों में विवाह विच्छेद के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निहित अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जहां यह पाया जाता है कि विवाह आगे निभाना मुश्किल है, वह भावनात्मक रूप से मृत हो चुका है, जो बचाव से परे है और जो पूरी तरह से टूट चुका हो। भले ही मामले के तथ्यों से कानून की नजर में कोई ऐसा आधार उपलब्ध न हो, जिसके आधार पर तलाक की अनुमति दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, दोषी अपना अपराध स्वीकारते हुए जुर्माना देकर बच निकलेगा, ,सड़क यातायात के अपराध को आईपीसी और मोटर वाहन अधिनियम दोनों के तहत अभियोजित किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सड़क यातायात के अपराधों पर मोटर वाहन अधिनियम और भारतीय दंड संहिता दोनों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति खन्ना की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा असम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश राज्य को जारी निर्देशों को रद्द कर दिया है। इन निर्देशों में हाईकोर्ट ने कहा था कि सड़क यातायात अपराधों के मामले में कार्रवाई केवल मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के तहत की जाए, न कि भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत।
क्लब अगर अपने सदस्यों को खिलाता-पिलाता है तो उस पर कोई बिक्री कर नहीं लगेगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर क्लब अपने सदस्यों को खिलाता-पिलाता है तो उस पर बिक्री कर नहीं लगेगा भले ही वह क्लब निगमित है या नहीं है। पश्चिम बंगाल राज्य बनाम कलकत्ता क्लब लिमिटेड मामले में एक संदर्भ का उत्तर देते हुए न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, सूर्य कांत और रामा सुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि "परस्परता का सिद्धांत" जिसे सीटीओ बनाम यंग मेंस इंडियन असोसीएशन (1970) मामले में प्रतिपादित किया गया था, 46वें संविधान संशोधन के बाद भी प्रभावी है जिसके द्वारा अनुच्छेद 366(29-A) जोड़ा गया।
ट्रेड या कॉमर्स में 'वाकई इस्तेमाल' हुई अचल सम्पत्ति का विवाद ही 'कमर्शियल डिस्प्यूट' : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि वाणिज्यिक अदालत कानून की धारा 2(एक)(सी)(सात) के दायरे में आने के लिए अचल सम्पत्ति को कारोबार या वाणिज्य में 'विशेष तौर पर इस्तेमाल'किया गया हो या 'विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा'हो। न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 'कारोबार या वाणिज्य में खासतौर पर इस्तेमाल'शब्द का अर्थ है, 'वाकई इस्तेमाल हुआ' और इसे 'इस्तेमाल के लिए तैयार'या 'इस्तेमाल होने के लिए संभावित'अथवा 'इस्तेमाल होने वाला'नहीं कहा जा सकता।
मामूली मिलावट के नाम पर खाद्य अपमिश्रण के आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के मानकों का पालन नहीं किया जाता तो मिलावट करने के आरोपी को इस आधार पर बरी नहीं किया जा सकता कि मिलावट मामूली थी। 'राज कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' के मामले में आरोपी ने यह दलील दी थी कि यदि तय मानक की तुलना में मामूली मिलावट हो तो अदालत की ओर से आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। आरोपी के यहां से संग्रहित दूध के नमूने में 4.6 प्रतिशत मिल्क फैट और 7.7 प्रतिशत मिल्क सॉलिड नन-फैट पाया गया था, जो तय मानक के तहत 8.5 प्रतिशत होना चाहिए था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया था, जिसे सत्र अदालत एवं हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।
न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई सिर्फ़ इसलिए नहीं होने चाहिए कि उसने ग़लत फ़ैसला दिया : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई सिर्फ़ इसलिए नहीं शुरू की जानी चाहिए क्योंकि उसने ग़लत फ़ैसला दिया है या पास किया गया न्यायिक आदेश ग़लत था। ग़लती करना मानव का स्वभाव है, और हमें से एक भी, जो न्यायिक अधिकारी के पद पर रहे हैं, यह दावा नहीं कर सकते कि हमने कभी एक भी ग़लत आदेश नहीं दिया। अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि इस बात का साक्ष्य नहीं हो कि ग़लत आदेश किसी बाहरी कारण से दिया गया था न कि उस कारण से जिसका फ़ाइल में ज़िक्र किया गया है।
आईबीसी के लागू होने की तिथि को आवेदन के परिसीमन के लिए ज़िम्मेदार मानना पूरी तरह असंगत : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शोध-अक्षमता और दिवालिया क़ानून (आईबीसी) के लागू होने की तिथि इस कोड के तहत दायर किए गए मामलों के लिए परिसीमन की शुरुआत का कारण नहीं बन सकता। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और वी रामसुब्रमनियन की पीठ ने इस बारे में कहा कि चूँकि इस तरह के आवेदन कोड के तहत दायर किए जाते हैं इसलिए परिसीमन अधिनियम का अनुच्छेद 137 इन मामलों पर लागू होगा।
डॉक्ट्राइन ऑफ प्रुडेंस : पत्नी, चार बच्चों के हत्यारे की मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील
उच्चतम न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका को आंशिक तौर पर मंजूर करते हुए पत्नी और चार बच्चों की हत्या के दोषी व्यक्ति सुदम उर्फ राहुल कनीराम जाधव की फांसी की सजा आजीवन कारावास में तब्दील कर दी है। सुदम अपनी पत्नी और चार बच्चों की गला दबाकर मारने का अभियुक्त था। निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड का आदेश सुनाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी 2012 में अपनी मोहर लगायी थी। उसकी पुनरीक्षण याचिका भी 'सर्कुलेशन' प्रक्रिया के तहत खारिज कर दी गयी थी। (पुनर्विचार याचिका को अदालत कक्ष में सुने बिना खारिज किये जाने को डिस्मिस्ड बाई सर्कुलेशन कहा जाता है।) हालांकि मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक बनाम रजिस्ट्रार, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले में आये फैसले के आलोक में उसकी समीक्षा याचिका फिर से खुली अदालत में सुनी गयी।
'प्रिंसिपल' से क्रॉस एक्जामिन वाले मामले में पॉवर ऑफ अटॉर्नी गवाही नहीं दे सकता, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्तारी अधिकार (पॉवर ऑफ अटॉर्नी) वाला व्यक्ति वैसे मामलों में मूल मालिक (प्रिंसिपल) की ओर से गवाही नहीं दे सकता, जिनके बारे में केवल मालिक को ही जानकारी हो और जिनमें उसे क्रॉस-एक्जामिन (प्रतिपृच्छा) की जा सकती हो। इकरारनामे की शर्तों की नाफर्मानी के कारण जारी किये गये आदेश (स्पेशल परफॉर्मेंस) से संबंधित मुकदमे से जुड़ी इस अपील में यह दलील दी गयी थी कि बिक्री के समझौते की शर्तों को पूरा करने के संबंध में अपनी तत्परता और इच्छा जाहिर करने के लिए मुद्दई (वादी) कटघरे में खड़ा नहीं हुआ।