क्लब अगर अपने सदस्यों को खिलाता-पिलाता है तो उस पर कोई बिक्री कर नहीं लगेगा : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Oct 2019 3:58 AM GMT

  • क्लब अगर अपने सदस्यों को खिलाता-पिलाता है तो उस पर कोई बिक्री कर नहीं लगेगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर क्लब अपने सदस्यों को खिलाता-पिलाता है तो उस पर बिक्री कर नहीं लगेगा भले ही वह क्लब निगमित है या नहीं है।

    पश्चिम बंगाल राज्य बनाम कलकत्ता क्लब लिमिटेड मामले में एक संदर्भ का उत्तर देते हुए न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, सूर्य कांत और रामा सुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि "परस्परता का सिद्धांत" जिसे सीटीओ बनाम यंग मेंस इंडियन असोसीएशन (1970) मामले में प्रतिपादित किया गया था, 46वें संविधान संशोधन के बाद भी प्रभावी है जिसके द्वारा अनुच्छेद 366(29-A) जोड़ा गया।

    अनुच्छेद 366(29-A) ने एक ऐसी काल्पनिक कहानी को गढ़ा कि कुछ कारोबार को 'बिक्री' माना जाएगा। इसके क्लाउज e और f इस मामले के संदर्भ में संगत हैं। ये क्लाउज हैं :

    (e) किसी ग़ैर-निगमित या लोगों की एक निकाय नक़द लेकर, या बाद में भुगतान या फिर किसी अन्य शर्तों के अधीन वस्तुओं की आपूर्ति करता है तो उस पर कर लगेगा;

    (f) किसी सेवा के तहत या किसी अन्य रूप में अगर नक़द, बाद में भुगतान मानवीय खपत के लिए खाद्य या पेय (भले ही वह मादक हो या नहीं) सामग्री आपूर्ति की जाती है तो इस तरह की वस्तुओं की आपूर्ति करनेवाले की ओर से इसे बिक्री माना जाएगा और जो इस तरह की वस्तुओं को प्राप्त करता है उसे क्रेता माना जाएगा।;

    पारस्परिकता का सिद्धांत

    अगर किसी गतिविधि को अंजाम देने वाले लोग और उसका लाभ उठाने वाले लोग दोनों एक ही हैं तो उस स्थिति में इस गतिविधि पर कर की देनदारी के संदर्भ में 'पारस्परिकता का सिद्धांत' लागू होगा। अगर पैसा देने वाले और इस गतिविधि में शामिल होने वाले व्यक्ति में समानता है तो उनके बीच एक पूर्ण पहचान स्थापित की जाती है। एक क्लब और उसके सदस्यों के बीच किसी सेवा को लेकर पहचान की पारस्परिकता होती है। इसलिए अगर कोई क्लब अपने सदस्यों को कोई सेवा उपलब्ध कराता है तो उसे 'बिक्री' नहीं कहा जा सकता क्योंकि कोई चीज़ ख़ुद को बेची नहीं जा सकती – यह पारस्परिकता का सिद्धांत है।

    अदालत के समक्ष सवाल यह था कि 46वें संविधान संशोधन के बाद जब अनुच्छेद 366(29A) इसमें जोड़ा गया उसके बाद भी 'पारस्परिकता का सिद्धांत' लागू होगा या नहीं। अदालत ने इसका जवाब हाँ में दिया।

    अदालत ने कहा, "अनुच्छेद 366(29A) में यह स्पष्ट किया गया है कि 'कोई ग़ैर-निगमित एसोसीएशन या निकाय या व्यक्ति' से मतलब है कि क्लब निगमित रूप में नहीं है जिसे कर की परिधि में लाने की बात कही गई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि ग़लती से यह मान लिया गया था कि सदस्यों वाले क्लबों की ओर से निगमित रूप से की जाने वाले बिक्री कर लगाए जाने लायक़ है।"

    अदालत ने कहा कि 46वें संशोधन ने यंग मेंस इंडियन एसोसएशन के मामले को सही परिदृश्य में नहीं पढ़ा। इस मामले में पक्षकार एक कंपनी थी न कि क्लब। किसी क्लब की उसकी सेवाओं के लिए बिक्री कर देनदारी उसके निगमित स्टेटस पर निर्भर नहीं है।

    चूँकि क्लब और उसके सदस्यों के बीच कोई बिक्री कारोबार नहीं है क्योंकि कोई ख़ुद को ही किसी चीज़ की बिक्री नहीं कर सकता। इसलिए अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 366(29A)(e) इस पर लागू नहीं होता।

    क्लब अपने सदस्यों के एजेंट के रूप एन काम करता है और जब वह अपने सदस्यों को कोई सेवा देता है तो इसमें कुछ भी स्थानांतरित नहीं होता। इसमें न तो कोई 'विक्रेता' होता है और न ही कोई 'क्रेता'।

    अदालत ने कहा कि क्लाउज (f) को इसलिए जोड़ा गया क्योंकि होटलों में खाद्य और पेय सामग्रियों की आपूर्ति को कर के तहत लाया जा सके।

    जस्टिस नरीमन इस फ़ैसले को लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि अगर यह व्याख्या की जाए कि क्लबों में आपूर्ति की जाने वाली खाद्य और पेय सामग्री कर के अधीन आएगा तो इससे 'बेतुकी' स्थिति पैदा हो जाएगी जब अन्य वस्तुओं की आपूर्ति को क्लाउज (e) के तहत कर योग्य नहीं समझा जाता।

    "दूसरी तरह देखा जाए, सदस्यों का क्लब ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति कर सकता हाँ जो न तो खाद्य है और न ही पेय, उदाहरण के लिए साबुन, काज़्मेटिक्स और घर में प्रयोग होनेवाली अन्य वस्तुएँ। ये वस्तुएँ 'माल' हो सकती हैं पर ये सब-क्लाउज (f) के तहत नहीं आएँगे क्योंकि ये खाद्य या पेय पदार्थ नहीं हैं और इसलिए इस सब-क्लाउज के तहत इन पर कर नहीं लगाया जा सकता। इससे बहुत ही बेतुकी स्थिति पैदा हो जाएगी जिससे मेम्बर्ज़ क्लब में खाद्य और पेय पर कर लगेगा जबकि इसी क्लब में आपूर्ति की जाने वाली अन्य वस्तुओं पर कर नहीं लगेगा। इस कारण से भी यह स्पष्ट है कि सब-क्लाउज (f) का विषयवस्तु सब-क्लाउज (e) से बिलकुल अलग है और यह मेम्बर्ज़ क्लब पर लागू नहीं होता।

    अदालत के निष्कर्ष इस तरह से थे -

    (1) 46वें संविधान संशोधन के बाद पारस्परिकता का सिद्धांत निगमित और ग़ैर-निगमित मेम्बर्ज़ क्लब पर लागू होता रहेगा।

    (2) यंग मेंस इंडियन असोसीएशन और अन्य फ़ैसले जो इस सिद्धांत पर लागू होते थे, वे 46वें संशोधन के बाद भी लागू होते रहेंगे।

    (3) सब-क्लाउज (f) और अनुच्छेद 366(29-A) मेम्बर्ज़ क्लब पर लागू नहीं होंगे।

    खाद्य और पेय सामग्रियों की आपूर्ति के कारण क्लबों पर लगने वाले सेवा कर के बारे में अदालत ने कहा कि इस पर अलग मामले के तहत ग़ौर किया जाएगा।



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