आईबीसी के लागू होने की तिथि को आवेदन के परिसीमन के लिए ज़िम्मेदार मानना पूरी तरह असंगत : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

5 Oct 2019 2:22 AM GMT

  • आईबीसी के लागू होने की तिथि को आवेदन के परिसीमन के लिए ज़िम्मेदार  मानना पूरी तरह असंगत : सुप्रीम कोर्ट

    "चूँकि 'आवेदन' ऐसी याचिकाएँ हैं जिन्हें संहिता के तहत दायर किए जाते हैं, परिसीमन अधिनियम का अनुच्छेद 137 ही इस तरह के आवेदनों पर लागू होंगे"।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शोध-अक्षमता और दिवालिया क़ानून (आईबीसी) के लागू होने की तिथि इस कोड के तहत दायर किए गए मामलों के लिए परिसीमन की शुरुआत का कारण नहीं बन सकता।

    न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और वी रामसुब्रमनियन की पीठ ने इस बारे में कहा कि चूँकि इस तरह के आवेदन कोड के तहत दायर किए जाते हैं इसलिए परिसीमन अधिनियम का अनुच्छेद 137 इन मामलों पर लागू होगा।

    पीठ सागर शर्मा बनाम फ़ीनिक्स आर्क प्राइवेट लिमिटेड के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पीठ ने इस बारे में एनसीएलटी के आदेश को निरस्त कर दिया और याचिका पर दुबारा ग़ौर किए जाने का निर्देश दिया।

    बीके एजुकेशनल सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम पराग गुप्ता एंड असोसीयट्स मामले में आए फ़ैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि आईबीसी 1 दिसंबर 2016 से लागू हुआ और इसलिए कोड के उद्देश्य से किसी भी तरह की परिसीमन अवधि की शुरुआत के लिए इसे ज़िम्मेवार मानना पूरी तरह असंगत है।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोड की धारा 7 के तहत दायर आवेदन को रेहन की देनदारी का आवेदन नहीं माना जा सकता। यह एक ऐसा आवेदन है जो वित्तीय ऋणदाता की ओर से यह कहते हुए दायर किया जाता है कि कोड की परिभाषा के अनुसार देनदारी से चूक हुई है और नहीं चुकाई गई यह राशि ₹100,000 या उससे अधिक है जिसके बाद इस पर कोड लागू होता है।


    Tags
    Next Story