NDPS Act | कानून न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाए बिना जब्त वाहन को अनिश्चित काल तक रखने की अनुमति नहीं देता: उड़ीसा हाईकोर्ट

Update: 2025-03-27 12:13 GMT
NDPS Act | कानून न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाए बिना जब्त वाहन को अनिश्चित काल तक रखने की अनुमति नहीं देता: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) के तहत प्रावधान बिना किसी उचित कारण के जब्त वाहन को अनिश्चित काल तक रखने का आदेश नहीं देते, खासकर तब जब ऐसा रखने से वाहन का क्षरण और मूल्यह्रास होता है।

संरचनात्मक और आर्थिक क्षरण को रोकने के लिए वाहन की अंतरिम रिहाई के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा -

“कानून संपत्ति को अनिश्चित काल तक रखने की अनुमति नहीं देता, जब उसकी हिरासत न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए बंद हो जाती है। बल्कि स्थापित कानूनी सिद्धांत यह निर्धारित करता है कि जब्त संपत्ति को संरक्षित और सुरक्षित रखा जाना चाहिए, न कि अनावश्यक गिरावट और बर्बादी के अधीन किया जाना चाहिए।”

मामले की पृष्ठभूमि

30.03.2023 को फ़िरिंगिया पुलिस स्टेशन को ऑटो-रिक्शा में प्रतिबंधित पदार्थ (गांजा) ले जाने वाले व्यक्तियों के बारे में विश्वसनीय जानकारी मिली। संदिग्ध वाहन को रोका गया और उसमें 11 कैरी बैग में 78.7 किलोग्राम गांजा पाया गया। वाहन के साथ प्रतिबंधित पदार्थ को जब्त कर लिया गया और NDPS Act की धारा 20(बी)(ii)(सी), 25 और 29 के तहत मामला दर्ज किया गया और याचिकाकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया।

याचिकाकर्ता ने एडिशनल सेशन जज, फुलबनी के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें मुकदमे के लंबित रहने तक वाहन को उसकी हिरासत में छोड़ने की प्रार्थना की गई। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने NDPS Act की धारा 52-ए(1) का हवाला देते हुए इस तरह का आवेदन खारिज कर दिया, जो मादक पदार्थों के परिवहन में इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों की जांच से पहले निपटान को अनिवार्य बनाता है, न कि अभियुक्त के पक्ष में अंतरिम रिहाई को।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

न्यायालय ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने NDPS Act की धारा 52-ए(1) के तहत प्रतिबंध का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता की हिरासत में वाहन को छोड़ने से इनकार किया, क्योंकि उक्त वाहन सीधे गांजा के परिवहन में शामिल पाया गया। इसलिए न्यायालय के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या जब्त वाहन की अंतरिम रिहाई कानूनी रूप से स्वीकार्य है।

उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर देने के लिए न्यायालय ने सुंदरभाई अंबाला देसाई बनाम गुजरात राज्य (2002) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया -

“हमारे विचार में चाहे जो भी स्थिति हो, ऐसे जब्त वाहनों को लंबे समय तक पुलिस थानों में रखने का कोई फायदा नहीं है। मजिस्ट्रेट को उचित बांड और गारंटी के साथ-साथ किसी भी समय आवश्यकता पड़ने पर उक्त वाहनों की वापसी के लिए तुरंत उचित आदेश पारित करना चाहिए।”

इसी तरह हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बिश्वजीत डे बनाम असम राज्य, 2025 लाइव लॉ (एससी) 30 में पुलिस हिरासत में बड़ी संख्या में वाहनों का न्यायिक संज्ञान लिया, जिन्हें खुले में रखा गया और कहा कि यदि उन्हें मुकदमे के दौरान नहीं छोड़ा जाता है तो वे बर्बाद हो जाएंगे और मौसम की मार झेलते हुए उनका मूल्य कम हो जाएगा।

इसने यह भी टिप्पणी की थी -

“NDPS Act के तहत किसी विशिष्ट प्रतिबंध के अभाव में और NDPS Act की धारा 51 के मद्देनजर, न्यायालय आपराधिक मामले के अंतिम निर्णय तक जब्त वाहन को वापस करने के लिए CrPC की धारा 451 और 457 के तहत सामान्य शक्ति का उपयोग कर सकता है। नतीजतन, ट्रायल कोर्ट के पास अंतरिम में वाहन को छोड़ने का विवेकाधिकार है।”

इस प्रकार, उपरोक्त उदाहरणों पर विचार करते हुए जस्टिस पाणिग्रही ने कहा कि न्यायिक उदाहरणों की सुसंगत पंक्ति ने पुष्टि की है कि जब्त वाहनों को पुलिस हिरासत में लंबे समय तक रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होता है और इसका परिणाम केवल उनकी क्रमिक गिरावट और मूल्यह्रास होता है।

उन्होंने कहा,

“यदि अनिश्चित काल तक बिना देखभाल के छोड़ दिया जाता है तो वाहन अनिवार्य रूप से संरचनात्मक गिरावट, यांत्रिक घिसाव और इसकी कार्यात्मक उपयोगिता और आर्थिक मूल्य दोनों में पर्याप्त कमी का सामना करेगा, जिससे यह भविष्य में उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा।”

परिणामस्वरूप, न्यायालय ने 3,00,000/- रुपये की नकद सुरक्षा जमा करने सहित कुछ शर्तें लगाकर याचिकाकर्ता की हिरासत में वाहन को छोड़ना उचित समझा।

उल्लेखनीय है कि जनवरी में रवींद्र कुमार बेहरा बनाम ओडिशा राज्य, 2025 लाइव लॉ (ओआरआई) 12 में उड़ीसा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने माना कि CrPC या NDPS Act के तहत अपराध करने के लिए जब्त किए गए वाहनों की अंतरिम रिहाई के लिए कोई रोक नहीं है। इस प्रकार, उचित शर्तों को रखकर जांच/परीक्षण के लंबित रहने के दौरान उन्हें छोड़ा जा सकता है।

NDPS Act की धारा 51 (जब्ती पर लागू होने वाले CrPC के प्रावधान) के साथ CrPC की धारा 451 और 457 को पढ़ने और बिश्वजीत डे (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के संदर्भ का उत्तर इस प्रकार दिया था-

NDPS Act के प्रावधानों के तहत आपराधिक मामले के निपटान तक अंतरिम अवधि में मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ के परिवहन के लिए इस्तेमाल किए गए किसी भी जब्त वाहन को वापस करने के लिए कोई विशिष्ट रोक/प्रतिबंध नहीं है।

NDPS Act के तहत किसी विशिष्ट प्रतिबंध के अभाव में तथा NDPS Act की धारा 51 के मद्देनजर न्यायालय आपराधिक मामले में अंतिम निर्णय आने तक जब्त वाहन को छोड़ने के लिए CrPC की धारा 451 तथा 457 के तहत सामान्य शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

न्यायालय के पास अंतरिम अवधि में जब्त वाहन को छोड़ने का विवेकाधिकार है, लेकिन प्रत्येक मामले में तथ्यों तथा परिस्थितियों के अनुसार कानून के अनुसार शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।

यदि न्यायालय आपराधिक मामले के लंबित रहने के दौरान वाहन को छोड़ने के लिए अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने का निर्णय लेता है तो मुकदमे के दौरान उसकी पहचान तथा पेशी सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त शर्तें लगाई जानी चाहिए। साथ ही मुकदमे के समापन तक उसकी बिक्री तथा/या हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए तथा ऐसे वाहन को पेश करने के लिए विशिष्ट वचनबद्धता प्रस्तुत की जानी चाहिए।

केस टाइटल: राजेश कुमार साहू बनाम ओडिशा राज्य

Tags:    

Similar News