अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे हिंदू पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी: उड़ीसा हाईकोर्ट

Update: 2025-04-05 04:25 GMT
अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे हिंदू पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि दूसरे/ अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे न केवल स्व-अर्जित बल्कि अपने पिता की पैतृक संपत्ति के भी उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 16 अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) वैध बच्चों को वर्ग-I वारिस के रूप में माता-पिता की स्व अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने का अधिकार देता है।

अवैध/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के उत्तराधिकार के अधिकार के बारे में कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हुए जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने कहा -

“HMA की धारा 16 अमान्य और अमान्यकरणीय विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है, यह सुनिश्चित करती है कि वे अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं। HSA के तहत HMA की धारा 16 के तहत वैध बच्चों सहित वैध बच्चे, वर्ग-I उत्तराधिकारियों की श्रेणी में आते हैं, जिससे उन्हें अपने माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने का निर्विवाद अधिकार मिलता है।”

मामले की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी ने फैमिली कोर्ट, भुवनेश्वर के समक्ष दीवानी कार्यवाही दायर की, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई कि वह स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती ('मृतक') की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। इसलिए उनकी वैध कानूनी उत्तराधिकारी है। उसने दावा किया कि उनका विवाह 05.06.1966 को हिंदू रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ और वे साथ रहते हैं।

उसने आगे आरोप लगाया कि अपीलकर्ता केवल मृतक के साथ काम कर रहा था और उसके साथ उसका कोई वैध वैवाहिक संबंध नहीं था। फैमिली कोर्ट ने 29.10.2021 को मुकदमे का फैसला सुनाया, जिसमें प्रतिवादी को मृतक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी और कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया गया, जिससे उसे उसकी पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार मिला।

फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष वैवाहिक अपील दायर की, जिसमें इस आधार पर निर्णय को चुनौती दी गई कि उसे अपना मामला पेश करने का उचित अवसर नहीं दिया गया। हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता के गैर-उपस्थित होने के लिए उचित कारण थे और माना कि फैमिली कोर्ट का फैसला अपीलकर्ता को मामले को चुनौती देने का उचित अवसर दिए बिना पारित किया गया।

नतीजतन, इसने 29.10.2021 का फैसला रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए फैमिली कोर्ट, भुवनेश्वर को वापस भेज दिया। इसके अतिरिक्त, दोनों पक्षों की बढ़ती उम्र को देखते हुए, इसने विवादित संपत्ति के संबंध में अंतरिम व्यवस्था की और निर्देश दिया कि मामले के अंतिम परिणाम तक संपत्ति से उत्पन्न होने वाले लाभ को 60:40 के अनुपात में साझा किया जाएगा, जिसमें 60% प्रतिवादी के पक्ष में और 40% अपीलकर्ता के पक्ष में होगा।

इसके बाद फैमिली कोर्ट ने मामले की फिर से सुनवाई की और 12.12.2023 को एक नया फैसला सुनाया, जिसमें एक बार फिर प्रतिवादी को मृतक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी और उसका कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया गया, जिससे उसके पैतृक और स्व-अर्जित संपत्तियों को विरासत में पाने के उसके अधिकार की पुष्टि हुई। व्यथित होकर अपीलकर्ता ने यह वैवाहिक अपील दायर की।

अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित सीनियर वकील बंशीधर बाग ने फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष पर सवाल उठाया कि प्रतिवादी मृतक का एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी है तथा तर्क दिया कि मृतक के साथ अपीलकर्ता के रिश्ते से पैदा हुए बच्चे HMA की धारा 16 के तहत वैध हैं। इसलिए वे HMA के तहत वर्ग-I वारिस के रूप में अपने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने के हकदार हैं।

न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायालय ने कहा कि अंतिम आदेश में फैमिली कोर्ट ने केवल यह घोषित किया कि प्रतिवादी मृतक का कानूनी उत्तराधिकारी है। उसकी पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति का उत्तराधिकारी है। हालांकि, निर्णय में चर्चा के बावजूद, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि अपीलकर्ता से पैदा हुए बच्चों को मृतक की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों पर अधिकार है।

जहां तक ​​शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों का सवाल है, न्यायालय ने कहा कि HMA की धारा 16 शून्य और शून्यकरणीय विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है। इस प्रकार उन्हें अपने माता-पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार देती है। इसके अलावा, HSA का कहना है कि वैध बच्चे, जिनमें HMA की धारा 16 के तहत वैध बच्चे भी शामिल हैं, वर्ग-I उत्तराधिकारियों की श्रेणी में आते हैं, जो उन्हें अपने माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार देता है।

रेवनसिद्दप्पा और अन्य बनाम मल्लिकार्जुन एवं अन्य, 2023 लाइव लॉ (एससी) 737 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें यह माना गया कि HMA की धारा 16(3) ऐसे बच्चों के अधिकारों को केवल उस संपत्ति तक सीमित करती है, जो संयुक्त परिवार की संपत्ति में से माता-पिता के हिस्से में आती है। इसके अलावा स्व-अर्जित संपत्ति भी शामिल है। निर्णय ने आगे स्पष्ट किया कि जहां माता-पिता हिंदू मिताक्षरा सहदायिक है, वहां HMA की धारा 6(3) का स्पष्टीकरण लागू होता है। धारा 6(3) का स्पष्टीकरण कहता है कि हिंदू मिताक्षरा सहदायिक का हित उस संपत्ति में हिस्सा माना जाएगा, जो उसे आवंटित किया गया होता यदि संपत्ति का विभाजन उसकी मृत्यु से ठीक पहले हुआ होता, भले ही वह विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

"इसका मतलब यह है कि माता-पिता की संपत्ति के हस्तांतरण से पहले माता-पिता की मृत्यु से ठीक पहले एक काल्पनिक विभाजन हुआ माना जाना चाहिए, जिससे सहदायिक संपत्ति में माता-पिता का हिस्सा निर्धारित हो सके। एक बार जब मृतक माता-पिता का हिस्सा इस काल्पनिक विभाजन के माध्यम से पता चल जाता है तो शून्य या शून्यकरणीय विवाह से पैदा हुए बच्चों सहित कानूनी उत्तराधिकारी ऐसी संपत्ति में अपने सही हिस्से के हकदार होते हैं।"

तदनुसार, न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता और मृतक से पैदा हुए बच्चे उसकी स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं। इसके अतिरिक्त, चूंकि मृतक पिता मिताक्षरा सहदायिक है, इसलिए ऐसे बच्चे भी पैतृक संपत्ति में उसके हिस्से के उत्तराधिकारी होंगे, जो उस हिस्से तक सीमित होगा, जो उसकी मृत्यु से पहले काल्पनिक विभाजन पर मृतक को आवंटित किया गया होगा। इस संबंध में फैमिली कोर्ट के आदेश को संशोधित किया गया।

केस टाइटल: संध्या रानी साहू @ मोहंती बनाम श्रीमती अनुसया मोहंती

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