आंगनवाड़ी केंद्र Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं: त्रिपुरा हाईकोर्ट

Update: 2024-06-04 05:46 GMT

बीना रानी पॉल एवं अन्य बनाम त्रिपुरा राज्य एवं अन्य के मामले में जस्टिस एस. दत्ता पुरकायस्थ की त्रिपुरा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने माना कि आंगनवाड़ी केंद्र ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Gratuity Act) के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं। इस प्रकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका ग्रेच्युटी की हकदार हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता गहन बाल विकास सेवा योजना (ICDS योजना) के तहत विभिन्न आंगनवाड़ी केंद्रों पर अलग-अलग तिथियों पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) और आंगनवाड़ी सहायिका (AWH) के रूप में कार्यरत थीं। याचिकाकर्ता 2021 और 2023 के बीच अलग-अलग तारीखों पर सेवानिवृत्त हुए। जुलाई 2023 में याचिकाकर्ताओं ने त्रिपुरा सरकार के समाज कल्याण और सामाजिक शिक्षा निदेशक (प्रतिवादी) को ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करने के लिए अभ्यावेदन दायर किया, लेकिन प्रतिवादी ने 11.08.2023 को एक पत्र द्वारा ग्रेच्युटी के भुगतान को अस्वीकार कर दिया।

इस प्रकार, रिट याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि AWW और AWH ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Gratuity Act) के तहत ग्रेच्युटी का दावा कर सकते हैं, जो कि मणिबेन मगनभाई भारिया बनाम जिला विकास अधिकारी दाहोद और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर है। इसमें यह स्पष्ट रूप से माना गया कि AWW और AWH सेवानिवृत्ति के बाद अन्य सेवानिवृत्ति लाभों के अलावा ग्रेच्युटी के हकदार हैं।

इसके अलावा, आंगनवाड़ी Gratuity Act की धारा 1(3)(बी) के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के अर्थ में आते हैं। दूसरी ओर, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि मणिबेन मामले पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि गुजरात राज्य पहले ही AWW और AWH के लिए चयन प्रक्रिया, पात्रता मानदंड, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, अनुशासनात्मक कार्रवाई आदि के बारे में विस्तृत प्रावधान करने वाली समग्र योजना लेकर आया था और अदालत का फैसला इस समग्र योजना पर आधारित था। इसके अलावा, त्रिपुरा राज्य मामले में पक्ष नहीं है और मणिबेन का फैसला अमान्य है। यह भी तर्क दिया गया कि आंगनवाड़ी केंद्र Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में नहीं आते हैं।

अदालत के निष्कर्ष

अदालत ने देखा कि Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' किसी राज्य में लागू किसी भी कानून के अर्थ में प्रतिष्ठान होना चाहिए, जो दुकानों या प्रतिष्ठानों से संबंधित हो।

अदालत ने आगे कहा कि आंगनवाड़ी केंद्र ICDS योजना का निर्माण हैं। एकीकृत ICDS योजना को लागू करने के लिए प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र का प्रबंधन जमीनी स्तर पर AWW और AWH द्वारा किया जाता है। प्री-स्कूल शिक्षा आंगनवाड़ी केन्द्रों की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है। इस प्रकार बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 11 और इसके संगत नियम प्रासंगिक हो जाते हैं। बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार नियम (त्रिपुरा), 2011 के नियम 11(4)(सी) के तहत त्रिपुरा में आंगनवाड़ी केन्द्रों में प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान की जाती है।

हालांकि, मणिबेन मामले में यह निर्धारित किया गया कि दिनांक 03.04.1997 की अधिसूचना द्वारा भारत सरकार ने Gratuity Act के तहत एस्टेब्लिशमेंट के अर्थ में “शैक्षणिक संस्थानों” को शामिल किया है। चूंकि आंगनवाड़ी केन्द्रों में ATE Act की धारा 11 के अनुसार प्री-स्कूल चरण की विशुद्ध रूप से शैक्षिक गतिविधियां AAW और AWH के माध्यम से की जाती हैं, इसलिए मणिबेन निर्णय के अनुसार, आंगनवाड़ी केन्द्र Gratuity Act के तहत “एस्टेब्लिशमेंट” के अर्थ में आते हैं।

न्यायालय ने आगे कहा कि मणिबेन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आंगनवाड़ी केन्द्रों को गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और 6 महीने से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के कार्य करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत वैधानिक रूप से मान्यता दी गई है।

इस प्रकार न्यायालय ने माना कि आंगनवाड़ी केन्द्र राज्य सरकार की संस्था/शाखा है, जिसके माध्यम से न केवल ICDS योजना को क्रियान्वित किया जाता है बल्कि महिलाओं और बच्चों को प्री-स्कूल शिक्षा और पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के कर्तव्यों का भी निर्वहन किया जाता है।

इस प्रकार त्रिपुरा के आंगनवाड़ी केन्द्र Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि यह तर्क कि आंगनवाड़ी केन्द्र को 2 लोगों द्वारा चलाया जा सकता है, जबकि Gratuity Act के तहत एक 'एस्टेब्लिशमेंट' के लिए 10 या उससे अधिक लोगों की आवश्यकता होती है, उसको स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि सभी आंगनवाड़ी केन्द्र त्रिपुरा सरकार के समाज कल्याण और सामाजिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत कार्य करते हैं। विभाग द्वारा कई केन्द्रों के लिए कई आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को नियुक्त करने के सामान्य आदेश हैं।

इसके अलावा, मणिबेन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आंगनवाड़ी केंद्र और मिनी आंगनवाड़ी केंद्र राज्य की आंगनवाड़ी स्थापना का हिस्सा हैं। इस प्रकार, यह नहीं माना जा सकता कि प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र अलग और विशिष्ट 'एस्टेब्लिशमेंट' है।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने रिट याचिका की अनुमति दी।

केस टाइटल- बीना रानी पॉल और अन्य बनाम त्रिपुरा राज्य और अन्य

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