पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए: त्रिपुरा हाईकोर्ट
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, इसके अंतर्गत बनाए गए नियम तथा वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों का संबंधित राज्य प्राधिकारियों द्वारा सभी स्तरों पर ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस अपरेश कुमार सिंह तथा जस्टिस विश्वजीत पालित की खंडपीठ ने राज्य प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि ऐसे दिशा-निर्देश एक बार फिर क्षेत्र में कार्यरत अधिकारियों को प्रसारित किए जाएं, जिससे ज़मीनी स्तर पर अधिकारियों द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (1960 का अधिनियम) तथा इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के प्रावधानों का अनुपालन न किए जाने के मामले फिर से न दोहराए जाएं।
न्यायालय एक वकील तथा पशु अधिकार कार्यकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो एनजीओ “सोसाइटी फॉर वेलफेयर ऑफ एनिमल एंड नेचर (स्वान)” के सदस्य के रूप में पशु कल्याण गतिविधियों के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का ध्यान 25 जुलाई, 2024 को दोपहर करीब 03:00 बजे कामरंगबाड़ी, कैलाशहर, उनाकोटी जिले में घटित घटना की ओर आकर्षित किया, जिसमें एक वाहन को अवैध रूप से गाय, बछड़े और बैल सहित मवेशियों को अमानवीय तरीके से परिवहन करते हुए पकड़ा गया था, जो 1960 के अधिनियम, पशु परिवहन नियम, 1978, पशु क्रूरता निवारण (केस प्रॉपर्टी पशुओं की देखभाल और रखरखाव) नियम, 2017 और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि स्थानीय कार्यकर्ता द्वारा सूचना दिए जाने और 1960 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत कैलाशहर पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत के बावजूद, जब्त किए गए मवेशियों और वाहन को पुलिस ने 1960 के अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना छोड़ दिया।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि शिकायतकर्ता को शिकायत वापस लेने के लिए प्रभावित किया जा रहा है।
सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि पुलिस अधीक्षक, उनाकोटी जिला द्वारा दिनांक 22 नवंबर, 2024 के कार्यालय आदेश के अनुसार, इस तरह के लापरवाह कृत्य के लिए 'अंतिम चेतावनी' लगाकर कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद संबंधित निरीक्षक के खिलाफ पर्याप्त कार्रवाई की गई।
सरकारी वकील द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी अधिकारी अधिनियम, 1960 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उन्होंने प्रतिवादी-अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि भविष्य में इस संबंध में कानून के अक्षर का विधिवत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए ऐसी सभी सावधानियां बरती जाएंगी।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादी-अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए जा सकते हैं कि भविष्य में ऐसे जब्त पशुओं की जब्ती और रिहाई के मामलों में अधिनियम, 1960 और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन किया जाए।
न्यायालय ने कहा,
"हमारा यह मानना है कि 1960 के अधिनियम, उसके तहत बनाए गए नियमों और समय-समय पर वैधानिक अधिकारियों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सभी स्तरों पर संबंधित अधिकारियों द्वारा ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए। संबंधित प्रतिवादी यह भी सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे दिशा-निर्देश एक बार फिर से फील्ड में मौजूद अधिकारियों को प्रसारित किए जाएं, जिससे ज़मीनी स्तर पर अधिकारियों द्वारा 1960 के अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों का पालन न करने के मामले फिर से न दोहराए जाएं।"
केस टाइटल: परमिता सेन बनाम त्रिपुरा राज्य और अन्य।