रिटायर्ड कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति या पदोन्नति के लाभों का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-11-28 05:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस कर्मचारी की पदोन्नति उसकी रिटायरमेंट से पहले नहीं हुई है, वह पूर्वव्यापी पदोन्नति और पदोन्नति से जुड़े काल्पनिक लाभों का हकदार नहीं होगा।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा,

"पदोन्नति केवल पदोन्नति के पद पर कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है, न कि रिक्ति होने की तिथि या सिफारिश की तिथि पर।"

खंडपीठ ने प्रतिवादी नंबर 1 कर्मचारी को काल्पनिक लाभ दिए जाने के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर अपील पर सुनवाई की, जिसकी मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी (CSO) के पद पर पदोन्नति सेवानिवृत्ति के बाद स्वीकृत की गई।

हाईकोर्ट ने प्रशासनिक न्यायाधिकरण के निर्णय को मंजूरी दी, जिसमें पाया गया कि अपीलकर्ता की ओर से देरी और लापरवाही के कारण प्रतिवादी नंबर 1 की पदोन्नति रिटायरमेंट से पहले प्रभावी नहीं हुई। हालांकि रिटायरमेंट से पहले इसकी सिफारिश की गई। इसलिए पश्चिम बंगाल सेवा नियम, 1971 के नियम 54(1)(ए) के तहत पूर्वव्यापी पदोन्नति का निर्देश देने के बजाय न्यायाधिकरण ने अपीलकर्ताओं को पदोन्नति पदों का लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया,

“क्या प्रतिवादी नंबर 1, जिसे उसकी सेवानिवृत्ति से पहले पदोन्नति के लिए अनुशंसित किया गया, लेकिन प्रशासनिक देरी के कारण उच्च पद पर वास्तविक पदोन्नति नहीं मिली, वह अपनी रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति पद के काल्पनिक वित्तीय लाभों का हकदार है?”

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता-राज्य सरकार ने तर्क दिया कि सेवा न्यायशास्त्र किसी विशिष्ट सक्षम प्रावधान के बिना पूर्वव्यापी पदोन्नति को मान्यता नहीं देता। इसलिए जब तक कोई विशिष्ट नियम या असाधारण परिस्थितियां मौजूद न हों, तब तक काल्पनिक पदोन्नति पूर्वव्यापी रूप से नहीं दी जा सकती। इसने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में पश्चिम बंगाल सेवा नियम का नियम 54(1)(ए) पूर्वव्यापी पदोन्नति को रोकता है, इसलिए प्रतिवादी नंबर 1 काल्पनिक लाभों का भी हकदार नहीं होगा।

अपीलकर्ता के तर्क में बल पाते हुए जस्टिस मेहता द्वारा लिखित निर्णय ने प्रश्न का नकारात्मक उत्तर दिया और कहा कि प्रतिवादी नंबर 1 को नाममात्र का लाभ भी देना अनुचित होगा, क्योंकि उसने पदोन्नत पद (सीएसओ) का पदभार ग्रहण नहीं किया। उस पद पर कार्य नहीं किया।

न्यायालय ने कहा,

“पदोन्नति केवल पदोन्नति वाले पद पर कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है, न कि रिक्ति होने की तिथि या संस्तुति की तिथि पर। यह देखते हुए कि प्रतिवादी नंबर 1 अपनी पदोन्नति प्रभावी होने से पहले ही सेवानिवृत्त हो गया, वह मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के पदोन्नति वाले पद से जुड़े पूर्वव्यापी वित्तीय लाभों का हकदार नहीं है, क्योंकि उसने उस पद पर कार्य नहीं किया।”

बिहार राज्य विद्युत बोर्ड और अन्य बनाम धर्मदेव दास (2024) के मामले का संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने माना कि पदोन्नति तभी प्रभावी होती है, जब उसे प्रदान किया जाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति उस तिथि से प्रभावी नहीं होगी, जब विषयगत पद पर रिक्ति होती है या जब पद स्वयं सृजित होता है।

न्यायालय का तर्क इस तथ्य पर आधारित है कि जब कर्मचारी का कैडर में जन्म ही नहीं हुआ तो उसे पूर्वव्यापी प्रभाव से उक्त कैडर में कैसे पदोन्नत किया जा सकता है। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सेवा नियम के नियम 54(1)(ए) को ध्यान में रखा, जो किसी कर्मचारी को पूर्वव्यापी प्रभाव से पदोन्नति देने से रोकता है, जबकि उसकी पदोन्नति को मंजूरी भी नहीं दी गई।

न्यायालय ने कहा,

"इस मामले में यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 1 को उसकी रिटायरमेंट से पहले पदोन्नति के लिए अनुशंसित किया गया, लेकिन वह मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के कर्तव्यों को ग्रहण नहीं कर सका। पश्चिम बंगाल सेवा नियम के नियम 54(1)(ए) में स्पष्ट रूप से कहा गया कि किसी कर्मचारी को संबंधित वेतन पाने के लिए उच्च पद की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। इस प्रकार, सक्षम प्रावधान के अभाव में मरणोपरांत या पूर्वव्यापी पदोन्नति को रोका जा सकता है।"

तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।

केस टाइटल: पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य बनाम डॉ. अमल सतपथी और अन्य।

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