यौन अपराध मामले में आरोपी का मेडिकल जांच से इनकार करना जांच में सहयोग करने की अनिच्छा दर्शाता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 जून) को अपनी 9 वर्षीय बेटी के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को मेडिकल जांच से गुजरने का निर्देश दिया। कोर्ट ने उक्त निर्देश यह देखते हुए दिया कि उसका इनकार जांच में असहयोग के बराबर होगा।
कोर्ट पीड़ित लड़की की मां द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई। इसमें आरोपी को मेडिकल जांच के लिए उपस्थित होने के लिए कहने वाले पुलिस नोटिस पर रोक लगाई गई थी।
हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश पारित किया। यह आरोपी द्वारा जांच में सहयोग करने की शर्त पर था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जब पुलिस ने आरोपी को मेडिकल जांच के लिए उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी किया तो उसने विरोध किया।
उन्होंने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि जांच अधिकारी उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दे रहे हैं, यदि वे उसी अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए उपस्थित नहीं होते, जहां पीड़िता की जांच की गई। इसके बाद हाईकोर्ट ने उस नोटिस पर रोक लगा दी जिसमें आरोपी को चिकित्सा जांच से गुजरने के लिए कहा गया।
यह देखते हुए कि हाईकोर्ट का पहला अंतरिम आदेश आरोपी द्वारा जांच में सहयोग करने के अधीन था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल जांच से गुजरने से इनकार करने से पता चलता है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा है।
जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा,
"किसी भी स्थिति में उसका यह स्पष्ट बयान कि वह मेडिकल जांच से गुजरना नहीं चाहता है, यह दर्शाता है कि वह जांच में सहयोग करने के लिए तैयार नहीं है।"
खंडपीठ ने कहा,
"प्रतिवादी नंबर 2 को धारा 41-ए के नोटिस का अनुपालन करना होगा और जांच अधिकारी के निर्देशानुसार खुद को मेडिकल जांच के लिए प्रस्तुत करना होगा। वह बिना किसी ठोस आधार के उस मेडिकल सुविधा के बारे में आशंका व्यक्त नहीं कर सकता, जिसके लिए उसे भेजा जा रहा है।"
हाईकोर्ट के विवादित आदेश पर रोक लगाते हुए खंडपीठ ने आरोपी को 10 जुलाई, 2024 को सुबह 10 बजे मेडिकल जांच के लिए जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने कहा,
"हम 2024 के आईए नंबर 2 में कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पारित 23 मई, 2024 के आदेश पर रोक लगाने के लिए बाध्य हैं। प्रतिवादी नंबर 2 को मेडिकल जांच के लिए 10 जुलाई, 2024 को सुबह 10 बजे जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होगा।"
इस मामले में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 6, 10, भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 376 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम, 2015) (JJ Act) की धारा 75 के तहत गंभीर अपराध शामिल हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए एडवोकेट ए वेलन (एओआर) और नवप्रीत कौर ने कहा कि विवादित आदेश में यौन संबंध बनाने वाली मेडिकल रिपोर्ट और धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़िता के बयान को नजरअंदाज किया गया, जिससे आरोपी को फंसाया गया।