हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (13 अप्रैल, 2024 से 17 मई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
52A NDPS Act | प्रतिबंधित पदार्थ तभी प्राथमिक साक्ष्य बन जाता है, जब मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी जांच की जाती है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि खारिज कर दी। इसमें कहा गया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जब बल्क से सैंपल लिया गया था, तब मजिस्ट्रेट मौजूद थे, इसलिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रतिबंधित पदार्थ को प्राथमिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता।
NDPS Act की धारा 52 (4) का हवाला देते हुए जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की खंडपीठ ने कहा, "न्यायालय में प्रमाणित सूची का प्रस्तुतीकरण मात्र प्राथमिक साक्ष्य नहीं बन सकता, बल्कि तभी प्राथमिक साक्ष्य बन सकता है, जब संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रतिनिधि पार्सल के आरेखण के समय उपयुक्त लैब में जांच की जाए या तो मजिस्ट्रेट प्रतिनिधि पार्सल के साथ स्वयं लैब में जाएं या किसी राजपत्रित अधिकारी को सशक्त पुलिस अधिकारी के साथ प्रयोगशाला में प्रासंगिक जांच के लिए ले जाएं।"
केस टाइटल- कुलदीप सिंह उर्फ कीपा बनाम पंजाब राज्य
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विवाह के दौरान क्रूरता का आरोप लगाने वाली याचिका तलाक के बाद सुनवाई योग्य नहीं: आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने माना कि जब विवाह पहले ही टूट हो चुका हो तो दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) की धारा 498ए और धारा 3 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
यह आदेश अभियुक्त और उसके माता-पिता द्वारा आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में दायर आपराधिक मामले में उनकी डिस्चार्ज याचिकाओं के खिलाफ पारित बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनर्विचार याचिका में पारित किया गया।
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अनुशासित बल के कर्मचारी बिना किसी कारण के छुट्टी अवधि से अधिक समय तक रहने के हकदार नहीं: मेघालय हाइकोर्ट
मेघालय हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन की सिंगल बेंच ने अश्विन पट्टी बनाम भारत संघ के मामले में रिट याचिका पर निर्णय करते हुए कहा कि अनुशासित बलों के कर्मचारी बिना किसी उचित कारण के अपनी छुट्टी अवधि से अधिक समय तक रहने पर किसी भी राहत के पात्र नहीं।
केस टाइटल- अश्विन पट्टी बनाम भारत संघ
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धारा 125 सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ता आदेश धारा 127 के तहत वापस लिया जा सकता है, धारा 362 सीआरपीसी के तहत रोक ऐसे मामलों में लागू नहीं होती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश अंतिम या अंतरिम हो सकता है और धारा 127 सीआरपीसी के तहत वापस लिया या बदला जा सकता है। इसलिए धारा 362 सीआरपीसी के तहत रोक ऐसे मामलों में लागू नहीं होती।
धारा 362 सीआरपीसी के अधिदेश का अवलोकन करते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि यदि सीआरपीसी के तहत कोई प्रावधान प्रदान किया गया, जो निर्णय या अंतिम आदेश को वापस लेने या बदलने की अनुमति देता है तो धारा 362 सीआरपीसी के तहत प्रतिबंध उन प्रावधानों पर लागू नहीं होगा जैसा कि धारा 125 सीआरपीसी के मामले में है।
केस टाइटल- राजकुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य 2024
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लेटर्स पेटेंट अपील में डिवीजन बेंच के पास सिंगल जज के समक्ष अवमानना याचिका पर रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) में डिवीजन बेंच के पास सिंगल जज की अवमानना अदालत के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस राजबीर सहरावत ने कहा, “डिवीजन बेंच के पास रिट कोर्ट के आदेश के खिलाफ इस तरह की एलपीए पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है कि अवमानना अदालत मामले को आगे नहीं बढ़ाएगी अगर ऐसा आदेश पारित किया जाता है तो उसे अस्वीकार्य माना जाना चाहिए"।
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पति द्वारा बुनियादी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा न करना क्रूरता और परित्याग के बराबर: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका एकतरफा खारिज करने का फैसला बरकरार रखा। उक्त फैसले में कहा गया कि पति बुनियादी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहा, जो क्रूरता और परित्याग के बराबर है।
पति ने आरोप लगाया कि पत्नी अपने बच्चे के साथ अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली गई, जो क्रूरता के बराबर है। हालांकि न्यायालय ने पाया कि पति ने ही पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने में विफल होकर उसे छोड़ दिया और क्रूरता की।
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पेंशन अनुच्छेद 31(1) के तहत संपत्ति, इसमें कोई भी हस्तक्षेप संविधान का उल्लंघन: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
सेवानिवृत्त सेनेटरी इंस्पेक्टर के पेंशन अधिकारों की रक्षा करते हुए जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया है कि पेंशन एक कर्मचारी को मिलने वाला कड़ी मेहनत से अर्जित लाभ है, जो अनुच्छेद 31(1) के तहत “संपत्ति” है और इसमें कोई भी हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 31(1) का उल्लंघन होगा।
केस टाइटल: मोहम्मद शफी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
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सीआरपीसी की धारा 438 में यूपी संशोधन आईपीसी की धारा 376(3) के तहत आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर रोक नहीं लगाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018, जिसने राज्य में अग्रिम जमानत (धारा 438 सीआरपीसी) के प्रावधान को पुनर्जीवित किया (6 जून, 2019 से प्रभावी), धारा 376 आईपीसी की उपधारा (3) के तहत अपराध में दर्ज मामले आरोपी को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने पर रोक नहीं लगाता है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने 17.5 वर्षीय एक लड़के को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर 16 वर्षीय लड़की से छेड़छाड़ का आरोप है।
केस टाइटलः कृष्णा बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 3 अन्य 2024 लाइवलॉ (एबी) 309
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कर्मचारी नियोक्ता की ओर से अनुचित देरी के लिए रिटायरमेंट लाभों पर ब्याज पाने का हकदार: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट की जस्टिस नमित कुमार की पीठ ने माना कि रिटायरमेंट लाभों में अत्यधिक देरी होती है और देरी उचित नहीं है कर्मचारी ब्याज पाने का हकदार होगा। इसने माना कि कर्मचारी उस राशि पर ब्याज पाने का हकदार होगा जिसे नियोक्ता ने बिना किसी वैध औचित्य के अपने पास रख लिया था।
केस टाइटल- हीरा लाल करकारा बनाम पंजाब राज्य और अन्य
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तलाक की डिक्री को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील पति की मौत पर समाप्त नहीं होती: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा पति के पक्ष में दी गई तलाक की डिक्री को चुनौती देने वाली पत्नी द्वारा दायर अपील अपील की सुनवाई लंबित रहने तक पति की मृत्यु पर समाप्त नहीं होती है।
जस्टिस अनु शिवरामन और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने एक महिला की अपील को स्वीकार कर लिया और पति द्वारा दायर याचिका पर क्रूरता के आधार पर तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
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UP Land Ceiling Act की धारा 9 (2) के तहत मृत व्यक्ति के नाम पर जारी नोटिस के आधार पर कार्यवाही जारी नहीं रह सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश भूमि जोत पर सीलिंग अधिनियम, 1960 के तहत कोई कार्यवाही जारी नहीं रह सकती है, जो किसी मृत व्यक्ति के नाम पर धारा 9 (2) के तहत जारी नोटिस पर आधारित है।
संदर्भ के लिए, धारा 9 (2) नोटिस जारी करने (10 अक्टूबर, 1975 के बाद किसी भी समय) से संबंधित है, जो उक्त तारीख को उसके लिए लागू सीलिंग क्षेत्र से अधिक भूमि धारण करने वाले टेन्योर-धारक को इस तरह के नोटिस के 30 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने के लिए, इस तरह के रूप में उसकी सभी होल्डिंग्स के संबंध में एक बयान और ऐसे विवरण दे सकता है जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है।