पत्नी द्वारा पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के साथ क्रूरता के समान है।
एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमर नाथ (केशरवानी) की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-1 (आई-ए) और (आई-बी) के तहत तलाक के लिए पति के आवेदन स्वीकार करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।
संक्षेप में मामला
पति ने जनवरी 2018 में अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, सतना के समक्ष तलाक की याचिका दायर की।
उसका मामला यह है कि उसकी शादी 26 मई, 2013 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अपीलकर्ता-पत्नी के साथ हुई, लेकिन पहली रात को ही अपीलकर्ता-पत्नी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया और यह भी कहा कि वह उसे पसंद नहीं करती और उसने अपने माता-पिता के दबाव में शादी की है।
इसके बाद 29 मई, 2013 को अपीलकर्ता/पत्नी के भाई उसके घर आए और पत्नी को अंतिम परीक्षा में बैठाने के लिए अपने साथ ले गए, जो कथित तौर पर 30 मई, 2013 को निर्धारित थी।
अगले दिन, जब पति के परिवार के सदस्य पत्नी को उसके ससुराल ले जाने के लिए उसके घर गए तो उसके माता-पिता ने अपीलकर्ता-पत्नी को उसके साथ भेजने से इनकार कर दिया और तब से अपीलकर्ता अपने ससुराल वापस नहीं लौटी।
दूसरी ओर, अपीलकर्ता/पत्नी का मामला यह है कि उसके पति (प्रतिवादी) के साथ उसके वैवाहिक संबंध विवाह से लेकर 28 मई, 2013 तक बने रहे। उसके बाद प्रतिवादी-पति और उसके परिवार के सदस्यों ने दहेज के रूप में 1,50,000/- रुपए और ऑल्टो कार की मांग करके उसे परेशान करना शुरू कर दिया।
उसने दावा किया कि चूंकि उसकी परीक्षा जून 2013 तक निर्धारित थी, इसलिए वह प्रतिवादी और उसके पिता के साथ अपने ससुराल नहीं जा सकी। इस कारण उसके ससुराल वाले नाराज हो गए और फिर से दहेज की मांग करने लगे। उसके बाद प्रतिवादी-पति उसे कभी भी उसके ससुराल वापस ले जाने नहीं आया।
यह भी कहा गया कि वह अपने पति के साथ अपने ससुराल में रहने के लिए तैयार है, लेकिन दहेज की मांग के कारण वह वैवाहिक संबंधों से अलग हो गई। इन आधारों पर उसने पति द्वारा दायर तलाक याचिका खारिज करने की प्रार्थना की।
प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, सतना ने पक्षकारों की दलीलों पर मुद्दे तय किए तथा पक्षकारों द्वारा दिए गए बयान दर्ज किए। पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्यों की सराहना करने के पश्चात न्यायाधीश ने प्रतिवादी/पति द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया तथा धारा 13(1)(आई-ए), (आई-बी) एच.एम. एक्ट के तहत तलाक का आदेश पारित कर दिया।
आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि दहेज की मांग के दबाव तथा प्रतिवादी-पति एवं उसके परिवार के सदस्यों द्वारा उसके साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण वह अपने माता-पिता के साथ रहने लगी तथा इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता-पत्नी ने स्वेच्छा से प्रतिवादी-पति का साथ नहीं छोड़ा।
पति ने लगातार दलील दी कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ झूठा दहेज का मामला दर्ज कराया है। विवाह के पश्चात उसकी पत्नी केवल तीन दिन ही अपने ससुराल में रही। इसके पश्चात वह बिना किसी ठोस कारण के अपने ससुराल से चली गई। तब से वे अलग-अलग रह रहे हैं, इसलिए फैमिली कोर्ट का आदेश उचित है।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
मामले के अभिलेखों और पक्षों द्वारा प्रस्तुत तर्कों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने पाया कि पत्नी ने स्वीकार किया कि विवाह संपन्न होने के बाद वह केवल तीन दिन ही अपने ससुराल में रही और जब पति के परिवार के सदस्यों ने उसे वापस आने के लिए कहा तो वह वापस नहीं आई।
न्यायालय ने यह भी पाया कि उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीधी (म.प्र.) के न्यायालय के समक्ष इस तथ्य को स्वीकार किया कि अपीलकर्ता और प्रतिवादियों (पति-पत्नी) के बीच कोई शारीरिक संबंध स्थापित नहीं हुआ था।
अतः न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी-पति का यह कथन सिद्ध होता है कि पहली रात को अपीलकर्ता/पत्नी ने प्रतिवादी/पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था।
इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी/पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से अपीलकर्ता/पत्नी का इनकार प्रतिवादी के प्रति क्रूरता के समान है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि यह स्वीकार किया गया कि पत्नी केवल तीन दिन ही अपने ससुराल में रही। इस अवधि के दौरान, पक्षों के बीच कोई सहवास नहीं था और तब से अपीलकर्ता/पत्नी और प्रतिवादी/पति 11 वर्षों से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं।
इसके मद्देनजर, यह देखते हुए कि पक्ष अलग हो गए और अलगाव काफी समय तक जारी रहा। पति ने तलाक की याचिका दायर की, न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के निर्णय और आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई। इसलिए पत्नी की अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- संचिता विश्वकर्मा बनाम योगेंद्र प्रसाद विश्वकर्मा