S. 144 BNSS/S.125 CrPC| अविवाहित बालिग ईसाई बेटी पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं: केरल हाईकोर्ट

Update: 2025-11-07 04:38 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 के अंतर्गत प्रावधान की योजना, बालिग बेटी द्वारा भरण-पोषण के दावे पर विचार नहीं करती, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ न हो।

जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ ने यह भी कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम [HAMA] और मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत, ईसाइयों पर लागू पर्सनल लॉ में बालिग हो चुकी अविवाहित बेटी के भरण-पोषण का कोई प्रावधान नहीं है।

कोर्ट ने कहा:

“HAMA की धारा 20(3) पिता पर अपनी अविवाहित पुत्री का भरण-पोषण करने का नागरिक दायित्व डालती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ भी पिता को अपनी अविवाहित पुत्री का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन ईसाइयों पर लागू कोई ऐसा पर्सनल लॉ नहीं है, जो एक ईसाई अविवाहित पुत्री को अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने में सक्षम बनाता हो। मैथ्यू वर्गीस बनाम रोसम्मा वर्गीस [2003 (3) केएलटी 6 (एफबी)] में केरल हाईकोर्ट की फुल बेंच के निर्णय में केवल यह घोषित किया गया कि एक ईसाई पिता अपनी नाबालिग संतान का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है। इसलिए एक अविवाहित ईसाई पुत्री, जो वयस्क हो गई, CrPC की धारा 125 (BNSS की धारा 144) के तहत कार्यवाही में अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है, जब तक कि वह किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ न हो।”

कोर्ट एक ईसाई व्यक्ति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रहा था, जिसने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 200 रुपये मासिक भरण-पोषण दिया गया था। प्रतिवादी 1 ने अपनी पत्नी (प्रतिवादी 2) और बालिग बेटी (प्रतिवादी 2) को क्रमशः 20,000/- रुपये और 10,000/- रुपये दिए। इसके अतिरिक्त, पत्नी को बेटी की शिक्षा के लिए 30,000/- रुपये की राशि भी प्रदान की गई, जो उसने पहले की थी।

पति ने इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि प्रतिवादी 2 याचिका की तिथि तक बालिग होने के कारण भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। उसने आगे तर्क दिया कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर मुंबई में अलग रह रही है और उसके पास अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन हैं।

पहली दलील में दम पाते हुए कोर्ट ने प्रतिवादी 2 को दिए गए भरण-पोषण का आदेश रद्द कर दिया।

अगली दलील, जिसमें कहा गया कि पत्नी ने उसे छोड़ दिया था, पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य बताते हैं कि वह अपने बीमार छोटे बेटे के साथ रह रही थी, जो मुंबई में पढ़ाई कर रहा था। कोर्ट ने महसूस किया कि अलग रहने के लिए यह पर्याप्त कारण था और वह भरण-पोषण पाने की हकदार है।

इसने आगे कहा:

“वास्तव में पति द्वारा भरण-पोषण पाने का पत्नी का अधिकार वैवाहिक कर्तव्य निभाने के संगत दायित्व से उत्पन्न होता है। हालांकि, एक माँ के अपने पति और बच्चे दोनों के प्रति दायित्व होते हैं। एक माँ के माता-पिता के दायित्व को आमतौर पर उसके वैवाहिक दायित्व से कहीं अधिक व्यापक माना जाता है। जब एक पत्नी अपने बीमार बेटे के बेहतर इलाज और शिक्षा के लिए अपने पति से अलग रहने का विकल्प चुनती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह CrPC की धारा 125(4) (BNSS की धारा 144(4)) के तहत भरण-पोषण के अधिकार से वंचित होने के पर्याप्त कारण के बिना अलग रह रही है।”

याचिकाकर्ता के तीसरे तर्क पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि यह स्थापित कानून है कि एक पत्नी केवल इसलिए भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं होगी, क्योंकि वह कार्यरत है या आय अर्जित कर रही है।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

“CrPC की धारा 125 (BNSS की धारा 144) में “अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ” का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी निर्धनता की स्थिति में होनी चाहिए।”

यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता की औसत मासिक निकासी के आधार पर उसकी पर्याप्त आय है, कोर्ट ने महसूस किया कि फैमिली कोर्ट द्वारा आदेशित भरण-पोषण राशि उचित थी।

शिक्षा व्यय के लिए आदेशित 30,000 रुपये के संबंध में कोर्ट ने महसूस किया कि एक पत्नी, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, द्वारा भरण-पोषण के दावे में बच्चे की शिक्षा पर उसके द्वारा किए गए खर्च को भी शामिल किया जा सकता है, भले ही बच्चा वयस्क हो।

इस प्रकार, कोर्ट ने याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की और वयस्क बेटी को दिए गए भरण-पोषण को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने पत्नी के मासिक भरण-पोषण और शिक्षा व्यय के भुगतान को बरकरार रखा।

Case Title: Varghese Kuruvila @ Sunny Kuruvilla v. Annie Varghese and Anr.

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