अपराध की आय से जुड़ी न होने वाली संपत्तियों को PMLA के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि PMLA के तहत कुर्क की जाने वाली संपत्तियां अपराध की आय से अर्जित संपत्तियां होनी चाहिए। इसने कहा कि PMLA के प्रावधानों का अनुचित तरीके से उन संपत्तियों को कुर्क करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता, जो किसी आपराधिक गतिविधि से संबंधित नहीं हैं।
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA Act) के तहत जांच के दौरान बैंक अकाउंट फ्रीज करने और अचल संपत्ति के खिलाफ अनंतिम कुर्की के आदेश को चुनौती दी गई।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने याचिकाकर्ता द्वारा 2004 में अर्जित अचल संपत्ति के खिलाफ अनंतिम कुर्की का आदेश रद्द कर दिया, जो PMLA Act के तहत कथित अपराधों के कम से कम आधा दशक पहले की बात है।
जिन संपत्तियों के खिलाफ कुर्की की शक्तियों का प्रयोग करते हुए कार्यवाही की जा सकती है, वे ऐसी होनी चाहिए जो अपराध की आय का उपयोग करके अर्जित की गई हों। प्रतिवादियों के वकील का यह तर्क कि अपराध की आय में उस संपत्ति का मूल्य भी शामिल होगा, जो पहले भी अर्जित की गई थी। मेरे अनुसार बहुत दूर की बात है और निष्पक्षता और तर्कसंगतता के संवैधानिक प्रावधानों के प्रकाश में न्यायोचित नहीं होगी।
यहां यह भी देखना जरूरी है कि PMLA का उद्देश्य दागी धन को हटाना और अपराध की आय के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना है, जिसे अन्य संपत्ति में बदल दिया गया है या वैध स्रोतों के साथ मिला दिया गया। फिर मिलाए गए लाभ का मूल्य अपराध की आय का रंग ले लेगा। इस तरह के प्रावधान का इस्तेमाल अधिकारियों को उन संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सक्षम बनाने के लिए नहीं किया जा सकता है जो किसी भी आपराधिक गतिविधि से जुड़ी नहीं हैं।
न्यायालय ने कहा कि PMLA को मनी लॉन्ड्रिंग की बुराई से निपटने के लिए निवारक और दंडात्मक उपाय के रूप में अधिनियमित किया गया। इसने नोट किया कि धारा 3 और 4 मनी लॉन्ड्रिंग को PMLA के तहत दंडनीय अपराध बनाती है। इसने आगे कहा कि धारा 5 अधिकारियों को उन संपत्तियों को अनंतिम रूप से कुर्क करने में सक्षम बनाती है, जो अपराध की आय हैं।
न्यायालय ने PMLA Act के तहत परिभाषित अपराध की आय शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि अपराध की आय तीन प्रकार की होती है।
"(i). आपराधिक गतिविधि से प्राप्त या प्राप्त संपत्ति, (ii) ऐसी किसी संपत्ति का मूल्य और, (iii) यदि संपत्ति भारत के बाहर ली गई है या रखी गई है तो भारत के भीतर रखी गई संपत्ति के बराबर मूल्य।”
विजय मदनलाल चौधरी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2022) और पवन डिब्बर बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2023) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए इसने कहा कि PMLA Act के तहत कुर्की की शक्तियों का प्रयोग केवल अपराध की आय से अर्जित संपत्तियों के खिलाफ किया जा सकता है।
इस प्रकार इसने नोट किया कि 2004 में खरीदी गई संपत्ति को अनंतिम रूप से कुर्क करना पूर्व-दृष्टया, क़ानून की शक्तियों का उल्लंघन था और उक्त कुर्की की सीमा तक पूरी तरह से अवैध और मनमाना था।
इस प्रकार न्यायालय ने कुर्की का अनंतिम आदेश रद्द कर दिया। इसने याचिकाकर्ता को बैंक अकाउंट में राशि से संबंधित कुर्की के खिलाफ वैकल्पिक उपाय अपनाने की स्वतंत्रता भी प्रदान की।
इस प्रकार रिट याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी गई।
केस टाइटल- सतीश मोतीलाल बिदरी बनाम भारत संघ