महिला वकीलों द्वारा चेहरा ढकना BCI ड्रेस कोड का उल्लंघन: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-12-23 07:28 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों के तहत स्पष्ट प्रावधानों का हवाला देते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि महिला वकील अपना चेहरा ढककर न्यायालय में पेश नहीं हो सकतीं।

जस्टिस मोक्ष खजूरिया काजमी और जस्टिस राहुल भारती की खंडपीठ के समक्ष कार्यवाही से उत्पन्न इन टिप्पणियों ने इस बात पर जोर दिया कि वकीलों के लिए ड्रेस कोड को नियंत्रित करने वाले बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियम इस तरह के परिधान की अनुमति नहीं देते हैं। कोर्ट रूम में शिष्टाचार और पेशेवर पहचान बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया।

यह मामला तब शुरू हुआ, जब खुद को वकील बताने वाली एक महिला चेहरा ढककर न्यायालय में पेश हुई। पहचान के लिए इसे हटाने का अनुरोध किए जाने पर उसने जोर देकर कहा कि इस तरह के परिधान में पेश होना उसका मौलिक अधिकार है। इसके कारण न्यायालय ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को वकीलों के लिए ड्रेस कोड के संबंध में कानूनी और नियम स्थिति की पुष्टि करने का निर्देश दिया।

इस आशय की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पश्चात न्यायालय ने BCI नियमों के अन्तर्गत कानूनी ढांचे की जांच की, विशेष रूप से अध्याय IV (भाग VI), जो न्यायालयों के समक्ष उपस्थित होने वाले वकीलों के लिए ड्रेस कोड निर्धारित करता है।

न्यायालय ने उल्लेख किया कि इन प्रावधानों के अनुसार, महिला वकील काले रंग की पूरी आस्तीन की जैकेट या ब्लाउज, सफेद बैंड, साड़ी या अन्य हल्के पारंपरिक परिधान के साथ-साथ काला कोट पहन सकती हैं। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि निर्धारित न्यायालयीय पोशाक के भाग के रूप में चेहरा ढकने को शामिल करने का कोई उल्लेख या अनुमति नहीं है।

जस्टिस काज़मी ने टिप्पणी की,

"नियमों में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि इस न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए इस प्रकार की कोई पोशाक (चेहरा ढकना) अनुमेय है।"

मुखौटे के साथ उपस्थित होने वाले वकीलों द्वारा उत्पन्न व्यावहारिक और कानूनी चुनौतियों को रेखांकित करते हुए जस्टिस भारती ने एक अन्य आदेश में इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय को न्यायिक कार्यवाही की पवित्रता बनाए रखने के लिए वकीलों की स्पष्ट पहचान की आवश्यकता है।

न्यायालय ने कहा कि अपना चेहरा ढकने के अनुरोध का अनुपालन करने से इनकार करके महिला ने खुद को पहचान से परे कर दिया, जिससे न्यायालय को वकील के रूप में उनकी उपस्थिति को अस्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

अपने अंतरिम आदेश में जस्टिस भारती ने कहा,

“इस अदालत के पास एक व्यक्ति और एक पेशेवर के रूप में उसकी वास्तविक पहचान की पुष्टि करने का कोई आधार/अवसर नहीं है।”

अदालत ने याचिकाकर्ताओं को चेतावनी दी कि यदि उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं किया गया तो उनके मामले को गैर-अभियोजन के लिए खारिज किया जा सकता है।

केस टाइटल: मोहम्मद यासीन खान बनाम नाजिया इकबाल

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