अधिकारी पिछले वर्षों के खाली पदों के आधार पर सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि प्रशासनिक अधिकारी पिछली वर्षों की खाली पड़ी पदों के आधार पर वरिष्ठता (Seniority) का दावा नहीं कर सकते। सेवा में पदोन्नति की वास्तविक तिथि ही पदक्रम (Hierarchy) निर्धारित करने का एकमात्र मान्य आधार है।
जस्टिस रजनेश ओसवाल और जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने 1992 और 1999 बैच के जम्मू और कश्मीर प्रशासनिक सेवा (JKAS) अधिकारियों से जुड़ी वरिष्ठता संबंधी याचिकाओं को खारिज करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के फैसले को बरकरार रखा, जिसने 2011 की वरिष्ठता सूची को सही माना और JKAS नियम, 2008 के नियम 15(4) को अवैध ठहराया।
पूरा मामला
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 2004 से 2007 के बीच पद रिक्त थे, लेकिन उनकी पदोन्नति 2008 में हुई, जिससे वे वरिष्ठता और करियर उन्नति से वंचित हो गए।
CAT ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि 1979 के नियम, जिनके तहत याचिकाकर्ताओं को पदोन्नत किया गया, पीछे की तिथि से वरिष्ठता की अनुमति नहीं देते।
याचिकाकर्ताओं के सीनियर वकीलों (जैसे ज़ेड.ए. शाह, एम.वाई. भट और आर.ए. जन) ने तर्क दिया कि 2008 के नियमों का नियम 15(4) लाया गया ताकि पुराने अन्यायों को ठीक किया जा सके, लेकिन सरकार की चयन समितियाँ समय पर बैठक नहीं कर पाईं, जिससे देरी हुई।
1992 बैच के अधिकारियों ने यह भी तर्क दिया कि उन्होंने 2004-2005 से ही SDM और AC जैसे पदों पर कार्यभार संभाला, इसलिए उन्हें उसी तिथि से वरिष्ठता मिलनी चाहिए थी।
राज्य की ओर से सीनियर अपर एडवोकेट जनरल (Sr. AAG) मोहसिन क़ादरी ने CAT के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि 1979 के नियमों में पीछे की तिथि से पदोन्नति की कोई व्यवस्था नहीं है। 2008 के नियम 15(4) को 2021 में इसलिए हटा दिया गया क्योंकि वह वैध नहीं था।
कोर्ट का निर्णय:
कोर्ट ने साफ किया,
"वरिष्ठता का निर्धारण केवल वास्तविक पदोन्नति की तिथि से किया जा सकता है।"
रूल 15(4) और उसका प्रावधान (i) अवैध हैं क्योंकि ये कुछ अधिकारियों के पहले से तय वरिष्ठता अधिकारों को नुकसान पहुंचाते हैं।
“कोई भी नया नियम पहले से स्थापित अधिकारों को पीछे से नहीं बदल सकता जब तक कि ऐसा स्पष्ट रूप से प्रावधान न किया गया हो।”
महत्वपूर्ण उद्धरण:
“चयनित उम्मीदवार पूर्व वर्षों में रिक्तियों की तिथि से पदोन्नति का दावा नहीं कर सकता। यह सरकार का विवेकाधिकार है कि वह कब रिक्तियों को भरे।”
कोर्ट ने यह भी माना कि चूंकि सेलेक्ट लिस्ट उस समय उपलब्ध नहीं थी, इसलिए Rule 23 के तहत In-Charge पद पर की गई सेवा की वरिष्ठता में गणना नहीं हो सकती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को साल-दर-साल चयन सूची बनाना "आदर्श रूप" हो सकता है, लेकिन यदि किसी कारणवश ऐसा न हो तो पूरी चयन प्रक्रिया अवैध नहीं मानी जा सकती।
निष्कर्ष:
अंत में कोर्ट ने सभी याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दीं कि “इन याचिकाओं में कोई कानूनी दम नहीं है, इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है। हालांकि, किसी पक्ष को लागत (costs) नहीं दी जा रही।
टाइटल: UT of J&K बनाम गुलाम नबी इतो एवं अन्य