व्यभिचार के आधार पर तलाक की मांग करते समय जीवनसाथी के कथित प्रेमी को पक्षकार बनाना अनिवार्य: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-08-30 05:31 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि व्यभिचार के आधार पर तलाक की मांग करते समय जीवनसाथी के कथित प्रेमी को पक्षकार बनाना न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा,

"ऐसी (तलाक) याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले प्रक्रियात्मक ढांचे के अनुसार, कथित वैवाहिक अपराध (व्यभिचार) का पूरा विवरण प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, जिसमें कथित रूप से शामिल व्यक्ति की पहचान भी शामिल है। न्यायालयों ने न्यायनिर्णयन में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे व्यक्ति को पक्षकार बनाने की लगातार आवश्यकता बताई है। यह आवश्यकता केवल प्रक्रियात्मक सुविधा के लिए नहीं है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से उपजी है, जिसे न्यायिक मिसालों द्वारा लगातार मान्यता दी गई।"

न्यायालय ने कहा कि इस आदेश के पीछे दो तर्क हैं:

पहला, व्यभिचार के आरोप, यदि सिद्ध हो जाते हैं तो कथित प्रेमी पर गंभीर नागरिक परिणाम और कलंक लग सकता है। "ऐसे निष्कर्षों को सुनवाई का अधिकार दिए बिना दर्ज करना, ऑडी अल्टरम पार्टम के सिद्धांत के विपरीत होगा।"

दूसरा, फैमिली कोर्ट कथित भागीदार की उपस्थिति के बिना व्यभिचार के आधार पर प्रभावी या निष्पक्ष निर्णय नहीं दे सकता।

"यह विधायी आदेश एक नीतिगत विकल्प को भी रेखांकित करता है कि व्यभिचार के आरोप अपनी प्रकृति से किसी तीसरे पक्ष की प्रतिष्ठा और गरिमा को प्रभावित करते हैं। इसलिए न्याय की आवश्यकता है कि ऐसे व्यक्ति को अपना बचाव करने का उचित अवसर दिया जाए।"

न्यायालय ने राजेश देवी बनाम जय प्रकाश (2019) के मामले पर भरोसा किया, जहां पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना था कि कथित व्यभिचारी या व्यभिचारिणी को पक्षकार बनाए बिना व्यभिचार के आधार पर तलाक का आदेश नहीं दिया जा सकता।

इसी प्रकार, पद्मावती बनाम साईं बाबू7 मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यह माना कि किसी स्पष्ट वैधानिक नियम के अभाव में भी कथित व्यभिचारी/व्यभिचारिणी, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i) के अंतर्गत तलाक की कार्यवाही में एक आवश्यक और उचित पक्षकार है।

इस मामले में पत्नी ने पति द्वारा व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की थी। अपने आरोप के समर्थन में उसने याचिका में सह-प्रतिवादी के रूप में आर-2 (कथित प्रेमी) को पक्षकार बनाया।

यद्यपि प्रतिवादी नंबर 2 ने पक्षकारों की सूची से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया, लेकिन फैमिली कोर्ट ने उसका आवेदन खारिज कर दिया। व्यथित होकर उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा उसका नाम हटाने से इनकार करने में कोई कमी नहीं है, क्योंकि "व्यभिचार पर आधारित कार्यवाही में कथित प्रेमी को पक्षकार बनाना न केवल आवश्यक है, बल्कि वैधानिक नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा भी अनिवार्य है।"

Case title: Tanvi Chaturvedi v. Smita Shrivastava & Anr

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