दिल्ली हाइकोर्ट ने कथित रूप से लंबे समय तक स्थगन और अभद्र व्यवहार के कारण निलंबन को चुनौती देने वाली डीआरटी पीठासीन अधिकारी की याचिका पर नोटिस जारी किया
दिल्ली हाइकोर्ट ने लोन वसूली न्यायाधिकरण (DRT), चंडीगढ़ के पीठासीन अधिकारी एमएम ढोंचक द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उनके निलंबन को चुनौती देते हुए दावा किया गया कि यह कार्रवाई अवैध अनुचित और मनमानी है।
जस्टिस तुषार राव गेडेला ने वित्त मंत्रालय वित्तीय सेवा विभाग के माध्यम से भारत संघ से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
धौंचक ने केंद्र सरकार द्वारा 13 फरवरी को उन्हें निलंबित करने के आदेश तथा 26 फरवरी को उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र को चुनौती दी।
उनका कहना है कि निलंबन तथा आरोपपत्र गैरकानूनी तथा अवैध हैं। साथ ही यह आदेश बिना किसी विवेक के तथा मामले के कानूनी तथा तथ्यात्मक पहलुओं को समझे पारित किया गया।
पीठासीन अधिकारी के खिलाफ आरोप मामलों को लंबे समय तक स्थगित रखने के संबंध में है, जिससे लोन वसूली की गति धीमी हो गई है। उन पर वकीलों के प्रति अभद्र व्यवहार करने का भी आरोप लगाया गया।
व्यक्तिगत रूप से पेश हुए धौंचक ने तर्क दिया कि पूरे भारत में डीआरटी के अन्य पीठासीन अधिकारियों की तुलना में उनका प्रदर्शन कहीं बेहतर होने के बावजूद, उन पर लोन वसूली की गति धीमी करने का आरोप लगाया गया।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि निलंबन आदेश तथा आरोपपत्र जारी करना बिना किसी कानूनी या तथ्यात्मक आधार के है।
यह तर्क दिया गया कि उन पर बिना किसी आधार के उनके समक्ष उपस्थित वकीलों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया गया और आरोपपत्र जारी करने से पहले केंद्र सरकार द्वारा किसी भी प्रभावित पक्ष का एक भी दस्तावेज या बयान या शिकायत रिकॉर्ड में नहीं रखी गई।
अदालत ने कहा,
"नोटिस जारी करें चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाए, जिसकी अग्रिम प्रति याचिकाकर्ता को दी जाए। यदि कोई प्रत्युत्तर हो तो चार सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए। उसके बाद प्रतिवादी के वकील को अग्रिम कॉपी दी जाए।"
इस मामले की सुनवाई अब 24 जुलाई को होगी।
अपनी याचिका में पीठासीन अधिकारी ने कहा कि यह पूरी तरह से विवेक का प्रयोग न करने और 'घोड़े के आगे गाड़ी लगाने का उत्कृष्ट मामला है, जो प्राकृतिक न्याय के सुस्थापित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया,
"मामलों की संख्या के निपटान में ही नहीं, बल्कि एक ही दिन में मामलों को अपलोड करने के मामले में भी याचिकाकर्ता निश्चित रूप से नंबर 1 पर है।"
इसमें यह भी कहा गया कि पीठासीन अधिकारी द्वारा कथित असभ्य व्यवहार का कोई विवरण नहीं है।
ढोंचक ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने अभद्र व्यवहार, किसी पीड़ित, घटना के समय और उन गवाहों के बारे में चुप्पी साध रखी है, जिनकी मौजूदगी में कथित घटना हुई।
याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच की मंजूरी के 6 महीने और 2 दिन बाद आरोपपत्र सौंपा गया।
वहीं याचिका में कहा गया कि सेवा/प्रशासनिक न्यायशास्त्र के सुस्थापित सिद्धांत के अनुसार किसी अधिकारी के खिलाफ जांच का आदेश तभी दिया जा सकता है जब आरोपपत्र पर उसका जवाब दंड प्राधिकारी द्वारा असंतोषजनक पाया और घोषित किया जाए। इतना ही नहीं उक्त घोषणा भी तर्कपूर्ण आदेश के माध्यम से होनी चाहिए, जिसमें यह खुलासा किया जाना चाहिए कि वह असंतोषजनक क्यों है।
याचिकाकर्ता के वकील- तनुज, मोहित सिवार्च, गरुराव और अभुभव
प्रतिवादी के वकील: ताशा यासीन
केस टाइटल- एम एम धोंचक बनाम भारत संघ अपने सचिव के माध्यम से