अस्‍थायी कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट के नियमित‌ीकरण पर जारी निर्देशों का उल्लंघन करते हुए नियमित नहीं किया जा सकता है, केरल हाईकोर्ट ने कहा

Update: 2021-03-09 11:41 GMT

केरल हाईकोर्ट

फरवरी से एक अपील के फैसले के अंत में केरल उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक निर्देश ने राज्य में हंगामा मचा दिया है; उच्च न्यायालय ने केरल सरकार के मुख्य सचिव को सरकारी संगठनों, संस्थानों, विभागों और निगमों में अस्थायी कर्मचारियों के नियमितीकरण पर रोक लगाने के लिए निर्देश जारी करने के लिए कहा है।

जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस गोपीनाथ पी की पीठ ने पाया कि कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमा देवी और अन्य में घोषित कानून के विपरीत जारी किए जा रहे हैं।

इन्हें 'अवैध' और 'सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून के खिलाफ' कहते करते हुए, खंडपीठ ने अपने ही प्रस्ताव पर मुख्य सचिव को पक्ष बनाया और निर्देश दिया कि इस आशय की घोषणा को सभी सरकारी निकायों को सूचित किया जाए।

रोचक यह है कि, अदालत के ये निर्देश इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट (IHRD) के दो अस्थायी कर्मचारियों की ओर से दायर एक अपील को खारिज करते हुए आए हैं, जिन्होंने संगठन में दूसरों की तरह समान शर्तों पर नियमितीकरण की मांग की थी।

अपीलकर्ताओं ने कहा कि उच्च न्यायालय के पहले के एक फैसले में IHRD से आग्रह किया गया था कि वे "नियमितीकरण पर फैसला, एक ही पैमाने से लें, जिसे समान स्थिति के अन्य कर्मचारियों के मामले में अपनाया गया था..."

यह दावा करते हुए कि अपीलकर्ताओं से वास्तव में वैसा व्यवहार नहीं किया गया, जो समान पद पर नियुक्त कर्मियों के साथ किया गया था, उनके वकील ने IHRD की ओर से अपने कुछ अस्थायी कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए जारी किए गए आदेशों को दलील के साथ पेश किया।

वकील ने कहा, "... विशेष नियमों को अंतिम रूप देने के बाद भी, कुछ कर्मचारी, जो मेरे मुव‌क्किल की तरह ही नियुक्त किए गए हैं, उन्हें भी नियमित कर दिया गया है।"

दूसरी ओर IHRD के वकील ने न्यायालय को बताया किया IHRD ने अनंतिम कर्मचारियों को नियमित करने का निर्णय नहीं लिया है, और यह कि कोर्ट में पेश किए गए नियमितीकरण के आदेश अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में बने हैं।

बेंच नियमितीकरण से संबंधित कानून को प्रतिपादित करने के लिए आगे बढ़ी और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।

खंडपीठ द्वारा निर्दिष्ट फैसलों से निम्नलिखित सिद्धांतों की चुना जा सकता है-

-यह तय कानून है कि एक कर्मचारी नियमितीकरण का दावा केवल इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि वह कुछ समय से एक पद पर काम कर रहा है। ए.उमरानी बनाम कोऑपरेटिव सोसाइटी; (2004) 7 एससीसी 112

-संविदा, आकस्मिक या दैनिक वेतन भोगी तदर्थ कर्मचारी, सार्वजनिक रोजगार के लिए संवैधानिक योजना के दायरे से बाहर नियुक्त, शामिल किए जाने, नियमित किए जाने, या स्‍थायी रूप से सेवा में जारी रहने की वैध अपेक्षा नहीं रख सकता है, इस आधार पर कि वे लंबे समय से सेवा में है। इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड बनाम वर्कमैन, इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स ल‌िमिटेड,;(2007) 1 एससीसी 408

-ऐसे मामले हो सकते हैं, जहां विधिवत खाली पड़े पदों पर विधिवत योग्य व्यक्तियों की अनियमित नियुक्तियां (गैरकानूनी नियुक्तियां नहीं) हुई हों और कर्मचारी दस साल या उससे अधिक समय तक,‌ अदालतों या अधिकरणों के आदेशों के हस्तक्षेप के बिना, काम करते रहे हों। ऐसे कर्मचारियों की सेवाओं के नियमितीकरण के सवाल पर, मेर‌िट के आधार पर विचार किया जा सकता है। उस संदर्भ में, राज्य और उसके साधानों को, ऐसी अनियमित रूप से नियुक्त की गई सेवाएं, जिन्होंने दस साल या उससे अधिक समय तक विधिवत स्वीकृत पदों पर काम किया है, लेकिन अदालतों या अधिकरणों के आदेशों के तहत नहीं है, को एक बार के उपाय के रूप में नियमित करने के लिए कदम उठाने चाहिए..........संविधान पीठ, सचिव, कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमा देवी और अन्य; (2006) 4 एससीसी 19

यह कहते हुए कि उमा देवी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले किसी भी नियमितीकरण को रद्द किया जाएगा, खंडपीठ ने कहा कि वह केवल IHRD द्वारा किए गए नियमितीकरण को अवैध घोषित करने से परहेज कर रही थी क्योंकि नियमित व्यक्ति कार्यवाही के पक्षकार नहीं थे।

मामले के तथ्यों पर, न्यायालय ने एकल न्यायाधीश की खंडपीठ के फैसले से सहमति व्यक्त की, जिसके तहत अपीलकर्ताओं को विभिन्न श्रम कानूनों के तहत श्रम न्यायालय/अन्य मंचों के समक्ष तथ्यों (यदि कोई हो) के साथ अपने दावों को उठाने की आवश्यकता थी।

मुख्य सचिव के निर्देशों के साथ, जिसे अदालत ने 3 सप्ताह के भीतर सरकारी संगठनों को सूचित करने की आज्ञा दी, अपील खारिज कर दी गई।

उल्‍लेखनीय है कि पिछले हफ्ते उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन की खंडपीठ ने एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए विभिन्न सरकारी संगठनों, संस्थानों, और निगमों में अस्थायी और संविदा कर्मचारियों को नियमित करने पर रोक लगा दी थी।

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