इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी मामले में जितेंद्र त्यागी को राहत

Update: 2025-04-30 11:00 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153-A, 295-A और 505 (1) के तहत संज्ञान लेने में गलती की, जबकि CrPC की धारा 196 के तहत केंद्र सरकार से आवश्यक मंजूरी को दरकिनार कर दिया गया।

अदालत याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रतिवादी द्वारा दायर आपराधिक शिकायत पर विचार करने और न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा संज्ञान लेने का आदेश रद्द करने की मांग की गई थी।

जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 196 को पढ़े बिना ही प्रतिवादी की शिकायत पर संज्ञान लिया है, जिसके अनुसार IPC की धारा 153-ए, 295-ए और 505 (1) के तहत अपराध के संज्ञान के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी अनिवार्य है।

अदालत ने कहा कि संबंधित उचित सरकार से मंजूरी लेने के पीछे विधायी उद्देश्य है, जिससे उपरोक्त धाराओं के तहत अपराध का आरोप लगाने वाली आपराधिक शिकायत की संस्था में एक सुरक्षित संदर्भ स्थापित किया जा सके।

अदालत ने यह भी कहा कि शिकायत के सार से ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता का इरादा अदालत द्वारा संज्ञान लेने के लिए शिकायत दर्ज करने का नहीं था बल्कि उसने FIR दर्ज करने के लिए निर्देश मांगा था।

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत में दिए गए बयानों से यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जिसमें उसने दलील दी कि उसने पहले भी FIR दर्ज कराने के लिए पुलिस थाने में आवेदन किया लेकिन FIR दर्ज नहीं की गई। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने स्वप्रेरणा से कार्रवाई करते हुए मामले की सत्यता या अन्यथा का पता लगाने के लिए जांच शुरू की। साथ ही शिकायतकर्ता से सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा, जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट ने CrPC की अनदेखी करते हुए मामले का संज्ञान लिया, जिसके लिए संज्ञान लेने से पहले पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है। इसलिए अदालत ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया और इस बीच मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी।

मामला

प्रतिवादी नंबर 2 ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि इस्लाम से हिंदू धर्म में धर्मांतरण के बाद याचिकाकर्ता ने ऐसे बयान दिए, जो एक धर्म के रूप में इस्लाम के प्रति अपमानजनक थे और इसके पवित्र ग्रंथ, कुरान का भी अपमान किया।

प्रतिवादी ने शिकायत में उस विशिष्ट तरीके का वर्णन किया जिसमें याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद को आपत्तिजनक तरीके से चित्रित किया।

शिकायत में आगे दावा किया गया कि याचिकाकर्ता की टिप्पणी जिसे समाचार पत्रों और समाचार चैनलों के माध्यम से सार्वजनिक किया गया, उन्होंने भारत भर के विभिन्न इस्लामी विद्वानों और मुस्लिम संगठनों से कड़ी आपत्ति और निंदा की।

इस संदर्भ में प्रतिवादी नंबर 2 ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के कार्यों के कारण उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153-A, 295-A, 298, 504 और 505 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।

केस टाइटल: जितेंद्र नारायण त्यागी @ सैयद वसीम रिजवी बनाम यूटी ऑफ जेएंडके, 2025

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