सेक्‍शन 138 एनआई एक्ट के तहत जुर्माने की सजा शिकायतकर्ता को मुआवजा देने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने तय किए मार्गदर्शक कारक

Update: 2021-11-29 06:31 GMT

जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में मजिस्ट्रेटों के लिए कुछ मार्गदर्शक कारक जारी किए, जिन पर उन्हें परक्राम्य लिखत अधिनियम (एनआई एक्‍ट) की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि आदेश परित करते समय विचार करने के लिए कहा गया।

जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि एनआई एक्‍ट की धारा 138 के तहत आरोपी को दोषी ठहराए जाने पर आपराधिक न्यायालय द्वारा लगाए गए जुर्माना की सजा शिकायतकर्ता को मुआवजा देने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए ।

मामला

24 जनवरी, 2020 को विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट ने एक व्यक्ति को एक चेक बाउंस मामले (10 लाख) में छह महीने की साधारण कारावास की सजा दी और इसके अलावा उसे याचिकाकर्ता को दो लाख रुपए मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी ठहराया।

शिकायतकर्ता (याचिकाकर्ता) ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मांग की प्रतिवादी-अभियुक्त को जारी किए गए चेक, जो बाद में अनादर‌ित हो गया था, उसकी देयता को पूरा करने के लिए पर्याप्त जुर्माना देने के लिए कहा जाना चाहिए।

मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि इस मामले में निर्धारित किए जाने वाले प्रश्न इस प्रकार थे:

-एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए गए आरोपी को सजा देते समय ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए;

-क्या ट्रायल कोर्ट को कारावास की सजा के साथ या उसके बिना, जुर्माना लगाना चाहिए जो कि बाउंस हुए चेक के कारण शिकायतकर्ता के प्रति अभियुक्त के दायित्व को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो?

उल्लेखनीय है कि एनआई एक्‍ट की धारा 138 के तहत आपराधिक न्यायालय, एक आरोपी को दोषी ठहराने के बाद एक अवधि के लिए कारावास की सजा, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना, जिसे चेक की राशि के दोगुने तक बढ़ाया जा सकता है या दोनों, लगाने में सक्षम है। इस प्रकार, मजिस्ट्रेट को विवेकाधिकार दिया जाता है।

टिप्पणियां

शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्यायालय, एनआई एक्‍ट की धारा 138 के तहत अपराध के एक आरोपी को दोषी ठहराते हुए, उपचार के प्रतिपूरक पहलू की अनदेखी नहीं कर सकते हैं और प्रतिपूरक पहलू को केवल उचित सम्मान तभी दिया जा सकता है अगर दी गई सजा अधिक नहीं तो कम से कम चेक की राशि के अनुरूप हो।

कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्यायालय को एनआई एक्ट की धारा 138 से 142 वाले अध्याय XVII को लागू करने के प्रशंसनीय उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए और चेक बाउंस के मामलों में उपचार के प्रतिपूरक पहलू को प्राथमिकता देनी चाहिए ।

इसलिए, न्यायालय ने उन मजिस्ट्रेटों के लिए निम्नलिखित मार्गदर्शक कारक तैयार/निर्दिष्ट किए जो धारा 138 एनआई एक्ट के मामलों से निपट रहे हैं:

-एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आरोपी को दोषी ठहराए जाने पर आपराधिक न्यायालय जब भी जुर्माना लगाता है तो वह शिकायतकर्ता को मुआवजा देने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।

-इस संबंध में चेक की राशि और जिस तारीख से चेक के तहत राशि देय हो गई है, उचित ब्याज के भुगतान के साथ एक अच्छा मार्गदर्शक हो सकता है।

-सुसंगत और एकसमान होने के लिए, हमेशा चेक की राशि के बराबर जुर्माना लगाने की सलाह दी जाती है और चेक की तारीख से दोषसिद्धि के फैसले की तारीख तक कम से कम 6% प्रतिवर्ष ब्याज लगाया जाता है।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इस तरह का जुर्माना लगाने से पहले ट्रायल मजिस्ट्रेट को एनआई एक्ट की धारा 143 ए के तहत भुगतान की गई अंतरिम मुआवजे की राशि या ऐसी अन्य राशि से बचना चाहिए जो आरोपी ने मुकदमे के दौरान या अन्यथा दायित्व के निर्वहन के लिए भुगतान किया हो।

मौजूदा मामले के संबंध में यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखने में बुरी तरह विफल रहा था और शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में भुगतान किए जाने के लिए दो लाख का निर्देश दिया था, जबकि चेक की राशि 10 लाख रुपए थी। न्यायालय ने याचिका की अनुमति दी और आक्षेपित आदेश को उस सीमा तक रद्द कर दिया गया, जिस हद तक प्रतिवादी को सजा दी गई थी। कोर्ट ने सजा पर पुनर्विचार के लिए मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया।

केस का शीर्षक - यासिर अमीन खान बनाम अब्दुल रशीद गनी

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