लोकपाल के रूप में पुनर्नियुक्त रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की पेंशन सैलरी से नहीं काटी जा सकती: केरल हाईकोर्ट

Update: 2023-01-16 08:39 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में विचार किया कि क्या हाईकोर्ट के एक जज, जिसे सेवानिवृत्ति के बाद लोकपाल के रूप में नियुक्त किया गया है, की पेंशन उसके वेतन से काटी जा सकती है। कोर्ट ने सवाल का नकारात्मक उत्तर दिया।

जस्टिस अनु शिवरामन ने इस संबंध में कहा,

"पंचायत राज अधिनियम के प्रावधान और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के लिए लोकपाल (शिकायतों और सेवा शर्तों की पूछताछ) नियम, 1999 के नियम काफी स्पष्ट हैं क्योंकि प्रावधान में विशेष रूप से कहा गया है कि लोकपाल के रूप में नियुक्त व्यक्ति हाईकोर्ट के जज के बराबर वेतन और भत्ते के हकदार होंगे। अधिनियम या नियम, स्वीकार्य रूप से, पेंशन की किसी भी कटौती का प्रावधान नहीं करते हैं।"

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि,

"एक हाईकोर्ट के जज को देय पेंशन उनकी सेवा के लिए बाद में किया जाने वाला भुगतान है और जब तक अधिनियमन या नियमों में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है, जो लोकपाल के रूप में नियुक्त व्यक्ति को हाईकोर्ट के जज के रूप में उसकी सेवा के लिए पेंशन के रूप में दी गई राशि की कटौती का प्रावधान करता,उत्तरदाताओं 2 (एकाउंटेट जनरल (ए एंड ई), केरल), और 3 (केरल राज्य सचिव, स्थानीय स्व सरकार विभाग के माध्यम से), या अधीनस्थ अधिकारियों में से किसी की व्यक्तिपरक संतुष्टि के आधार पर कोई कटौती नहीं हो सकती।"

मामला

न्यायालय केरल हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस केके डेनेसन की रिट याचिका पर विचार कर रहा ‌था, जिन्होंने लोकपाल के रूप में नियुक्ति पर हाईकोर्ट के जज की सेवा के रूप में देय पेंशन मे कटौती न किए बिना, पूर्ण वेतन और भत्ते प्राप्त करने के अपने वैध अधिकार को लागू करने के लिए ‌उचित रिट जारी करके न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की ‌थी।

दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट के जाजू बाबू ने तर्क दिया कि जस्टिस डेनेसन को केरल पंचायत राज अधिनियम और नियमों के तहत 22 दिसंबर, 2017 के आदेश के जर‌िए लोकपाल के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 21 दिसंबर, 2020 तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। सीनियर एडवोकेट ने पंचायत राज अधिनियम की धारा 271 जी के साथ-साथ स्थानीय स्वशासन संस्थानों के लिए लोकपाल के नियम 4 (शिकायतों और सेवा शर्तों की जांच) नियम, 1999 पर भरोसा किया।

उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के जज के लिए स्वीकार्य वेतन और भत्तों का हकदार है। उन्होंने बताया कि जबकि याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के जज के वेतन का भुगतान किया गया और उसकी पेंशन काट ली गई।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने यह तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज हैं, और अपनी पूर्व सेवा के लिए पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, इसलिए उनका वेतन और भत्ते आहरित पेंशन को घटाकर निर्धारित किया जाना चाहिए जैसा कि मामले में किया गया था। आगे तर्क दिया गया कि सरकार, स्थानीय स्वशासन (आईए) विभाग के प्रधान सचिव ने स्पष्ट किया था कि चूंकि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज हैं, इसलिए वह नियम 100 भाग III, केएसआर के अनुसार वेतन और भत्ते के पात्र हैं और उनका वेतन और भत्ते निर्धारित ‌नियमों के अनुसार तय किए जाएंगे।

तर्क दिया गया कि अधिनियम और नियमों के प्रावधानों के अनुसार, लोकपाल के लिए स्वीकार्य वेतन और भत्ते को, यदि नियुक्त व्यक्ति एक सेवानिवृत्त जज है, जो पेंशन प्राप्त कर रहा है, निर्दिष्ट नहीं किया गया है।

निष्कर्ष

इस मामले में न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को देय राशि से न तो कानून और न ही नियम हाईकोर्ट के जज की हैसियत से आहरित पेंशन की कटौती की अनुमति देते हैं।

न्यायालय ने इसलिए पाया कि याचिकाकर्ता प्रासंगिक समय पर हाईकोर्ट के जज के लिए लागू वेतन का हकदार है।

न्यायालय ने इस प्रकार सरकार को याचिकाकर्ता को ‌हाईकोर्ट के जज के वेतन और भत्ते का लाभ देने के लिए एक उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया। इसने आगे निर्देश दिया कि बकाया राशि भी याचिकाकर्ता को बिना किसी देरी के 3 महीने की अवधि के भीतर वितरित की जानी चाहिए।

केस टाइटल: न्यायमूर्ति के.के. डेनेसन (सेवानिवृत्त न्यायाधीश) बनाम वरिष्ठ लेखा अधिकारी व अन्य।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 23

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