डिक्री पर रोक लगाने के लिए अचल संपत्ति को सुरक्षा के रूप में स्वीकार करने पर CPC या मध्यस्थता अधिनियम के तहत कोई रोक नहींःकलकत्ता उच्च न्यायालय

Update: 2021-03-21 07:37 GMT

Calcutta High Court 

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना है कि डिक्री पर रोक लगाने के लिए अचल संपत्ति को सुरक्षा के रूप में स्वीकार करने पर नागरिक प्रक्रिया संहिता या मध्यस्थता अधिनियम, 1996 के तहत कोई रोक नहीं है।

इस बात पर जोर देते हुए कि सुरक्षा की मांग का इरादा मात्र यह है कि ड‌िक्री धारक के लिए एक गुंजाइश रखी जाए, यदि ‌डिक्री को दी गई उसकी चुनौती फेल हो जाए, न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा कि नकद सुरक्षा कानून के तहत अपरिहार्य नहीं है।

खंडपीठ ने उल्लेख किया कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 36 (3), जो एक निर्णय पर रोक की प्रक्रिया पर विचार करती है, "सुरक्षा" शब्द का उल्लेख नहीं करती है और केवल संकेत देती है कि न्यायालय निर्णय पर रोक के लिए उपयुक्त शर्तें लगा सकता है।

प्रावधान में कहा गया है कि निर्णय पर रोक के लिए अर्जी दाखिल करने पर, न्यायालय 'ऐसी शर्तों के अधीन, जो उचित हो सकती हैं', कारणों को लिखित दर्ज करके, इस तरह के निर्णय के संचालन पर रोक लगा सकता है।

खंडपीठ ने पाया कि धारा 36 (3) की भाषा उन शर्तों को तय करने के लिए न्यायालय को विवेकाधिकार देती है जो लागू की जा सकती हैं और एकमात्र आवश्यकता यह है कि न्यायालय को निर्णय के स्थगन आदेश देने के लिए लिखित रूप में अपने कारणों का संकेत देना चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि मनी डिक्री पर रोक से संबंधित सीपीसी के विभिन्न प्रावधान कहीं नहीं बताते हैं कि इस तरह की रोक केवल मौद्रिक संदर्भ में होगी।

यह नोट किया गया, 

-कोड के आदेश XLI नियम 1 (3) में प्रावधान है कि धन के भुगतान के लिए एक डिक्री के खिलाफ अपील के मामलों में, अपीलीय अदालत अपीलकर्ता को अपील में विवादित राशि जमा करने या इस तरह की सुरक्षा को प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकती है जैसा कि अदालत उचित माने।

-आदेश XXI नियम 26 (3) में कहा गया है कि निष्पादन पर रोक लगाने या संपत्ति की बहाली या निर्णीत ऋणी की र‌िहाई के लिए आदेश देने से पहले, न्यायालय को इस तरह की सुरक्षा की आवश्यकता होगी, या निर्ण‌ित-ऋणी पर ऐसी शर्तों को लागू करना होगा, जिन्हें कोर्ट उचित मानती है।

-आदेश XXI नियम 29 के अनुसार अदालत ऐसे शर्तों पर, जिन्हें वह उचित मानती है, डिक्री का निष्पादन रोक सकती है, जब तक कि लंबित मुकदमे का फैसला नहीं हो जाता।

इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा, 

"उपर्युक्त प्रावधानों को एक साथ पढ़ने पर, यह स्पष्ट है कि कानून बनाने वालों का इरादा, जो वर्तमान मामले में विचार के लिए प्रासंगिक है, यह था कि एक डिक्री पर रोक लगाने के लिए ऐसी सुरक्षा जो केवल मौद्रिक हो, की सख्त आवश्यकता से बचना था। "

मामले में सीहोर नगर पालिका ब्यूरो बनाम भाभलुभाई वीराभाई एंड कंपनी, (2005) 4 एससीसी 1 पर भरोसा रखा गया था, जहां यह माना गया था कि अचल संपत्ति के रूप में सुरक्षा को ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए स्वीकार किया जा सकता है।

मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता निर्णय के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 36 के तहत एक आवेदन दिया था।

दलील दी गई थी कि याचिकाकर्ता के पास नकदी सुरक्षा के रूप में या बैंक गारंटी के रूप में पेश करने के लिए पर्याप्त तरलता या वित्तीय साधन नहीं हैं और इसलिए, एक निर्दिष्ट भूमि की टाइटिल डीड रजिस्ट्रार के पास जमा किया जाना चाहिए।

67,04,681 रुपए के आदेश के खिलाफ, याचिकाकर्ता ने एक जमीन की पेशकश की, जिसका बाजार मूल्य 65,00,000 रुपए था। हलफनामे पर यह भी कहा गया था कि जमीन का उक्त भूखंड सभी अतिक्रमणों से मुक्त है और चौतरफा घिरी हुई है। इसके अलावा, भूखंड याचिकाकर्ता के विशेष अधिकार में है।

बेंच ने सहानुभूतिपूर्ण विचार रखते हुए कहा, "इस अदालत को अर्थव्यवस्था की पीड़ित स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस तरह की प्रस्तुति का जवाब देना चाहिए, जिसने महामारी के बाद देश में लाखों लोगों को प्रभावित किया है। इस अदालत ने एक अलग दृष्टिकोण लिया होगा, यदि याचिकाकर्ता ने सुरक्षा की पूर्ण माफी के लिए कहा होता और बिना सुरक्षा की पेशकश के निर्णय पर रोक लगाने को कहा होता।"

केस टाइटल: नीतू शॉ बनाम भारत हाईटेक (सीमेंट्स) प्रा लिमिटेड

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