जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अलगाववाद को बढ़ावा देने, लोगों को सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़काने के आरोप में प्रोफेसर के खिलाफ यूएपीए मामला खारिज करने से इनकार किया
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में सरकारी कॉलेज में काम करने वाले सहायक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। उक्त आरोपी पर सेना और पुलिस जैसे संस्थानों के खिलाफ आम लोगों को बल प्रयोग या हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने सहायक प्रोफेसर की विशेषता वाली पुलिस द्वारा प्रस्तुत वीडियो क्लिप को देखा, यह ध्यान देने के लिए कि प्रथम दृष्टया वह कश्मीर में रहने वाले लोगों और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
संक्षेप में मामला
पीठ अब्दुल बारी नाइक की जमानत याचिका से निपट रही थी, जिस पर आरपीसी की धारा 13 और यूएलए (पी) अधिनियम की धारा 153, 353 के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसमें आरोप लगाया गया कि वह कॉलेज के छात्रों को शांति भंग करने के लिए भड़का रहा है। उन्हें क्षेत्र और राज्य प्रशासन के खिलाफ हिंसा में लिप्त होने के लिए भी उकसा रहा है।
एफआईआर का बचाव करते हुए राज्य सरकार ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उसके पास विश्वसनीय रिपोर्टें हैं कि प्रोफेसर नाइक चरमपंथी समूहों की विचारधारा से जनता को प्रेरित कर रहा है और वह जिला प्रशासन और सुरक्षा बलों के खिलाफ अभियान चला रहा है।
दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि चूंकि वह आरटीआई कार्यकर्ता है और वह भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाता है, इसलिए प्रतिवादियों ने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की और यह बेहतर होगा कि उसके काम को सिविल सेवा नियमों के उल्लंघन में माना जाए। इसके अलावा, यह याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक अपराध का खुलासा होगा।
न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच के अनुसार, याचिकाकर्ता आम लोगों को अलगाववाद के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है और वह उन्हें पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ-साथ जिला प्रशासन के खिलाफ भी भड़का रहा है।
कोर्ट ने आगे कहा कि जांच के अनुसार, याचिकाकर्ता को उन लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाई गई, जो गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। वह आम लोगों को सेना के शिविरों की स्थापना के खिलाफ भड़का रहे हैं।
कोर्ट ने आगे कहा,
"मामले की जांच के दौरान जब्त किए गए वीडियो क्लिप को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता लोगों को बता रहा है कि देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरी छात्रों की पीट-पीट कर हत्या की जा रही है और उन्हें बेरहमी से प्रताड़ित किया जा रहा है। एक वीडियो क्लिप में याचिकाकर्ता अपने श्रोताओं को संदेश देते हुए कहता है कि कश्मीर के बच्चों पर सुरक्षा बल और सेना द्वारा अत्याचार किया जा रहा है। एक अन्य वीडियो क्लिप में याचिकाकर्ता यह बता रहा है कि सेना लोगों की आवाजाही में बाधा डाल रही है और यह बच्चों को स्कूल जाने से रोक रही है, जिस कारण स्कूल बंद हो गए हैं। एक अन्य वीडियो क्लिप में याचिकाकर्ता पथराव और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में हिरासत में लिए गए व्यक्ति की रिहाई के संबंध में दलील दे रहा है।"
इस प्रकार, इस बात पर जोर देते हुए कि वीडियो क्लिप भी प्रथम दृष्टया यह दर्शाती है कि याचिकाकर्ता कश्मीर में रहने वाले लोगों और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है, कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि रिकॉर्ड पर सामग्री याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी संज्ञेय अपराध के कमीशन का खुलासा नहीं करता है।
नतीजतन, कोर्ट ने माना कि वर्तमान मामला उन मामलों की श्रेणी में नहीं आता है जिनमें यह न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा।
अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
"मौजूदा मामले में कार्यवाही को रद्द करना वास्तविक अभियोजन को दबाने के बराबर होगा, जो कानून में अस्वीकार्य है।"
केस टाइटल- अब्दुल बारी नाइक बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य और अन्य
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