POCSO मामला-जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने और शादी के वादे पर यौन उत्पीड़न करने के मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2021-10-22 08:21 GMT

जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने और उसका यौन उत्पीड़न करने के मामले में आरोपी एक युवक को जमानत देने से इनकार कर दिया है।

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी की पीठ ने आरोपी-याचिकाकर्ता की तरफ से दिए गए उन सामान्य तर्क पर विचार करने से इनकार कर दिया,जिनमें कहा गया था कि उसे कथित अपराध से जोड़ने के लिए कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है। उक्त तर्क को खारिज करते हुए, पीठ ने नीरू यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (2014) के मामले में सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया।

उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि,

''एक समाज अपने सदस्यों से जिम्मेदारी और जवाबदेही की अपेक्षा करता है और यह चाहता है कि नागरिक कानून का पालन करें, उनका एक पोषित सामाजिक मानदंड के रूप में सम्मान करें। कोई भी व्यक्ति सामाजिक धारा के तने में एक अंतराल बनाने का प्रयास नहीं कर सकता है।

यह अस्वीकार्य है, इसलिए जब कोई व्यक्ति असंयमित तरीके से व्यवहार करता है और अव्यवस्थित चीजों में प्रवेश करता है तो समाज उसे अस्वीकृत करता है, ऐसे में कानूनी परिणाम का पालन करना अनिवार्य है। इस स्तर पर, अदालत का कर्तव्य बनता है। कोर्ट अपने पवित्र दायित्व को नहीं छोड़ सकता है और अपनी मर्जी से कोई आदेश पारित नहीं कर सकता है। ऐसे में कोर्ट को कानून के स्थापित मापदंडों द्वारा निर्देशित किया जाता है।''

पृष्ठभूमि

अभियोजन पक्ष का आरोप है कि एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की की मौत हुई है,जो सामान्य परिस्थितियों में होने वाली मौत से अलग है। मृतका ने अपनी मौत से कुछ घंटे पहले अपनी मां सत्य देवी को बताया कि उसकी मौत का कारण कथित तौर याचिकाकर्ता-आरोपी है। उसने यह सब बातें अस्पताल ले जाते समय रास्ते में अपनी मां को बताई थी और उसने कथित तौर पर अपनी डायरी में भी यही लिखा था।

याचिकाकर्ता-अभियुक्त ने उक्त आरोपों के जवाब में तत्काल याचिका में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। अभियोजन पक्ष के मामले से सामने आई घटनाओं की श्रृंखला इस स्तर पर प्रथम दृष्टया आरोपी-याचिकाकर्ता को कथित अपराधों से जोड़ती है।

मां के बयान के आधार पर भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 376/306 के तहत मामला दर्ज किया गया। बाद में, जांच के दौरान पाया गया कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 305/376 रिड विद पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत अपराध बनता है। यह भी पाया गया कि आरोपी मृतका को जानबूझकर शादी के बहाने गुमराह कर रहा था और उसकी सहमति के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाए। बाद में उसने कहीं और शादी कर ली, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता ने आत्महत्या कर ली।

निष्कर्ष

न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 305 और 376 का अवलोकन किया और नीरू यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (2014) और अनिल कुमार यादव बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) (2018) को संदर्भित किया।

अनिल कुमार यादव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि,

''जमानत देते समय, प्रासंगिक विचार हैं- (1) अपराध की गंभीरता की प्रकृति; (2) सबूतों की प्रकृति और परिस्थितियां जो आरोपी के लिए विशिष्ट हैं; और (3) आरोपी के न्याय से भागने की संभावना; (4) अभियोजन पक्ष के गवाहों पर उसकी रिहाई का प्रभाव, समाज पर इसका प्रभाव; और (5) उसकी सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना। निस्संदेह, यह सूची संपूर्ण नहीं है। जमानत देने या अस्वीकार करने के संबंध में कोई कठोर और पक्का नियम नहीं हैं ; प्रत्येक मामले पर उसकी अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। प्रत्येक मामला हमेशा न्यायालय द्वारा अधिकार के विवेकपूर्ण उपयोग की मांग करता है।''

इस प्रकार न्यायालय ने जमानत अर्जी को खारिज कर दिया और निम्नलिखित टिप्पणियां कीं,

'' यहां आरोपी/याचिकाकर्ता की तरफ से दिए गए सामान्य तर्कों में कहा गया है कि उसने कथित अपराध नहीं किया है और कथित अपराध के साथ उसे जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है या अभियोजन का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है,जिसे इस स्तर पर अकेले ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए, वो भी जांच के दौरान अभियोजन द्वारा एकत्र किए गए उन सबूतों की अनदेखी करते हुए,जो आरोपी / याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर आरोप पत्र का हिस्सा हैं।

शीर्ष अदालत द्वारा उपरोक्त फैसलों में निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से आरोप की प्रकृति, दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता और सहायक साक्ष्य की प्रकृति के साथ-साथ गवाह के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या शिकायतकर्ता को धमकी की आशंका पर जमानत देने से पहले विचार किया जाना चाहिए।''

प्रतिवादियों के आग्रह के अनुसार पॉक्सो एक्ट की धारा 29 को लागू करने की दलील पर, न्यायालय ने कहा कि यह महत्वहीन हो गई है और इसे संबोधित करने की आवश्यकता नहीं है।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता केएस जोहल और अधिवक्ता सुप्रीत सिंह जोहल ने किया; राज्य का प्रतिनिधित्व एएजी असीम साहनी ने किया।

केस का शीर्षकः रणजीत सिंह बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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