हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (एक नवंबर, 2021 से सात नवंबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप।
पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
"दिल्ली पुलिस में पत्नी की नौकरी लगने के बाद पति ने उसे कमाऊ गाय के रूप में देखा" : दिल्ली हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर विवाह भंग किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक के डिक्री पारित करके एक जोड़े के बीच विवाह भंग कर दिया। कोर्ट ने यह देखा कि पति ने दिल्ली पुलिस में नौकरी पाने वाली अपनी पत्नी को बिना किसी भावनात्मक संबंधों के एक कमाऊ गाय (कैश काऊ) के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह एक महिला द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रहे थे, जिसमें परिवार न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी, क्योंकि फैमेली कोर्ट द्वारा क्रूरता या परित्याग के किसी भी आधार को स्थापित नहीं किया गया था।
शीर्षक: सन्नो कुमारी बनाम कृष्ण कुमार
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आधार लिंकेज की कमी खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभ से इनकार करने का कोई कारण नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दीवाली का बेसब्री से इंतजार कर रहे कई आदिवासियों को उनके आधार कार्ड के लिंक न होने के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आपूर्ति से वंचित करने का दुखद बताते हुए मुरबाद के तहसीलदार को चार नवंबर तक लगभग 90 आदिवासियों को राशन की आपूर्ति वितरित करने का आदेश दिया।
जस्टिस प्रसन्ना वराले और जस्टिस माधव जामदार ने एक अंतरिम आदेश में कहा कि कुछ तकनीकी आधारों पर आदिवासियों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए) के तहत खाद्यान्न वितरण के लाभों से इनकार नहीं किया जा सकता।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही अपील हाईकोर्ट में लंबित हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी जिलाधिकारियों को यह निर्देश देने के लिए कहा है कि वे 14 साल की कैद के बाद छूट के मामलों का पुनर्मूल्यांकन करें, भले ही ऐसे मामलों में अपील हाईकोर्ट में लंबित हों।
जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ बलात्कार के एक दोषी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायालय (डकैती प्रभावित क्षेत्र), जिला कानपुर देहात द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी।
केस टाइटल - रग्गू बनिया @ राघवेंद्र बनाम यूपी राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत नोटिस में यह निर्दिष्ट होना चाहिए कि आरोपी के पास कौन-से अधिकार हैं; केवल आरोपी को यह बताना कि उसके पास अधिकार हैं, पर्याप्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 50 के तहत एक नोटिस में यह निर्दिष्ट होना चाहिए कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपी के पास कौन-से अधिकार हैं।
न्यायमूर्ति बी.एस. वालिया ने कहा कि यह निर्दिष्ट किए बिना कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपी के पास कौन से अधिकार हैं, केवल आरोपी को यह बताना कि उसके पास एनडीपीएस अधिनियम के तहत अधिकार हैं, अनिवार्य आवश्यकता का अनुपालन नहीं है।
केस का नाम: सुनील बनाम हरियाणा राज्य [CRM-M 28067 of 2021]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेमंड के पूर्व चेयरमैन विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा की बिक्री पर रोक लगाई
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को रेमंड ग्रुप के पूर्व चेयरमैन एमेरिटस डॉ विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा की बिक्री या वितरण पर रोक लगा दी। जस्टिस सुरेंद्र तावड़े ने रेमंड लिमिटेड की अवमानना याचिका में अंतरिम आदेश पारित किया।
उल्लेखनीय है कि विजयपत सिंघानिया के बेटे गौतक सिंघानियां रेमंड ग्रुप में वर्तमान अध्यक्ष हैं। फरवरी 2015 में गौतम को होल्डिंग कंपनी में 1000 करोड़ रुपये के शेयर हस्तांतरित करने के बाद पिता-पुत्र की जोड़ी एक कड़वी लड़ाई के वर्षों में उलझी हुई है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बिना विवाह के लंबे समय तक साथ रहने से वैवाहिक अधिकारों का कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जब तक कि शादी कानून के अनुसार नहीं हुई हो तब तक लंबे समय तक साथ रहने से पक्षकारों को वैवाहिक अधिकार पैदा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा।
न्यायमूर्ति एस. वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति आर. विजयकुमार की पीठ एक महिला की अपील पर फैसला सुना रही थी। इसमें एक ऐसे पुरुष के साथ वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की गई थी। इस पुरुष से उसने कानूनी रूप से शादी नहीं की थी। तदनुसार, कोर्ट ने कोयंबटूर में एक फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
केस शीर्षक: आर. कलाइसेल्वी बनाम जोसेफ बेबी
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बच्चे को पालने का दायित्व पिता की सर्वोपरि इच्छा है; इसे निराधार आधारों पर सीमित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती: दिल्ली कोर्ट
दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कहा कि एक बच्चे को पालने का वैधानिक दायित्व एक पिता की सर्वोपरि इच्छा है और उसे तुच्छ या आधारहीन आधार पर इसे सीमित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
विशेष न्यायाधीश दीपक वासन ने यह भी कहा कि अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करना पति का वैधानिक कर्तव्य है, लेकिन वह पत्नी को गरिमा के साथ जीने के लाभ से वंचित करने के लिए छल नहीं कर सकता। साथ यही यह सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है कि पत्नी और बच्चे बेसहारा न हो जाए।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
तलाक के बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहना आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध हो सकता है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई विवाहित व्यक्ति अपने जीवनसाथी (पति या पत्नी) से तलाक लिए बिना लिव-इन-रिलेशनशिप में है तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध हो सकता है।
न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने अपने पति से तलाक लिए बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इस प्रकार देखा।
केस का शीर्षक - हरप्रीत कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
"मैडम अगर आप छुट्टी चाहती हैं तो मुझसे अकेले मिलें" को यौन आग्रह से संबंधित टिप्पणी नहीं माना जा सकता : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक सहायक प्रोफेसर के खिलाफ एफआईआर रद्द करते हुए कहा, "मैडम, अगर आप छुट्टी चाहती हैं तो आओ और मुझसे अकेले मिलो" को यौन आग्रह से संबंधित टिप्पणी के रूप में नहीं माना जा सकता।
याचिकाकर्ता-आरोपी ने अपने सहयोगी द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि उन पर यह टिप्पणी करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए के तहत आरोप लगाया गया है, लेकिन किसी तरह का कोई शारीरिक संपर्क नहीं हुआ या यौन आग्रह की कोई मांग या अनुरोध नहीं किया गया, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 ए के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ऐसे एग्रीमेंट क्लॉज, जो आवासीय इकाइयों में पालतू जानवर को रखने पर रोक लगाते हैं अवैध, कानून में अप्रवर्तनीय: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है उप-कानून या एक समझौते में शामिल ऐसा क्लॉज जो किसी व्यक्ति को अपने आवासीय परिसर में पालतू जानवर रखने से रोकता हो, कानून में शून्य और अप्रवर्तनीय होगा।
जस्टिस एके जयसंकरण नांबियार और जस्टिस गोपीनाथ पी एक जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। याचिकाकर्ता जिस अपार्टमेंट में रहता था, उसके रेजिडेंट एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने उसे अपने अपार्टमेंट में पालतू जानवार को रोक दिया था, जिससे व्यथित होकर उसने कोर्ट में याचिका दायर की थी।
केस टाइटल: पीपल फॉर एनिमल्स बनाम केरल राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम अनुच्छेद 226 के तहत माता-पिता के अधिकार क्षेत्र के प्रयोग पर प्रतिबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 या उसके तहत बनाए गए नियम संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत माता-पिता के अधिकार क्षेत्र के प्रयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, "जब तक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की "इच्छाओं और प्राथमिकताओं" और नियमों में निर्धारित अन्य कारकों को न्यायालय द्वारा माता-पिता के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ध्यान में रखा जाता है तो यह नहीं माना जा सकता कि आरपीडब्ल्यूडी-2016 अधिनियम या उसके तहत नियमों के प्रावधानों के मद्देनजर अधिकार से वंचित करने के लिए हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग कर रहा है।"
केस शीर्षक: एसडी बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली गवर्नमेंट और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अगर अपराध का मकसद जातिवादी हमला नहीं है तो एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया कि पीड़ित के एससी/एसटी समुदाय का सदस्य होने कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी / एसटी अधिनियम) के प्रावधानों को हर अपराध में लागू नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार ने कहा, "ऐसा नहीं है कि हर अपराध में यदि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य होता है तो अधिनियम की धारा तीन के तहत अपराध किया गया है। यदि अपराध का मकसद जातिवादी हमला नहीं है तो आरोपी केवल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत किसी भी अपराध के लिए आरोप पत्र दायर किया जा सकता है, जिसे अपराध की घटना की पृष्ठभूमि में या अन्य कानून के तहत उचित रूप से लागू किया जा सकता है। इसे तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार लागू किया जा सकता है।"
केस शीर्षक: लोकनाथ बनाम कर्नाटक राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
गॉकिंग चार्ज की मांग करने का कोई भी प्रयास जबरन वसूली के रूप में माना जाएगा और प्रावधानों के तहत दंडित किया जाएगा: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को यह स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य में गॉकिंग चार्ज (लोकप्रिय रूप से नोक्कुकुली के रूप में जाना जाता है) की मांग करने का कोई भी प्रयास जबरन वसूली के रूप में माना जाएगा और कठोर प्रावधानों के तहत दंडित किया जाएगा।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन को यह सूचित करते हुए प्रसन्नता हुई कि राज्य सरकार ने इस मामले में गहरी दिलचस्पी ली है और इस प्रथा के उन्मूलन की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं।
केस का शीर्षक: टी. के सुंदरेशन बनाम जिला पुलिस प्रमुख
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'असाधारण स्थिति में आवश्यकता के अनुसार एक असाधारण उपाय की आवश्यकता होती है': कर्नाटक हाईकोर्ट ने तेजी से चुनाव कराने के लिए अधिवक्ता एसोसिएशन के उप-नियमों में ढील दी
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बेंगलुरू अधिवक्ता एसोसिएशन के कुछ उपनियमों में ढील दी है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि एसोसिएशन के चुनाव तेजी से और नवीनतम 22 दिसंबर तक पूरे हो जाएं, जैसा कि न्यायालय ने पहले आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने कहा, "उप-नियमों की कठोरता में ढील देने की आवश्यकता है ताकि चुनाव इस न्यायालय द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर आयोजित किए जा सकें और डिवीजन बेंच द्वारा पुष्टि की जा सके कि एक असाधारण स्थिति में आवश्यकता के अनुसार एक असाधारण उपाय की आवश्यकता होती है। इसलिए उप-नियमों के प्रासंगिक प्रावधानों के लिए एचपीसी द्वारा मांगी गई छूट दी जानी चाहिए।"
केस का शीर्षक: एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु बनाम कर्नाटक राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पेशकरों/कोर्ट रीडर द्वारा सुपाठ्य तरीके से आदेश लिखने में विफलता को कदाचार माना जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पेशकरों/कोर्ट रीडर का यह बाध्य कर्तव्य है कि वे न्यायालय के आदेश को सुपाठ्य तरीके से लिखें, ऐसा न करने पर इसे कदाचार माना जा सकता है।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने एक आपराधिक मामले में कुछ आदेशों पर गौर करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने देखा कि बहुत खराब लिखावट में लिखा गया था, जिसे पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।
केस टाइटल - सविता यादव बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. के माध्यम से सचिव एंड अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
विधायिका को कानून बनाने का निर्देश देना अदालत का काम नहीं : राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने सांसद-विधायकों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने के लिए परमादेश रिट जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता विधायिका को किसी विशेष मुद्दे पर कानून बनाने का परमादेश चाहता है, लेकिन यह स्थापित सिद्धांत है कि कोर्ट यह नहीं कर सकता है और न ही करेगा।
चीफ जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस संदीप मेहता की खण्डपीठ ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संसद या विधानसभा सहित अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के चुनाव के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह कोर्ट के विचार का विषय नहीं हो सकता।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
राजस्थान के जज पर लगा नाबालिग लड़के का यौन शोषण करने का आरोप; हाईकोर्ट ने निलंबित किया
राजस्थान के एक जज के खिलाफ राज्य पुलिस ने एक नाबालिग लड़के के साथ छेड़खानी करने, उसका यौन शोषण करने और उसके परिवार के सदस्यों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देने के आरोप में मामला दर्ज किया है।
जितेंद्र सिंह नाम के न्यायाधीश वर्तमान में विशेष न्यायाधीश, विशेष न्यायालय, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, भरतपुर के पद पर तैनात हैं। हालांकि, राजस्थान हाईकोर्ट ने रविवार को उन्हें प्रारंभिक जांच और विभागीय जांच पर विचार होने तक तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।