बिना विवाह के लंबे समय तक साथ रहने से वैवाहिक अधिकारों का कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा: मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
5 Nov 2021 11:15 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जब तक कि शादी कानून के अनुसार नहीं हुई हो तब तक लंबे समय तक साथ रहने से पक्षकारों को वैवाहिक अधिकार पैदा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा।
न्यायमूर्ति एस. वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति आर. विजयकुमार की पीठ एक महिला की अपील पर फैसला सुना रही थी। इसमें एक ऐसे पुरुष के साथ वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की गई थी। इस पुरुष से उसने कानूनी रूप से शादी नहीं की थी। तदनुसार, कोर्ट ने कोयंबटूर में एक फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
कोर्ट ने कहा,
"यह मानते हुए कि लंबे समय तक साथ रहने और निरंतर सहवास करने करने के बावजूद जब तक किसी एक अधिनियम के तहत विवाह को अनुष्ठापित नहीं किया जाता तब वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक आवेदन दायर करने के लिए कार्रवाई का कारण नहीं होगा। एक साथ रहने वाले पक्षकारों को फैमिली कोर्ट के समक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली का कोई कानूनी अधिकार नहीं देगा, जब तक कि उनकी शादी कानून के लिए ज्ञात तरीके से नहीं की गई हो।
वर्तमान मामले में अपीलकर्ता दो बच्चों की मां की शादी पहले उसके पहले पति से हुई थी, जो बाद में उसे छोड़ कर चला गया। उसने आरोप लगाया कि उसके बाद उसने उससे तलाक ले लिया। उसने आगे तर्क दिया कि 2013 में उसने प्रतिवादी से करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों की मौजूदगी में शादी की। आगे यह आरोप लगाया गया कि उसने और प्रतिवादी ने अंगूठियों का आदान-प्रदान भी किया और उसने अनुष्ठान के दौरान उसके पैर की उंगलियों में मिट्टी भी डाल दी थी।
यह दावा करते हुए कि उसने कथित विवाह के बाद प्रतिवादी को बड़ी राशि दी थी, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने मई 2016 से उससे दूर रहना शुरू कर दिया और उसके बाद उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की।
दूसरी ओर, प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि उनके बीच कोई विवाह नहीं हुआ और याचिकाकर्ता को अपने पति होने का दावा करने से रोकने के लिए कोयंबटूर में एक जिला मुंसिफ अदालत के समक्ष उसके द्वारा एक दीवानी मुकदमा शुरू किया गया था। उसने आगे कहा कि वह एक ईसाई है और अपीलकर्ता एक हिंदू है। इस प्रकार कथित विवाह न तो ईसाई तरीके से हुआ था और न ही हिंदू तरीके से। यह भी बताया गया कि विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं किया गया था।
यह मानते हुए कि अपीलकर्ता अभी भी अपने पहले पति से विवाहित है, क्योंकि तलाक की डिक्री प्राप्त नहीं हुई है, अदालत ने कहा,
"अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसने अपने पहले पति से तलाक की डिक्री प्राप्त की है। उसने या तो आदेश की प्रति दाखिल करने या अपनी याचिका में तारीख और मामला संख्या का उल्लेख करने के लिए नहीं चुना है। ये तथ्य स्पष्ट रूप से इंगित करेंगे कि यहां अपीलकर्ता एक विवाहित महिला है और उसे उसके पति ने छोड़ दिया है और उसने न्यायालय के माध्यम से तलाक नहीं लिया है। यह स्पष्ट रूप से दिखाएगा कि अपीलकर्ता किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी बनी हुई है, जिसका नाम अपीलकर्ता ने प्रकट करने के लिए नहीं चुना है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि एक फैमिली कोर्ट को केवल विवाह के पक्षों के बीच दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"मौजूदा मामले में इस न्यायालय ने पहले ही देखा कि यहां अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच कोई विवाह नहीं हुआ है। ऐसी परिस्थितियों में पारिवारिक न्यायालय के पास वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक आवेदन पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।"
तद्नुसार निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका का निस्तारण किया गया।
केस शीर्षक: आर. कलाइसेल्वी बनाम जोसेफ बेबी