पेशकरों/कोर्ट रीडर द्वारा सुपाठ्य तरीके से आदेश लिखने में विफलता को कदाचार माना जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

1 Nov 2021 5:54 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पेशकरों/कोर्ट रीडर का यह बाध्य कर्तव्य है कि वे न्यायालय के आदेश को सुपाठ्य तरीके से लिखें, ऐसा न करने पर इसे कदाचार माना जा सकता है।

    न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने एक आपराधिक मामले में कुछ आदेशों पर गौर करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने देखा कि बहुत खराब लिखावट में लिखा गया था, जिसे पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।

    इसे देखते हुए, उत्तर प्रदेश राज्य भर के जिला न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय द्वारा आदेश-पत्र लिखने वाले पेशकारों/कोर्ट रीडर को स्थायी निर्देश जारी करने का निर्देश दिया गया कि आदेश को इस तरह से लिखा जाना चाहिए कि ठीक से पढ़ा जा सके।

    अनिवार्य रूप से, अदालत सविता यादव द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें उसके द्वारा आईपीसी की धारा 498-ए, 323, 504 और 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग की गई थी। जैसे ही न्यायालय ने आदेश पत्रक पर विचार किया, न्यायालय ने कहा कि आदेश सुपाठ्य नहीं है।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "चूंकि निचली अदालतों के आदेश / आदेशों की टंकित प्रति उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर की जाती है, इसलिए वह आदेश सुपाठ्य होना चाहिए ताकि इसे सही ढंग से टाइप किया जा सके और उच्च न्यायालयों के समक्ष लाया जा सके।"

    गौरतलब है कि कोर्ट ने सख्ती से कहा है कि अगर ऑर्डर-शीट में आदेश इस तरह से लिखा गया है जो पढ़ने में लायक नहीं है तो गलती करने वाले अधिकारी को स्पष्टीकरण देना चाहिए और उसके बाद उसे कानून के अनुसार विभागीय रूप से दंडित किया जाना चाहिए।

    न्यायालय के वरिष्ठ रजिस्ट्रार को उच्च न्यायालय के आदेश को उत्तर प्रदेश राज्य के सभी जिला न्यायाधीशों को सख्त अनुपालन के लिए सर्कुलेट करने का निर्देश दिया गया।

    अदालत ने वर्तमान याचिका को स्वीकार कर ली और सीजेएम, बाराबंकी को 9 महीने के भीतर मामले की सुनवाई समाप्त करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल - सविता यादव बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. के माध्यम से सचिव एंड अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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