हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-07-02 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (26 जून, 2023 से 30 जून, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

[2002 गुजरात दंगा मामला] हाईकोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज की, तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया

गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में उच्च सरकारी अधिकारियों को फंसाने के लिए कथित रूप से फर्जी दस्तावेज तैयार करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज राज्य पुलिस की एफआईआर के संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका को आज खारिज कर दिया।

जस्टिस निर्जर एस.देसाई की बेंच ने आज फैसला सुनाते हुए उन्हें तुरंत सरेंडर करने का निर्देश दिया। अब तक वह सितंबर 2022 के सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम जमानत आदेश के संचालन के कारण दंडात्मक कार्रवाइयों से सुरक्षित थी।

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आदिपुरुष‌ विवाद| 'धार्मिक प्रतीकों के शर्मनाक चित्रण से लोगों की भावनाएं आहत हुईं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिल्म निर्देशक, संवाद लेखक की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओम राऊत निर्देशित फिल्‍म आदिपुरुष के मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि भगवान राम, देवी सीता और भगवान हनुमान सहित धार्मिक प्रतीकों के शर्मनाक और घृणित चित्रण ने बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं को आहत किया है। हाईकोर्ट ने फिल्म निर्देशक ओम राउत और ‌फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति होकर अपनी प्रामाणिकता को समझाने के लिए कहा है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार को प्रभास, सैफ अली खान और कृति सैनन अभिनीत फिल्म को जारी प्रमाण पत्र की 'फिर से समीक्षा' करने के लिए एक समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है।

केस टाइटल-कुलदीप तिवारी एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, सचिव सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से और 13 अन्य एक संबंधित जनहित याचिका के साथ

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धारा 362 सीआरपीसी | अंतिम निर्णय आने के बाद कोई भी अदालत लिपिकीय त्रुटि को सुधारने के अलावा फैसले में बदलाव नहीं कर सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में निर्णय में संशोधन के लिए एक आपराधिक आवेदन को खारिज कर दिया, और माना कि किसी न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी भी निर्णय या अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर होने के बाद उसे लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटि को सुधारने के अलावा बदला या पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है।

केस: दीपक कुमार मंडल और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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लोक अदालत द्वारा दिया गया निर्णय गैर-निष्पादन योग्य, यदि इसमें दोनों पक्षों के हस्ताक्षर नहीं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि लोक अदालत द्वारा पारित एक निर्णय, जिसमें समझौते के दोनों पक्षों के हस्ताक्षर शामिल नहीं हैं, कानून की नजर में वैध नहीं है। न्यायालय ने यह भी माना कि पक्षों के वकीलों के हस्ताक्षर अवॉर्ड को वैधता देने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।

जस्टिस विजू अब्राहम की एकल पीठ ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22 सी (7), केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण विनियमन, 1998 के विनियमन 33 और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (लोक अदालत) विनियमन के विनियमन 17 का उल्लेख किया। 2009 में यह निष्कर्ष निकाला गया कि दोनों पक्षों को अवॉर्ड पर अपने हस्ताक्षर करने होंगे और जब पार्टियों का प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा किया जाता है, तो भी उन्हें अपने हस्ताक्षर करने होंगे।

केस टाइटल: के आर जयप्रकाश बनाम केरल राज्य

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पीवीआर बनाम प्रोटियस एलएलपी | भुगतानकर्ता का बैंक अकाउंट किसी विशेष शहर में होने का मतलब यह नहीं है कि बिल उस शहर में देय है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी बिल में केवल प्राप्तकर्ता के बैंक अकाउंट का उल्लेख किसी विशेष शहर में होने का मतलब यह नहीं है कि बिल उस शहर में देय है।

जस्टिस डॉक्टर आरिफ एस ने प्रोटियस एलएलपी के खिलाफ पीवीआर के वाणिज्यिक सारांश मुकदमे का फैसला सुनाया और प्रोटियस को पुणे और मुंबई में पीवीआर के मल्टीप्लेक्स में विज्ञापनों की स्क्रीनिंग के लिए अपना बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया, जबकि मामले में बॉम्बे एचसी के अधिकार क्षेत्र के लिए प्रोटियस की चुनौती को खारिज कर दिया।

केस टाइटल- पीवीआर लिमिटेड बनाम एम/एस प्रोएटस वेंचर्स एलएलपी और अन्य।

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लोक अदालत के फैसले को लागू करने योग्य बनाने के लिए इसमें डिक्री की सभी विशेषताएं शामिल होनी चाहिए: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लोक अदालत द्वारा पारित किसी फैसले को लागू करने योग्य बनाने के लिए उसमें डिक्री की सभी विशेषताएं शामिल होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 20 नियम 6 (1) और (9) जो डिक्री की सामग्री से संबंधित हैं, का पालन किया जाना चाहिए।

जस्टिस मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा, “किसी अवॉर्ड को निष्पादित करने के लिए, इसे लागू करने के लिए डिक्री के सभी पात्र होने चाहिए। अगर अवॉर्ड खाली है और निष्पादित किए जाने वाले दायित्व की प्रकृति का उल्लेख किए बिना केवल दायित्व को संदर्भित करता है, तो यह निष्पादन योग्य नहीं हो जाता है। लोक अदालत द्वारा पारित निर्णय पक्षकारों के बीच समझौते पर आधारित होता है। ऐसी अदालत की अध्यक्षता करने वाले अधिकारियों को पुरस्कार पारित करते समय अपना दिमाग लगाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऐसा पुरस्कार निष्पादन योग्य है। उन्हें सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 20 नियम 6 (1) और (9) का उल्लेख करना चाहिए जो डिक्री की सामग्री को संदर्भित करता है।“

केस टाइटल: विजया के बनाम मुरलीधरन के जी

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धारा 375 आईपीसी| '2013 के संशोधन द्वारा सहमति की आयु बढ़ाकर 18 वर्ष करने से समाज का ढांचा बिगड़ गया है': एमपी हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इसे घटाकर 16 वर्ष करने पर विचार करने को कहा

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को भारत सरकार से किशोरों के साथ हो रहे अन्याय के निवारण के लिए बलात्कार के मामलों में सहमति की उम्र 18 वर्ष (भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अनुसार) से घटाकर 16 वर्ष करने पर विचार करने का अनुरोध किया।

जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की पीठ ने केंद्र सरकार से यह अपील की क्योंकि उनकी राय थी कि सोशल मीडिया जागरूकता और इंटरनेट कनेक्टिविटी की आसान पहुंच के कारण, 14 वर्ष की आयु के करीब यौवन आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप युवा लड़के और लड़कियों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बनते हैं।

केस टाइटलः राहुल चंदेल जाटव बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के कारणों को लिखित में दर्ज करने के लिए बाध्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

'पुलिस अधिकारी या जांच अधिकारी को किसी की गिरफ्तारी करते समय लिखित में उसके कारणों को दर्ज करना आवश्यक है, बाध्यकारी है।' ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि जांच एंजेंसियां और उनके अधिकारी सीआरपीसी की धारा 41 और 41 ए की प्रक्रिया का भी पालन करना होगा, जिसमें संज्ञेय या असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तारी का उल्लेख किया गया है। साथ ही अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

केस टाइटल - राजकुमारी बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या – 7496 ऑफ 2023]

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महाराष्ट्र पुलिस एक्ट | बाहरी प्राधिकरण अच्छे व्यवहार बांड के लिए सीआरपीसी की धारा 110 के तहत कार्यवाही शुरू करने का निर्देश नहीं दे सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि महाराष्ट्र पुलिस एक्ट के तहत बाहरी प्राधिकारी के पास सीआरपीसी की धारा 110 के तहत कारण बताओ नोटिस के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट से संपर्क करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की कोई शक्ति नहीं है।

जस्टिस सारंग वी. कोटवाल ने कहा कि एक बार जब किसी व्यक्ति के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस एक्ट की धारा 59 के तहत प्रक्रिया जारी हो जाती है तो बाहरी प्राधिकारी द्वारा निर्वासन आदेश या निर्वासन कार्यवाही को छोड़ने के आदेश के अलावा कोई अन्य आदेश पारित नहीं किया जा सकता।

केस टाइटल- गौतम शांतिलाल दायमा बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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हाईकोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता, सीआरपीसी की धारा 362 के तहत प्रतिबंधितः राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि आईपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग किसी आपराधिक अदालत के अंतिम आदेश को बदलने या पुनर्विचार करने के लिए नहीं किया जा सकता।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, “सीआरपीसी की धारा 362 का उद्देश्य यह है कि एक बार जब कोई न्यायालय किसी मामले का निपटारा करने के लिए कोई निर्णय या अंतिम आदेश देता है तो वह निर्णय कार्यात्मक बन जाता है। उस पर पुनर्विचार या संशोधन नहीं किया जा सकता है। न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग ऐसा कुछ करने के लिए नहीं किया जा सकता, जो सीआरपीसी द्वारा विशेष रूप से निषिद्ध है। क्योंकि ऐसा करना विधानमंडल द्वारा अधिनियमित कानून और सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का उल्लंघन होगा। इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 482 हाईकोर्ट को कोई नई शक्तियां प्रदान नहीं करती; यह केवल उस अंतर्निहित शक्ति को बचाता है जो न्यायालय के पास संहिता के प्रारंभ होने से पहले है।"

केस टाइटल: धरम सिंह मीना और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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'आदिपुरुष' को प्रमाणित करना एक भूल, भावनाएं आहत हुईं; गलत तथ्यों के साथ 'कुरान' पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाएं और देखें क्या होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओम राउत निर्देशित फिल्म आदिपुरुष के दृश्यों और संवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि फिल्म को प्रमाणित करना एक भूल थी और इससे बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने फिल्म के निर्माताओं की मानसिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुरान और बाइबिल जैसे पवित्र ग्रंथों को इस तरह से नहीं छुआ जाना चाहिए और उनका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।

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'सभी धर्मों की भावनाओं के बारे में समान रूप से चिंतित; पवित्र ग्रंथों को इस तरह नहीं छुआ जाना चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदिपुरुष के निर्माताओं को भगवान राम और भगवान हनुमान सहित रामायण के धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से दिखाने के लिए एक बार फिर फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने आज की सुनवाई में कहा कि कानून की अदालत किसी एक धर्म के बारे में नहीं है और सभी धर्मों की भावनाओं से समान रूप से जुड़ी है।

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रुपये की वापसी की मांग छोड़ने के लिए किसी पर दबाव डालना आईपीसी की धारा 383 के अनुसार 'जबरन वसूली' नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने वर्ली के व्यवसायी हेमंत बैंकर के खिलाफ अविघ्न ग्रुप के मालिक कैलाश अग्रवाल की ओर से दायर जबरन वसूली के मामले को रद्द कर दिया है। फैसले में कहा गया है कि किसी को अपने पैसे वापस करने की मांग छोड़ने के लिए धमकाना जबरन वसूली नहीं है। अग्रवाल ने आरोप लगाया था कि गैंगस्टर विजय शेट्टी ने हेमंत या उनके बेटे रूपिन बैंकर के कहने पर उन्हें धमकी दी थी।

केस टाइटलः हेमन्त धीरजलाल बैंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, मीनाक्षी रूपिन बैंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य

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धारा 19 एमएसएमई एक्ट | अदालत को यह निर्धारित करना चाहिए कि क्या अपीलकर्ता ने वास्तव में प्री-‌डिपॉजिट रा‌शि जमा की है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को जिला न्यायालय को निर्देश दिया, जिसने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (एमएसएमई अधिनियम) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए एक मध्यस्थ अवॉर्ड के निष्पादन पर रोक लगा दी, पहले यह निर्धारित करें कि क्या अधिनियम की धारा 19 का अनुपालन किया गया।

प्रावधान के अनुसार अवॉर्ड को चुनौती देने वाली पार्टी को अवॉर्ड का 75% पूर्व-जमा करना होगा। जस्टिस जोत्स्ना रेवाल दुआ ने कहा कि जिला अदालत को यह देखना होगा कि पूर्व-जमा राशि वास्तव में जमा की गई है या नहीं।

केस टाइटल: मैसर्स प्रताप इंडस्ट्रीज प्रोडक्ट्स बनाम मेसर्स हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड

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[धारा 55 एनडीपीएस एक्ट] अभियोजन प्रतिबंधित सामग्री की 'सुरक्षित कस्टडी' साबित करने के लिए बाध्य, अनुपालन ना हो तो आरोपी बरी होगा: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख ‌हाईकोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 55 के महत्व पर प्रकाश डालते हुए,कहा कि यह प्रावधान प्रतिबंधित सामग्री के साथ छेड़छाड़ के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए विशेष रूप से पेश किया गया है। यह प्रतिबंधित पदार्थ को तुरंत पुलिस स्टेशनों के सुरक्षित भंडारण में स्थानांतरित करने और उसे फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) को समय पर अग्रेषित करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल देता है।

केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम शाम लाल

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वैवाहिक घर में महिला का सुसाइड करना अपने आप में पति, ससुराल वालों को उत्पीड़न, उकसावे के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़ा एक मामला आय़ा। कोर्ट ने मामले में आरोपियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा। और कहा कि वैवाहिक घर में एक महिला का सुसाइड करना अपने आप में उसके ससुराल वालों और पति को उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता है।

केस के मुताबिक, साल 2002 में वैवाहिक घर में महिला ने आत्महत्या कर ली थी। महिला के पिता ने आरोप लगाया कि सुसराल वाले दहेज की मांग करते थे और महिला का उत्पीड़न करते थे। इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। हालांकि मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2006 में आरोपियो को बरी कर दिया था।

केस टाइटल :हरियाणा राज्य बनाम दर्शन लाल और अन्य

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आर्म्स लाइसेंस रद्द करने को उचित ठहराने के लिए सिर्फ शिकायत अपर्याप्त है, सार्वजनिक शांति या सुरक्षा भंग करने के साक्ष्य की आवश्यकता: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, पटना को हथियार लाइसेंस रद्द करने का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया कि केवल शिकायत का अस्तित्व लाइसेंस रद्द करने के लिए अपर्याप्त आधार है जब तक कि यह सार्वजनिक शांति या सुरक्षा के लिए खतरा न हो। जस्टिस हरीश कुमार ने रजनीश सिंह द्वारा दायर रिट आवेदन का निपटारा करते हुए उपरोक्त निर्देश जारी किया था, जिन्होंने हथियार लाइसेंस को बहाल करने के लिए मंडलायुक्त, पटना डिवीजन के आदेश को लागू करने की मांग की थी।

केस टाइटल: रजनीश सिंह @ रजनीश कुमार @ चुहवा बनाम बिहार राज्य सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 3709, 2020

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गृहिणी के रूप में पत्नी पति को संपत्ति अर्जित करने में योगदान देती है, वह संपत्तियों में बराबर हिस्सेदारी की हकदार : मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाल ही में कहा कि एक पत्नी, जिसने घरेलू कामकाज करके पारिवारिक संपत्ति के अधिग्रहण में योगदान दिया, वह पति द्वारा अपने नाम पर खरीदी गई संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी की हकदार होगी, क्योंकि वह ने अप्रत्यक्ष रूप से इसकी खरीद में योगदान दिया।

कोर्ट ने कहा, "पत्नियां अपने घरेलू कामकाज करके पारिवारिक संपत्तियों के अधिग्रहण में जो योगदान देती हैं, जिससे उनके पति लाभकारी रोजगार के लिए फ्री रहते हैं। यह एक ऐसा कारक है जिसे यह न्यायालय विशेष रूप से संपत्तियों में अधिकार या स्वामित्व स्टैंड का फैसला करते समय ध्यान में रखेगा। पति या पत्नी के नाम पर और निश्चित रूप से, पति या पत्नी जो घर की देखभाल करते हैं और दशकों तक परिवार की देखभाल करते हैं, संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं।"

केस टाइटल : कन्नैयन नायडू और अन्य बनाम कंसाला अम्मल और अन्य

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