'आदिपुरुष' को प्रमाणित करना एक भूल, भावनाएं आहत हुईं; गलत तथ्यों के साथ 'कुरान' पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाएं और देखें क्या होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

28 Jun 2023 11:59 AM GMT

  • आदिपुरुष को प्रमाणित करना एक भूल, भावनाएं आहत हुईं; गलत तथ्यों के साथ कुरान पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाएं और देखें क्या होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    Allahabad High Court 

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओम राउत निर्देशित फिल्म आदिपुरुष के दृश्यों और संवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि फिल्म को प्रमाणित करना एक भूल थी और इससे बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने फिल्म के निर्माताओं की मानसिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुरान और बाइबिल जैसे पवित्र ग्रंथों को इस तरह से नहीं छुआ जाना चाहिए और उनका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि फिल्म में जिस तरह से रामायण के धार्मिक पात्रों को चित्रित किया गया है, उससे लोगों की भावनाएं आहत हुई होंगी। कोर्ट ने कहा कि हाल के दिनों में उसे ऐसी कई फिल्में देखने को मिली हैं जिनमें हिंदू देवी-देवताओं को मजाकिया तरीके से दिखाया गया है।

    "अगर हम आज अपना मुंह बंद कर लेंगे तो आप जानते हैं क्या होगा? ये घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। मैंने एक फिल्म देखी थी जिसमें भगवान शंकर को अपने त्रिशूल के साथ बहुत अजीब तरीके से दौड़ते हुए दिखाया गया था। अब, इन चीजों का प्रदर्शन किया जाएगा? ...जैसे-जैसे फिल्में व्यवसाय करती हैं, फिल्म निर्माता पैसा कमाते हैं।"

    मान लीजिए अगर आप कुरान पर एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री भी बना दें, जिसमें गलत चीजों का चित्रण हो, तो आप देखेंगे कि क्या होगा...हालांकि, मैं एक बार फिर स्पष्ट कर दूं कि यह किसी एक धर्म के बारे में नहीं है। यह संयोग है कि इस मुद्दे का संबंध रामायण से है, अन्यथा न्यायालय सभी धर्मों का है।”

    हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मुद्दा किसी एक धर्म के बारे में नहीं है, लेकिन, किसी विशेष धर्म को खराब रोशनी में चित्रित नहीं किया जाना चाहिए। इस बात पर जोर देते हुए कि कोर्ट का अपना कोई धर्म नहीं है, कोर्ट ने कहा कि उसकी एकमात्र चिंता यह है कि कानून और व्यवस्था की स्थिति बनी रहे।

    गौरतलब है कि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने अभी तक इस मामले में कोई ठोस आदेश पारित नहीं किया है और न्यायालय की मौखिक टिप्पणियां मौजूदा मुद्दे से संबंधित थीं।

    कोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा, "लेकिन आप देखेंगे कि शाम तक ये सारी बातें (मीडिया में) प्रकाशित हो जाएंगी।"

    कल एक घंटे की सुनवाई के बाद, अदालत ने आज फिर से मामले की सुनवाई की और आश्चर्य जताया कि 'आदिपुरुष' फिल्म निर्माताओं के दिमाग में क्या चल रहा था जब वे इस फिल्म को लेकर आए थे। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि रामायण के पात्रों के बारे में कोई भी इस तरह से नहीं सोचता, जिस तरह से फिल्म निर्माताओं ने इसे चित्रित किया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "क्या कोई कल्पना करता है कि धार्मिक पात्र उस तरह से रहे होंगे जैसे उन्हें फिल्म में दिखाया गया है? फिल्म में पात्रों ने जो पोशाक पहनी है, क्या हम कल्पना करते हैं कि हमारे भगवान ऐसे ही होंगे? रामचरितमानस एक पवित्र ग्रंथ है, लोग इसका पाठ करते हैं अपने घरों को छोड़ने से पहले और आप इसे इतने दयनीय तरीके से चित्रित करते हैं?"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट के सामने मुद्दा यह है कि रामायण के सभी पात्र, जिनकी लोग बड़े पैमाने पर पूजा करते हैं, उन्हें दयनीय तरीके से दिखाया गया है। कोर्ट ने सवाल किया कि सीबीएफसी ने ऐसी फिल्म को क्यों पास किया और उसने ऐसी फिल्म को प्रमाणित करके बड़ी गलती की है।

    इसके जवाब में जब डिप्टी एसजीआई ने कहा कि प्रमाणपत्र बोर्ड ने दिया है, जिसमें समझदार लोग शामिल हैं, न्यायालय ने हल्के अंदाज में टिप्पणी की कि अगर ऐसे 'संस्कारी' लोग ऐसी फिल्म देख रहे हैं, तो वे वास्तव में धन्य हैं।

    पीठ ने यह भी कहा कि उसने कई लोगों से फिल्म के बारे में उनके विचार पूछे और पाया कि फिल्म असहनीय थी और कुछ लोग तो फिल्म पूरी भी नहीं कर सके क्योंकि वे हिंदू देवी-देवताओं का गलत तरीके से चित्रण नहीं देख सकते थे।

    कोर्ट ने कहा, "कुछ लोग पूरी फिल्म नहीं देख पाए। जो लोग भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और मां सीता का सम्मान करते हैं, वे ऐसी फिल्म नहीं देख सकते।"

    कोर्ट आने वाले दिनों में भी याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगा।

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