हाईकोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता, सीआरपीसी की धारा 362 के तहत प्रतिबंधितः राजस्थान हाईकोर्ट

Shahadat

30 Jun 2023 4:46 AM GMT

  • हाईकोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता, सीआरपीसी की धारा 362 के तहत प्रतिबंधितः राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि आईपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग किसी आपराधिक अदालत के अंतिम आदेश को बदलने या पुनर्विचार करने के लिए नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

    “सीआरपीसी की धारा 362 का उद्देश्य यह है कि एक बार जब कोई न्यायालय किसी मामले का निपटारा करने के लिए कोई निर्णय या अंतिम आदेश देता है तो वह निर्णय कार्यात्मक बन जाता है। उस पर पुनर्विचार या संशोधन नहीं किया जा सकता है। न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग ऐसा कुछ करने के लिए नहीं किया जा सकता, जो सीआरपीसी द्वारा विशेष रूप से निषिद्ध है। क्योंकि ऐसा करना विधानमंडल द्वारा अधिनियमित कानून और सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का उल्लंघन होगा। इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 482 हाईकोर्ट को कोई नई शक्तियां प्रदान नहीं करती; यह केवल उस अंतर्निहित शक्ति को बचाता है जो न्यायालय के पास संहिता के प्रारंभ होने से पहले है।"

    पीठ हाईकोर्ट के 8 अगस्त, 2017 के आदेश के खिलाफ दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

    अभियोजन पक्ष का आरोप है कि याचिकाकर्ताओं ने विज्ञापित कांस्टेबल के पदों के लिए आवेदन किया। हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से कुछ अन्य व्यक्ति लिखित परीक्षा में उपस्थित हुए।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि समान परिस्थितियों में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दिल्ली के सराय रोहिल्ला पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 419, 468 और 471 के तहत अपराध के लिए दो एफआईआर दर्ज की गई। आगे कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों एफआईआर रद्द कर दी।

    यह प्रस्तुत किया गया कि यह तथ्य याचिकाकर्ताओं की जानकारी में नहीं था। इसलिए पिछली याचिका के निपटान के समय इसे इस न्यायालय के ध्यान में नहीं लाया जा सका।

    यह तर्क दिया गया कि बदली हुई परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए और विवादित एफआईआर रद्द कर दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 362 के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार, वह पिछली याचिका में कोर्ट द्वारा पारित 08 अगस्त, 2017 के आदेश को नहीं बदल सकता।

    न्यायालय ने कहा,

    “सीआरपीसी की धारा 482 का स्पष्ट प्रावधान है कि सीआरपीसी में कुछ भी नहीं है। इसे हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित करने वाला माना जाएगा। हालांकि, यह प्रतिबंध सीआरपीसी की धारा 362 के तहत है, जो किसी न्यायालय को किसी लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटि को सुधारने के अलावा किसी मामले के निपटान के अपने फैसले या अंतिम आदेश को बदलने या पुनर्विचार करने से रोकता है, जो सीआरपीसी की धारा 482 पर लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार माना है कि सीआरपीसी की धारा 362 के तहत पुनर्विचार की बाधा को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।''

    कोर्ट ने सिमरिखिया बनाम डॉली मुखर्जी, (1990) 2 एससीसी 437 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और माना कि यदि वर्तमान याचिका में की गई प्रार्थना के अनुरूप कोई भी आदेश पारित किया जाता है तो यह निश्चित रूप से पुनर्विचार के समान होगा। जोकि सीआरपीसी की धारा 362 के तहत वर्जित है और न्यायालय द्वारा प्राप्त अंतर्निहित शक्तियों के तहत भी इसकी अनुमति नहीं है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने आपराधिक विविध याचिकाएं खारिज कर दीं।

    केस टाइटल: धरम सिंह मीना और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

    कोरम: जस्टिस अनूप कुमार ढांड

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