चश्मदीद ने घटना को ‘बलात्कार’ नहीं बताया,‘पीड़िता के विरोध’ की कोई चर्चा नहीं, क्या यह सहमति थी? : गुवाहाटी हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को खारिज कर दिया
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पीड़िता की गवाही पर अविश्वास करते हुए एक विवाहित महिला के साथ कथित बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति की सजा को पलट दिया है। जस्टिस अरुण देव चौधरी ने पीड़िता के बयानों में विसंगति देखी और यह भी आश्चर्य जताया कि क्या कृत्य सहमति से किया गया था क्योंकि चश्मदीद गवाह ने पीड़िता द्वारा कृत्य का प्रतिरोध करने के बारे में कोई बयान नहीं दिया है।
पीठ ने कहा,
‘‘वह (चश्मदीद) सुबह लगभग 11 बजे पीड़िता के घर गई और उसने आरोपी और पीड़िता को अवैध कृत्य करते देखा और उन्हें अवैध कृत्य में शामिल देखकर वह वापस लौट आई। अपने बयान में उसने इस बात की कोई जिक्र नहीं किया है कि पीड़िता द्वारा कोई प्रतिरोध किया गया था या उसने कोई शोर मचाया था...यह बयान... संदेह पैदा करता है कि क्या यह बलात्कार था या सहमति से किया गया कार्य था?’’
शिकायतकर्ता-पीड़िता द्वारा यह आरोप लगाते हुए एक एफआईआर दर्ज करवाई गई थी कि 3 अक्टूबर, 2019 को सुबह लगभग 11 बजे, आरोपी ने पीड़िता के पति और परिवार के अन्य सदस्यों की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर उसके आवास में प्रवेश किया। जिसके बाद उसकी लज्जा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया।
शिकायत मिलने पर आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 448 और 376 के तहत मामला दर्ज किया गया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी-अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे 10 साल की कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई। इस पर आपत्ति जताते हुए आरोपी ने वर्तमान अपील दायर की।
अदालत ने कहा कि एफआईआर में पीड़िता ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने उसके परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया, जबकि अदालत के समक्ष अपने बयान में उसने गवाही दी है कि आरोपी ने उसके साथ लगभग आधे घंटे तक जबरदस्ती बलात्कार किया। अदालत ने आगे कहा कि दो व्यक्ति जो उसकी कथित चीख-पुकार सुनकर घटनास्थल पर आए थे, उन्हें न तो गवाह के रूप में सूचीबद्ध किया गया और न ही उनका बयान दर्ज करवाया गया, जो जांच में एक महत्वपूर्ण खामी है।
अदालत ने आगे कहा कि चश्मदीद गवाह ने इस घटना को बलात्कार नहीं बल्कि ‘‘आरोपी और पीड़िता दोनों द्वारा किया जा रहा अवैध कृत्य’’ बताया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार हिंसा के कोई निशान नहीं थे। कोर्ट ने कहा अगर पीड़िता ने आरोप लगाया है कि उसके साथ आधे घंटे तक बलात्कार किया गया और वह विरोध कर रही थी और शोर मचा रही थी, तो यह निश्चित रूप से चोट के कुछ न्यूनतम सबूत या हिंसा के निशान का संकेत दे रहा है।
कोर्ट ने कहा,“...इस अदालत की सुविचारित राय में, उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर, पीडब्ल्यू-1 के साक्ष्यों की गुणवत्ता के आधार पर, पीड़िता को आईपीसी की धारा 376 के तहत याचिकाकर्ता को दोषी ठहराने के लिए उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला गवाह नहीं माना जा सकता है। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, पीडब्ल्यू-2 (चश्मदीद) का बयान बलात्कार का नहीं बल्कि सहमति से बने संबंध का संकेत देता है क्योंकि उसने किसी भी प्रतिरोध या आरोपी द्वारा इस्तेमाल किए गए किसी भी बल के बारे में कुछ भी नहीं बताया है। बल्कि उसने यह बयान दिया है कि उसने दोनों को देखा था कि वे ग़ैरक़ानूनी कृत्य कर रहे हैं क्योंकि आम बोलचाल की भाषा में ग़ैरक़ानूनी कृत्य का अर्थ निश्चित रूप से वर्तमान मामले के संदर्भ में पति के अलावा किसी तीसरे पक्ष के साथ अवैध संबंध या यौन संबंध बनाना होगा।’’
इस प्रकार, न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल- रहम अली बनाम असम राज्य व अन्य
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (जीएयू) 83
फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें