सीबीएफसी अध्यक्ष के पास फिल्म को दूसरी पुनरीक्षण समिति को भेजने की शक्ति नहीं है; कार्रवाई अवैध, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का उल्लंघन: केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-12-31 02:30 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अध्यक्ष का फिल्म 'पुझा मुथल पूझा वारे' को दूसरी पुनरीक्षण समिति को संदर्भित करने का निर्णय अवैध है और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 और सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियमों, 1983 का उल्लंघन है।

जस्टिस एन नागरेश ने कहा कि नियम 24(12) विशेष रूप से अनिवार्य करता है कि जहां अध्यक्ष पुनरीक्षण समिति के बहुमत के निर्णय से असहमत हैं, बोर्ड स्वयं फिल्म की जांच करेगा या फिल्म की जांच एक अन्य पुनरीक्षण समिति द्वारा करवाएगा और यह कि बोर्ड या दूसरी पुनरीक्षण समिति, जैसा भी मामला हो, का निर्णय अंतिम होगा।

अदालत ने कहा कि परीक्षा समिति ने 24.06.2022 को प्रसिद्ध मलयालम फिल्म निर्देशक अली अकबर की फिल्म की स्क्रीनिंग की और परीक्षा समिति के अधिकांश सदस्यों ने फिल्म को प्रमाणन नहीं देने की सिफारिश की। यह भी पाया गया कि चूंकि अध्यक्ष सिफारिश से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए उन्होंने इस मामले को एक पुनरीक्षण समिति को भेजने का फैसला किया।

पहली पुनरीक्षण समिति के कुल पांच सदस्यों ने सात संशोधनों के अधीन फिल्म को मंजूरी दी।

कोर्ट ने कहा,

"नियम 24(12) को पढ़ने से पता चलता है कि पुनरीक्षण समिति का निर्णय बहुमत से होना चाहिए। इसलिए, जब पुनरीक्षण समिति के आठ में से पांच सदस्यों ने सात संशोधनों के साथ फिल्म को मंजूरी दी, तो अध्यक्ष के पास या तो सिफारिश को स्वीकार करने का विकल्प था। पुनरीक्षण समिति या यदि अध्यक्ष समिति के बहुमत के फैसले से असहमत हैं, तो मामले को फिल्म की जांच के लिए बोर्ड को संदर्भित करें।"

इसमें कहा गया है कि नियम 24(12) का प्रावधान स्पष्ट है कि जहां अध्यक्ष पुनरीक्षण समिति के बहुमत के निर्णय से असहमत हैं, तो यह केवल बोर्ड है जो या तो खुद फिल्म की जांच कर सकता है या फिल्म की एक अन्य पुनरीक्षण समिति द्वारा फिर से जांच करवा सकता है।

कोर्ट ने कहा,

"इस मामले में, अध्यक्ष ने स्वयं फिल्म को 18.06.2022 को दूसरी पुनरीक्षण समिति के पास भेजा है। अध्यक्ष की उक्त कार्रवाई अवैध है और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 और सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 1983 का उल्लंघन है।"

अकबर, जो एक पटकथा लेखक और गीतकार भी हैं, उन्होंने रिट याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि सीबीएफसी और उसके अध्यक्ष की कार्रवाई मनमाना है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

अदालत ने आदेश में कहा कि यह फिल्म 1921 के मालाबार विद्रोह पर आधारित है।

दूसरी पुनरीक्षण समिति ने 12 संशोधनों का सुझाव दिया था लेकिन याचिकाकर्ता के अनुसार, "छांटने की कुल संख्या 12 से अधिक होगी और यह फिल्म की आत्मा को कमजोर कर देगी"।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवेकेट पी रवींद्रन ने तर्क दिया कि अगर अध्यक्ष पहली समीक्षा समिति की रिपोर्ट या सिफारिशों से असहमत हैं तो मामले को सीबीएफसी को भेजा जाना चाहिए था।

दूसरी ओर, भारत के उप सॉलिसिटर जनरल एस. मनु ने तर्क दिया कि जब 26 अप्रैल, 2022 को जांच समिति द्वारा फिल्म देखी गई, तो समिति के तीन सदस्यों ने फिल्म को प्रमाणन से इनकार करने की सिफारिश की, क्योंकि उन्होंने पाया कि इसमें निहित है दृश्यों के साथ-साथ संवाद जो सार्वजनिक व्यवस्‍था को प्रभावित करने की संभावना रखते थे, जबकि शेष सदस्यों ने यूए प्रमाण पत्र की सिफारिश की थी।

इसके बाद यह फिल्म सीबीएफसी के अध्यक्ष द्वारा पुनरीक्षण समिति को भेजी गई थी। इसकी रिपोर्ट मिलने पर, चैयरमैन ने फिल्म को दूसरी पुनरीक्षण समिति को भेजना आवश्यक समझा।

डीएसजी द्वारा यह तर्क दिया गया कि निर्णय लेते समय याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर दिया गया था, और याचिकाकर्ता ने समितियों द्वारा फिल्म की स्क्रीनिंग में भी भाग लिया था। अदालत को बताया गया कि उन्होंने इस तरह के सम्मिलन या संशोधनों के खिलाफ कोई वैध कारण नहीं दिया था।

केस टाइटल: अली अकबर @ रामसिम्हन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य

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