"हम उसे नहीं जगा सकते जो सोने का नाटक कर रहा है": केरल हाईकोर्ट ने पीड़ित सुरक्षा योजना के अप्रभावी कार्यान्वयन पर कहा

Update: 2021-11-30 08:02 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने राज्य में सेक्‍सुअल असॉल्ट सर्वाइवर्स के लिए विक्टिम प्रोटेक्शन प्रोग्राम की अपर्याप्तता और कार्यान्वयन की कमी को एक बार फिर रेखांकित किया है। जस्टिस देवन रामचंद्रन यौन हमले की एक पीड़िता द्वारा आरोपी और दो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुना रहे थे। याचिका में आरोपी और पुलिसकर्मियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।

सहायक पुलिस आयुक्त की रिपोर्ट से पता चला कि पीड़िता के संपर्क अधिकारी को सर्वाइवर्स के लिए मौजूदा प्रोटोकॉल के अनुसार नियुक्त किया गया था। फिर भी पीड़िता को उक्त अधिकारी के बिना कई मौकों पर पुलिस स्टेशन का दौरा करना पड़ा। उसने यौन उत्पीड़न के बाद हुई गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए पुलिस से संपर्क किया था।

अदालत ने कहा कि यह काफी निराशाजनक है कि जब पीड़िता ने मदद के लिए संपर्क अधिकारी से संपर्क किया तो वह उसकी सहायता और मार्गदर्शन करने में विफल रही। जज यह देखकर हैरान रह गए कि रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि "आश्चर्यजनक रूप से एक दिन" वह संपर्क अधिकारी की नियुक्ति के बाद पुलिस स्टेशन गई थी।

"पीड़ित संपर्क अधिकारी की उपस्थिति स्पष्ट रूप से उपेक्षा की स्थिति में है, क्योंकि यह वह अधिकारी है, जिसे पीड़ित को उचित सलाह देनी चाहिए थी क्योंकि वह कानूनी रूप से प्रशिक्षित नहीं है जैसा कि इस राज्य के अधिकांश अन्य नागरिक हैं।"

कोर्ट ने तुरंत पीड़िता के संपर्क अधिकारी को उससे मिलने और सीआरपीसी की धारा 164 ए (दुष्कर्म पीड़िता की चिकित्सा जांच) के तहत उसकी याचिका में सहायता करने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट धीरज राजन ने प्रस्तुत किया था कि थ्रीक्काकारा पुलिस थाने से जुड़े स्टेशन हाउस ऑफिसर और एक सिविल पुलिस ऑफिसर यौन हमले के मामले में आरोपी के साथ मिलकर काम कर रहे थे।

बाद में, पीड़िता अपनी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति के लिए पुलिस स्टेशन गई लेकिन उसे बताया गया कि यह उनके अधिकार में नहीं है। ऐसे संकेत भी थे कि पुलिस अधिकारियों ने उसे समझाने की कोशिश की कि यह वैध नहीं है।

सरकारी वकील ईसी बिनीश ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत इसे अनुमति देना या अस्वीकार करना पुलिस के अधिकार में नहीं है।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पीड़िता संरक्षण संपर्क का यह कर्तव्य है कि वह उसे मामले में शामिल वैधानिकताओं के बारे में सलाह दे और पुलिस थाने जाने के लिए मजबूर करने के बजाय उसके आवास पर उसके बयान लेकर उसकी गुमनामी की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

जज ने कहा, "मैं यह स्पष्ट करता हूं कि सैल्यूटरी विक्टिम प्रोटेक्शन प्रोटोकॉल के तहत याचिकाकर्ता की नाम न छापने की अपरिहार्य आवश्यकताओं को हर स्तर पर बनाए रखा जाएगा और उसे पुलिस स्टेशन या जनता के सामने उजागर नहीं किया जाएगा..."

कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि यदि विक्टिम प्रोटेक्‍शन प्रोटोकॉल को इस तरह से लागू किया जाता है तो निश्चित रूप से पीड़ितों को कागजी सेवा के अलावा कोई लाभ नहीं मिलेगा।

कोर्ट ने आखिर में टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारी पीड़ित संरक्षण कार्यक्रम के तहत प्रक्रियाओं और जिम्मेदारियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और वे उन्हें प्रभावी नहीं करने का विकल्प चुन रहे हैं:

"मैं उसे जगा सकता हूं, जो सो रहा है लेकिन मैं उसे नहीं जगा सकता हूं जो सोने का नाटक कर रहा है।"

10 दिसंबर को मामले की ‌‌फिर सुनवाई होगी।

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