आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जज ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के स्थानांतरण के मामले में कॉलेजियम में पारदर्शिता की मांग की

Update: 2020-12-31 03:30 GMT

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, आंध्र प्रदेश उच्‍च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्‍च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा दिए गए प्रस्तावों के खिलाफ महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ एक आदेश पारित किया है।

ज‌स्ट‌िस राकेश कुमार ने बुधवार को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के स्‍थानांतरण प्रस्ताव और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र के बीच संबंध स्‍थापित करने का प्रयास किया है।

यह कहते हुए कि वह कॉलेजियम के प्रस्तावों पर कोई सवाल नहीं उठा रहे थे, जस्टिस कुमार ने कहा है कि उच्‍च न्यायालय के न्यायधीशों या मुख्य न्यायधीशों का स्थानांतरण "कुछ पारदर्शिता प्रतिबिंबित कर सकता है"।

"आखिरकार, वे भी माननीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्यों के जैसे ही संवैधानिक पद संभाल रहे हैं"।

जस्टिस कुमार ने कहा कि सीजेआई को "अनौपचारिक पत्र" भेजकर, मुख्यमंत्री ने "मौजूदा क्षण में अनुचित लाभ पाने में सफलता पाई है"।

जस्टिस कुमार ने कहा, "लोग अंदाजा लगा सकते हैं कि माननीय मुख्यमंत्री के तथाकथित पत्र के बाद, दो मुख्य न्यायाधीशों, तेलंगाना उच्‍च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और आंध्र प्रदेश उच्‍च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया गया है।"

जस्टिस कुमार ने कहा है कि स्थानांतरण के कारण जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों में बाधा आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमों की निगरानी का उच्‍च न्यायलयों को निर्देश दिया है।

जस्टिस कुमार ने कहा, "उक्त स्थानांतरण से, स्वाभाविक रूप से, श्री वाईएसजगन मोहन रेड्डी, वर्तमान मुख्यमंत्री और अन्य के खिलाफ हैदराबाद स्थिति सीबीआई के लिए विशेष जज की अदालत में लंबित मामलों में देरी हो सकती है और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा WP(Civil)No.699 of 2016 मामले में निगरानी कुछ समय के लिए बाधित हो सकती है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण से, आंध्र प्रदेश सरकार अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए बाध्य है।"

जज को हटाने के आवेदन को किया खारिज

जस्टिस राकेश कुमार ने ये टिप्पणियां राज्य सरकार द्वारा जज को एक खंडपीठ से हटाने के लिए किए गए एक आवेदन को खारिज करते हुए की।

अतिरिक्त महाधिवक्ता सुधाकर रेड्डी ने आवेदन में आरोप लगाया था कि जस्टिस कुमार ने सरकार के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रुख अपनाया है। आवेदन में आरोप लगाया गया था कि जस्टिस कुमार ने पिछली सुनवाई में एक मौखिक अवलोकन किया कि "हम घोषणा करेंगे कि राज्य में संवैधानिक मशीनरी टूट गई है और केंद्र सरकार को प्रशासन सौंप दिया जाए।"

इस आरोप के समर्थन में आवेदन के साथ कुछ समाचार पत्रों की रिपोर्टों का संलग्न किया गया था, जिसमें बताया गया था कि जज ने ऐसी मौखिक टिप्पणी की थी। हालांकि, जस्टिस कुमार ने ऐसी किसी भी टिप्पणी करने से इनकार किया और कहा कि वह सरकार द्वारा सार्वजनिक भूमि की नीलामी निजी बोलीदाताओं को करने के कदम की वैधता पर संदेह व्यक्त कर रहे थे।

उन्होंने पूर्वाग्रह के आरोपों को खारिज कर दिया और खुद को हटाने की सरकार की मांग पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। आवेदन को खारिज करते हुए जस्टिस राकेश कुमार ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ तीखी टिप्पणी की।

उल्लेखनीय है कि जस्टिस राकेश कुमार उस पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसने आंध्र प्रदेश में 'संवैधानिक मशीनरी के टूटने' की जांच करने की मांग की थी। उस मामले में राज्य सरकार द्वारा की गई अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। स्थगन आदेश जारी करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा था कि वह हाईकोर्ट की कार्यवाही से 'परेशान' हैं।

जगन के पत्र के तुरंत बाद किया गया स्थानांतरण प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 14 दिसंबर, 2020 को तेलंगाना और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों राघवेंद्र सिंह चौहान और जेके माहेश्वरी के स्थानांतरण की सिफारिश की थी। जस्टिस चौहान को उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया गया है, जबकि जस्टिस जेके माहेश्वरी को सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया गया था।

जस्टिस कुमार ने आदेश में कहा है कि ये प्रस्ताव मुख्यमंत्री द्वारा सीजेआई को भेजे गए अवमाननापूर्ण ​​पत्र के सार्वजनिक होने के बाद किए गए थे। जज ने कहा कि कोलेजियम द्वारा स्थानांतरण प्रस्ताव देने के बाद, सीजे माहेश्वरी ने सरकार के तीन महत्वपूर्ण निर्णयों के ख‌िलाफ दायरा मामलों की सुनवाई रोक दी, जिसे जस्टिस कुमार ने "मुख्यमंत्री के दिमाग" की उपज कहा।

आदेश में कहा गया है, "(सीजे माहेश्वरी) के स्थानांतरण के बाद, इस बात की पूरी संभावना है कि बेंच के पुनर्गठन में कुछ समय लग सकता है और उसके बाद उन मामलों में शून्य से सुनवाई शुरू हो सकती है।"

"मैं माननीय मुख्य न्यायाधीशों... के स्थानांतरण पर कोई सवाल नहीं उठा रहा हूं, लेकिन, उसी समय, मैं उस यह अवलोकन करने के लिए विवश हूं हाईकोर्ट के जज या इसके चीफ जस्टिस के ट्रांसफर में कुछ पारदर्शिता हो सकती है और यह न्याय प्रशासन में बेहतरी या उत्थान के लिए हो सकता है। आखिरकार, वे माननीय सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम के सदस्य की तरह संवैधानिक पद संभाल रहे हैं।"

यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारत के अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि जगन मोहन रेड्डी का पत्र "अपमानजनक" प्रकृ‌ति का था। हालांकि, एजी ने जगन के खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।

मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणियां

जस्टिस राकेश कुमार को पिछले साल पटना हाईकोर्ट से स्थानांतरित किया गया था। तब उन्होंने अपने सहयोगियों के खिलाफ महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ एक आदेश पारित किया। फिलहाल उन्होंने मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ कुछ तीखी टिप्पण‌ियां की हैं।

जज ने अपने आदेश में कहा है कि उन्हें गूगल में "कैंदी नंबर 6093" की खोज करने के बाद, मुख्यमंत्री के बारे में "परेशान करने वाली जानकारी" मिली। इसके बाद उन्होंने जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित खबरों के स्क्रीनशॉट दिखाए ‌थे।

उन्होंने कहा, "आंध्र प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री के, दिनांक 06.10.2020 को पत्र के प्रकाशन तक, मुझे उनके बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। लेकिन, इसके तुरंत बाद, मैं उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो गया। इसके बाद मुझे बताया गया कि मैं गूगल पर जाऊं और केवल "कैदी नंबर 6093" टाइप करूं, तो मुझे अधिक जानकारी मिल सकती है। मैंने वही काम किया और उसके बाद मुझे बहुत परेशान करने वाली जानकारी मिली। कुछ ऐसी जानकारियों मैंने डाउनलोड की है।"

इसके बाद आदेश में जगन रेड्डी के खिलाफ लंबित 30 आपराधिक मामलों की चर्चा की गई। उल्लेखनीय है कि पुलिस ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए कई मामलों को बंद कर दिया है। जज ने कहा, यह दिखता है कि "पुलिस का मुखिया, अर्थात्, पुलिस महानिदेशक, आंध्र प्रदेश सरकार, राज्य के कानून के अनुसार, नहीं बल्‍कि सरकार के हुक्म के अनुसार काम कर रहा है"।

"क्या यह व्यवस्था के साथ खिलवाड़ नहीं है?", जज ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोजन में देरी का जिक्र करते हुए पूछा।

"मुझे अच्छी तरह से पता है कि यहां की गई मेरी कई टिप्पणियां तकनीकी के अनुरूप नहीं हो सकती हैं, लेकिन मेरी सेवानिवृत्ति कगार, वर्तमान कार्यवाही में आंध्र प्रदेश सरकार ने मेरी निष्पक्षता पर सवाल उठाया है, अपनी रक्षा में, मैं उपरोक्त तथ्यों को रिकॉर्ड करने के लिए विवश हूं, जो रिकॉर्ड पर आधारित हैं और विवादित नहीं हो सकते। मेरा एकमात्र प्रयास कानून की गरिमा को बनाए रखना है।" 

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