एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी जमानत या अग्रिम जमानत के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकता: केरल हाईकोर्ट

Update: 2023-02-14 10:50 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोपी व्यक्ति जमानत के लिए सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकता।

जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ याचिकाकर्ता द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (पीओए) एक्ट की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया।

याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत देने के लिए एससी/एसटी (पीओए) एक्ट के तहत विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, विशेष अदालत ने इससे इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने बाद में एससी/एसटी एक्ट की धारा 14ए के तहत अपील दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे भी खारिज कर दिया गया।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष नई जमानत याचिका दायर की।

इस सवाल से निपटने के लिए कि क्या नए ज़मानत आवेदन पर विचार किया जा सकता है, अदालत ने इस प्रकार कहा,

एक्ट की धारा 14-ए(2) के अनुसार, यह विशेष रूप से प्रदान किया गया कि विशेष अदालत या विशेष अदालत द्वारा जमानत देने या इनकार करने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है। उक्त प्रावधान पूर्व में इस तथ्य को मानता है कि जमानत या अग्रिम जमानत देने या अस्वीकार करने की शक्ति विशेष न्यायालय के पास निहित है और हाईकोर्ट विशेष न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील पर विचार कर सकता है और सीधे जमानत आवेदनों से निपट नहीं सकता है।

एससी/एसटी (पीओए) एक्ट की धारा 14-ए (2) के तहत विशेष अदालत द्वारा जमानत देने या इनकार करने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है। अदालत ने कहा कि एससी/एसटी (पीओए) एक्ट विशेष कानून है और विशेष कानून सामान्य कानून पर प्रबल होगा।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि विशेष अदालत द्वारा जमानत के लिए आवेदन खारिज किए जाने के बाद अपील को हाईकोर्ट द्वारा भी खारिज कर दिया जाता है तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम की धारा 14-ए के तहत अपील खारिज करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।

अदालत ने कहा कि एक्ट के तहत हाईकोर्ट द्वारा नई जमानत अर्जी पर विचार नहीं किया जा सकता और याचिका के सुनवाई योग्य नहीं होने के कारण खारिज कर दिया।

केस टाइटल: सिजी बनाम केरल राज्य

साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 77/2023 

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