सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : जानिए कैसे रहा पिछला सप्ताह
किसी मध्यस्थता खंड का अस्तित्व अदालत को अनुबंध मामले में एक रिट याचिका पर सुनवाई करने से प्रतिबंधित नहीं करता है : सुप्रीम कोर्ट
किसी मध्यस्थता खंड का अस्तित्व अदालत को एक रिट याचिका पर सुनवाई करने से प्रतिबंधित नहीं करता है, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 मई 2021) को पारित एक फैसले में कहा। इस मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशंस लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका की अनुमति दी, जिसमें कार्यकारी अभियंता, उन्नाव यूपीपीटीसीएल द्वारा भवन और अन्य निर्माण कर्मचारी कल्याण अधिनियम, 1996 की धारा 3 की उपधारा (1) और (2), के साथ पढ़ते हुए निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर नियम, 1998, नियम 3 और नियम 4 (1), (2) (3) और (4) और भवन और अन्य निर्माण श्रमिकों (रोजगार और सेवा की स्थिति का विनियमन) अधिनियम, 1996 की धारा 2 (1) (डी), (जी) और (i) के तहत .2,60,68,814 / - के लिए लेबर सेस निकालने की अनुमति देने वाले निर्देशों को चुनौती दी गई थी।
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'सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग के लिए सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है': सीजेआई एनवी रमाना
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना ने गुरुवार को कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को लाइव-स्ट्रीम करने के प्रस्ताव पर सक्रिय रूप से विचार कर रहे हैं। सीजेआई रमाना ने ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की वर्चुअल सुनवाई के लिए पत्रकारों के लिए मोबाइल सुविधा शुरू करने के लिए आयोजित एक वर्चुअल समारोह में की। सीजेआई रमाना ने कहा कि, "सक्रिय रूप से कुछ न्यायालयों के लिए कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग पर विचार किया जा रहा है, लेकिन इसे शुरू करने से पहले सभी न्यायाधीशों से आम सहमति लेनी होगी।"
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अदालतें उचित मामलों में सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हाउस अरेस्ट का आदेश दे सकती हैं': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें उचित मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के तहत घर में नजरबंदी (हाउस अरेस्ट) का आदेश दे सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट हाउस अरेस्ट का आदेश देने के लिए उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति और आरोपियों के पहले व्यवहार, अपराध की प्रकृति, हिरासत के अन्य रूपों की आवश्यकता और हाउस अरेस्ट की शर्तों को लागू करने की क्षमता जैसे मानदंडों पर विचार कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि सजा के बाद के मामलों के संबंध में हाउस अरेस्ट को नियोजित करने के बारे में विचार करने के लिए विधायिका के लिए खुला है।
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मोटर दुर्घटना मुआवजा – 40 वर्ष से कम आयु के स्वरोजगार मृतक के मामले में भविष्य की संभावनाओं के मद में 40 प्रतिशत अधिक राशि प्राप्त करने का हक
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि मोटर दुर्घटना में मृत व्यक्ति यदि स्वरोजगार कर रहा हो और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो तो मोटर दुर्घटना मुआवजे का आकलन करते वक्त आय का 40 प्रतिशत हिस्सा भविष्य की संभावनाओं को ध्यान मे रखते हुए अतिरिक्त रूप से दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इस कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 'नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी , (2017) 16 एससीसी 680' मामले में स्पष्ट रूप से कहा है कि मोटर दुर्घटना में मृत व्यक्ति यदि स्वरोजगार कर रहा हो और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो तो मोटर दुर्घटना मुआवजे का आकलन करते वक्त आय का 40 प्रतिशत हिस्सा भविष्य की संभावनाओं को ध्यान मे रखते हुए अतिरिक्त रूप से दिया जाना चाहिए। इस मामले में मृतका स्व नियोजित थी और उसकी उम्र 37 वर्ष थी, इसलिए वह भविष्य की संभावनाओं के मद में 40 प्रतिशत अधिक राशि प्राप्त करने की हकदार है।"
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सिर्फ एक पक्ष की भाषा दिक्कत सीआरपीसी 406 के तहत किसी मामले को ट्रांसफर का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सीआरपीसी की धारा 406 के तहत किसी मामले को केवल इसलिए ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है क्योंकि पक्षकार उस अदालत की भाषा को नहीं समझता जिसके पास मामले की सुनवाई करने के लिए अधिकार क्षेत्र है। अदालत ने ये कहते हुए राजकुमार साबू द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका को खारिज कर दिया जिसने सेलम की कोर्ट में लंबित एक आपराधिक मामले को इसलिए दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी कि वह तमिल भाषा नहीं समझ पा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा में गौतम नवलखा की डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गौतम नवलखा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें भीमा कोरेगांव मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग की थी। नवलखा गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि की गणना करते हुए 2018 में अपनी गैरकानूनी हिरासत की 34 दिन की अवधि को शामिल करना चाहते थे। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए नवलखा की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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किसी गवाह द्वारा दिए गए सबूतों को सिर्फ इसलिए पूरी ठुकराया नहीं जा सकता क्योंकि यह अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी गवाह द्वारा दिए गए सबूतों को इस आधार पर पूरी तरह ठुकराया नहीं जा सकता है कि यह अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा, "तिल का ताड़ बनाने के लिए, प्राथमिक तौर पर कुछ तो मौजूद होना चाहिए। एक कानून की अदालत, इस तरह के भेद के प्रति सचेत रहना कर्तव्य है कि वह 'झूठ' से 'सत्य' का प्रसार करने के लिए बाध्य है और मामले में अतिशयोक्तिपूर्ण कथन से भूसे से अनाज के दाने की तरह इसे निकाल ले।"
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डाइंग डिक्लरेशन केवल तभी दोषसिद्धि का एक मात्र आधार माना जा सकता है, जब कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि यह सच एवं स्वैच्छिक है : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि कोर्ट को इस बात से अवश्य संतुष्ट होना चाहिए कि डाइंग डिक्लरेशन ( मृत्यु से पूर्व दिया गया बयान ) सच एवं स्वैच्छिक है और तभी इसे बगैर पुष्टि किये दोषसिद्धि का एक मात्र आधार बनाया जा सकता है। इस मुकदमे में कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या के अभियुक्त को ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किये जाने के आदेश को पलट दिया था और अभियुक्त को दोषी ठहराया था। अभियुक्त को दोषी करार दिये जाने के लिए हाईकोर्ट ने मृतक के डाइंग डिक्लरेशन पर भरोसा जताया था।