सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा में गौतम नवलखा की डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

12 May 2021 6:32 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा में गौतम नवलखा की डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गौतम नवलखा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें भीमा कोरेगांव मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग की थी।

    नवलखा गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि की गणना करते हुए 2018 में अपनी गैरकानूनी हिरासत की 34 दिन की अवधि को शामिल करना चाहते थे।

    जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए नवलखा की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    इस मामले में मुख्य दलील यह थी कि क्या 29 अगस्त से 1 अक्टूबर, 2018 के बीच नवलखा की गिरफ्तारी की 34 दिनों की अवधि, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के उद्देश्य से हिरासत की अवधि में शामिल की जा सकती है।

    उच्च न्यायालय ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए निर्धारित 90 दिनों की अवधि की गणना करते समय "गैरकानूनी हिरासत" में बिताया गया समय शामिल नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने आगे कहा कि 28 अगस्त, 2018 - 10 अक्टूबर, 2018 के बीच नवलखा ने घर में नजरबंदी के तौर पर हिरासत गुजारी थी, जिसका उनकी कुल हिरासत अवधि की गणना करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, खासकर गिरफ्तारी के बाद, मजिस्ट्रेट के ट्रांजिट रिमांड को दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध पाया था।

    अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2), मानती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत अधिकृत की गई है, और उस दिन से 90 दिन की अवधि का उपयोग डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए हिरासत की अवधि की गणना के लिए किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "हालांकि, एक बार मजिस्ट्रेट द्वारा प्राधिकृत हिरासत को अवैध घोषित कर दिया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप हिरासत की अवधि भी अवैध घोषित हो जाती है और उक्त अवधि (हाउस अरेस्ट कस्टडी) को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के अर्थ के भीतर अधिकृत हिरासत के तौर पर नहीं लिया जा सकता है।"

    महाराष्ट्र पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को हुई ' एल्गार परिषद 'और भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त, 2018 को नवलखा को गिरफ्तार किया था। सम्मेलन से जुड़े एक्टिविस्ट और शिक्षाविदों पर देशव्यापी कार्रवाई के माध्यम से, पुलिस ने एक बड़ी माओवादी साजिश का पर्दाफाश करने का दावा किया।

    बाद में मामला एनआईए को सौंप दिया गया था। अगस्त, 2018 में नवलखा की गिरफ्तारी और उसके बाद हाउस अरेस्ट को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया था। तब नवलखा ने सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, उसके बाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च 2020 को नवलखा को उनकी जमानत अर्जी खारिज करने के बाद तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। कोरोनावायरस महामारी के मद्देनज़र आत्मसमर्पण के विस्तार की उनकी याचिका भी खारिज कर दी गई। इसके बाद नवलखा ने पिछले साल 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण किया था।

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