सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (1 अगस्त, 2022 से 5 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
ईपीएफ पेंशनः ' पेंशन फंड में कोई घाटा नहीं ' , ईपीएफओ के वित्तीय बोझ के जवाब में पेंशनभोगियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
ईपीएफ पेंशन मामले की सुनवाई के तीसरे दिन, गुरुवार (4 अगस्त) को केरल के पेंशनभोगियों के वकील ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा प्रस्तुत बीमांकिक रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों की सत्यता पर सवाल उठाया, जिसमें बताया गया था कि 2018 के केरल हाईकोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन से पेंशन फंड में 15,28,519 करोड़ रुपये का शुद्ध बीमांकिक घाटा होगा। 2018 में, हाईकोर्ट ने कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 [2014 संशोधन योजना] को रद्द करते हुए 15,000 रुपये प्रति माह की सीमा से ऊपर के वेतन के अनुपात में पेंशन का भुगतान करने की अनुमति दी।
केस : ईपीएफओ बनाम सुनील कुमार और अन्य
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धारा 313 सीआरपीसी- सभी प्रतिकूल सबूतों को सवालों के रूप में रखा जाए; स्पष्टीकरण के सिर्फ एक अवसर पर सब अवसरों को एक साथ ना जोड़ा जाए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 313 सीआरपीसी के तहत किसी आरोपी की जांच करते समय, सभी प्रतिकूल सबूतों को सवालों के रूप में रखना होता है ताकि आरोपी को अपना बचाव व्यक्त करने और अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर मिल सके।
सीजेआई एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, "यदि सभी परिस्थितियों को एक साथ जोड़ दिया जाता है और आरोपी को खुद को समझाने का एक भी अवसर प्रदान किया जाता है, तो वह तर्कसंगत और समझदार स्पष्टीकरण देने में सक्षम नहीं हो सकता है।"
जय प्रकाश तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 658 | सीआरए 704/ 2018 | 4 अगस्त 2022 | सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली
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ईपीएफ पेंशन : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, ईपीएफओ से क्रॉस सब्सिडी और वित्तीय बोझ दिखाने के लिए सामग्री मांगी [ दूसरे दिन की सुनवाई]
ईपीएफ पेंशन मामले में सुनवाई के दूसरे दिन, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किए और वित्तीय बोझ दिखाने के लिए सामग्री मांगी, जो हाईकोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन पर बनेगा, जिसमें ऊपर की सीमा - रेखा के वेतन के अनुपात में पेंशन को अनुमति दी जाएगी।
पीठ ने संघ और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी पेंशन योजना के बीच अंतर के बारे में सामग्री दिखाने और दोनों फंडों के बीच क्रॉस-सब्सिडी से संबंधित लेखा विशेषज्ञों की विस्तृत रिपोर्ट दिखाने के लिए भी कहा। पीठ ने कहा कि पेंशन फंड पेश करते समय केंद्र के वित्तीय विशेषज्ञों ने क्रॉस-सब्सिडी के मुद्दे को ध्यान में रखा होगा। ईपीएफओ ने इस संबंध में रिपोर्ट पेश करने पर सहमति जताई।
केस : ईपीएफओ बनाम सुनील कुमार और अन्य
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केवल खंड में "मध्यस्थता" या "मध्यस्थ" शब्द का उपयोग करने से ही यह एक मध्यस्थता समझौता नहीं बन जाएगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक मध्यस्थता समझौते को विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के लिए पक्षों की ओर से एक दृढ़ संकल्प और दायित्व का खुलासा करना चाहिए। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि केवल किसी खंड में "मध्यस्थता" या "मध्यस्थ" शब्द का उपयोग करने से ही यह एक मध्यस्थता समझौता नहीं बन जाएगा, यदि यह मध्यस्थता करने के संदर्भ के लिए पक्षकारों की आगे या नई सहमति की आवश्यकता है या इसका विचार करता है।
महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम आईवीआरसीएल एएमआर ज्वाईंट वेंचर | 2022 लाइव लॉ (SC) 657 |सीए 4914/ 2022 | 25 जुलाई 2022 | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना
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हत्या का ट्रायल : सुप्रीम कोर्ट ने " निरंतर उकसावे के सिद्धांत" को लागू किया, दुर्व्यवहार के इतिहास पर " उकसावे" की गंभीरता का आंकलन किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 300 आईपीसी के अपवाद 1 के उद्देश्य के लिए, पिछले उकसावे के कृत्यों या शब्दों के आलोक में अंतिम उकसावे पर विचार किया जाना चाहिए, जो इतना गंभीर हो कि आरोपी आत्म-नियंत्रण खो दे।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह सिद्धांत तत्काल या अंतिम उकसावे के कृत्य, शब्दों या हावभाव की आवश्यकता को समाप्त नहीं करता है। इसके अलावा, यह बचाव उपलब्ध नहीं होगा यदि किसी विचार या योजना का सबूत है क्योंकि वे सोचे समझे और पूर्व नियोजित तैयारी को प्रतिबिंबित करते हैं।
दौवरम निर्मलकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 650 |सीआरए 1124/2022 | 2 अगस्त 2022 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी
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5 साल से अधिक समय तक लीगल फिल्ड से असंबद्ध नौकरी करने वाले लॉ ग्रेजुएट्स को लीगल पेशे में आने के लिए फिर से एआईबीई पास करना होगा: बीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने कहा कि लॉ ग्रेजुएट्स जो 5 साल से अधिक समय तक रोजगार में हैं, जिनका लीगल या न्यायिक मामलों से कोई संबंध नहीं है, और कानूनी पेशे में फिर से शामिल होना चाहते हैं, उन्हें फिर से एआईबीई (AIBE) पास करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में बीसीआई ने कहा, "लॉ ग्रेजुएट्स जो 5 साल से अधिक समय तक रोजगार में हैं, जिनका लीगल या न्यायिक मामलों से कोई संबंध नहीं है, और कानूनी पेशे में फिर से शामिल होना चाहते हैं, उन्हें फिर से एआईबीई (AIBE) पास करना होगा।"
केस टाइटल: बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम ट्विंकल राहुल मंगोनकर एंड अन्य। सिविल अपील संख्या 816-817 ऑफ 2022
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लॉ ग्रेजुएट को वकील के रूप में अस्थायी नामांकन के साथ अन्य नौकरी की अनुमति दी जा सकती है, अगर वे अंडरटेकिंग दें कि AIBE पास करने के 6 माह के भीतर नौकरी छोड़ देंगे : सुप्रीम कोर्ट में बीसीआई ने कहा
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने प्रस्ताव पारित किया कि लॉ ग्रेजुएट को वकील के रूप में अस्थायी नामांकन के साथ अन्य नौकरी की अनुमति दी जा सकती है, अगर वे अंडरटेकिंग दें कि अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) पास करने के 6 माह के भीतर नौकरी छोड़ देंगे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत इस आशय का प्रस्ताव सांविधिक निकाय द्वारा पारित किया गया है। इसमें इस सुझाव को स्वीकार किया गया कि अन्य रोजगार में लगे व्यक्तियों को अस्थायी रूप से एडवोकेट के रूप में नामांकन करने की अनुमति दी जा सकती है।
केस टाइटल: बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम ट्विंकल राहुल मंगोनकर और अन्य। 2022 की सिविल अपील नंबर 816-817
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राज्यों को डिजिटल डीआईएन सिस्टम लागू करने की सलाह: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जीएसटी परिषद को निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जीएसटी परिषद को अप्रत्यक्ष कर प्रशासन में दस्तावेज़ पहचान संख्या (Document Identification Number) की इलेक्ट्रॉनिक (डिजिटल) पीढ़ी की प्रणाली के कार्यान्वयन के संबंध में संबंधित राज्यों को सलाह/निर्देश/सिफारिशें जारी करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि यह प्रणाली, जो पहले से ही कर्नाटक और केरल राज्यों द्वारा लागू की जा रही है, व्यापक जनहित में होगी और सुशासन को बढ़ावा देगी। यह अप्रत्यक्ष कर प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगा, जो कुशल शासन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
प्रदीप गोयल बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (एससी) 654 | डब्ल्यूपी (सी) 320 ऑफ 2022 | 18 जुलाई 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न
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ईपीएफ पेंशन केस : भविष्य निधि सदस्य स्वचालित तरीके से ईपीएस के पात्र नहीं बन जाते, ईपीएफओ ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ( ईपीएफओ) ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कर्मचारी भविष्य निधि योजना ( ईपीएफएस) और कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) की संरचना पूरी तरह से अलग है।
ईपीएफओ ने सीनियर एडवोकेट आर्यमा सुंदरम के माध्यम से जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखा। पीठ कर्मचारियों को उनके वेतन के अनुपात में ईपीएफ पेंशन के भुगतान से संबंधित मामले में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा दायर अपील याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी।
केस : ईपीएफओ बनाम सुनील कुमार और अन्य
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सीआरपीसी की धारा 482 - अंतरिम राहत/जांच पर रोक केवल दुर्लभतम मामलों में ही लगाई जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि कोई हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, केवल दुर्लभतम मामलों में ही जांच या किसी अन्य अंतरिम राहत पर रोक लगा सकता है।
पीठ ने इस प्रकार गुजरात हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को खारिज करते हुए संविधान के अनुच्छेद 226 के साथ पठित सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिकाओं पर विचार के दौरान आगे की आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाते हुए अंतरिम राहत प्रदान की और परिणामस्वरूप आगे की जांच पर रोक लगा दी।
सिद्धार्थ मुकेश भंडारी बनाम गुजरात सरकार, 2022 लाइव लॉ (एससी) 653 | सीआरए 1044-1046/2022 | 2 अगस्त 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न
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एनआई एक्ट की धारा 143 ए के तहत आरोपी को अंतरिम मुआवजा जमा करने में विफल पर शिकायतकर्ता की ओर से गवाहों से जिरह करने से रोका नहीं जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 143 ए के तहत किसी आरोपी को अंतरिम मुआवजा जमा करने में विफल रहने के लिए शिकायतकर्ता की ओर से गवाहों से जिरह करने के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "अधिकार को बंद करने का ऐसा कोई भी आदेश अदालत को दी गई शक्तियों के भीतर नहीं होगा और वास्तव में, शक्ति के स्वीकार्य अभ्यास से परे होगा।"
नूर मोहम्मद बनाम खुर्रम पाशा | 2022 लाइव लॉ (SC) 652 | एसएलपी (सीआरएल) 2872/ 2022 | 2 अगस्त 2022 | जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया
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धारा 141 एनआई एक्ट : ये कथन देने की जरूरत नहीं है कि निदेशक कंपनी के संचालन के लिए जिम्मेदार है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह कथन जरूरी नहीं है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 141 के तहत प्रबंध निदेशक या संयुक्त प्रबंध निदेशक किसी कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें आरोपी बनाया जाया जाना चाहिए।
अदालत ने दोहराया कि किसी कंपनी के स्वतंत्र और गैर-कार्यकारी निदेशकों को इल इस बयान के आधार पर आरोपित करना कि वे कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं और बिना किसी और चीज के, धारा 141 एनआई अधिनियम की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं।
सुनीता पलिता बनाम पंचमी स्टोन क्वारी 2022 लाइव लॉ (SC) 647 |एसएलपी (सीआरएल) 10396/ 2019 | 1 अगस्त 2022 | जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी