सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (28 मार्च, 2022 से एक अप्रैल, 2022 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
आईपीसी की धारा 149 के तहत आरोप तय न करने से आरोपी पर किसी भी तरह के पूर्वाग्रह के अभाव में दोष सिद्धि समाप्त नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के तहत आरोप तय न करने से आरोपी पर किसी भी तरह के पूर्वाग्रह के अभाव में दोष सिद्धि समाप्त नहीं होगी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, यदि धारा की सामग्री स्पष्ट या तय किए गए आरोप में निहित हैं तो उसके संबंध में इस तथ्य के बावजूद दोषसिद्धि बरकरार रखी जा सकती है कि उक्त धारा का उल्लेख नहीं किया गया है।
मामले का विवरणः उत्तर प्रदेश राज्य बनाम सुभाष @ पप्पू | 2022 लाइव लॉ ( SC) 336 | 2022 की सीआरए 436 | 1 अप्रैल 2022
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मामले की वापसी का आदेश स्वाभाविक तौर पर पारित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले को वाापस भेजने का आदेश स्वाभाविक तौर पर पारित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि जहां दोनों पक्षों ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य पेश किये हैं, अपीलीय कोर्ट को मामले को निचली अदालत या ट्रिब्यूनल में भेजने के बजाय योग्यता के आधार पर फैसला करना होगा।
इस मामले में, एक भूमि न्यायाधिकरण द्वारा जारी एक नोटिस को कर्नाटक हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भूमि मालिकों द्वारा दायर एक रिट याचिका स्वीकार करते हुए रद्द कर दिया था। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को निरस्त करते हुए मामले को भूमि संबंधी ट्रिब्यूनल में भेज दिया। इसलिए विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या एकल न्यायाधीश के आदेश को पलटने, भूमि न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने और मामले को भूमि न्यायाधिकरण को भेजने का खंडपीठ का फैसला न्यायोचित था?
मामले का विवरण: नादकेरप्पा (मृत) बनाम पिल्लम्मा (मृत) | 2022 लाइव लॉ (एससी) 332 | सीए 7657-7658/2017 | 31 मार्च 2022
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अनुच्छेद 14 वसीयत में लागू नहीं होता है; वसीयत की प्रमाणिकता बंटवारे के उचित और न्यायसंगत होने पर आधारित नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वसीयत में प्राकृतिक वारिसों में से किसी एक को वसीयत से बाहर करना अपने आप में यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि वहां परिस्थितियां संदिग्ध हैं।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने टिप्पणी की, "वसीयत के निष्पादन की वास्तविकता की सराहना करने के मामले में, न्यायालय के पास यह देखने के लिए कोई जगह नहीं है कि क्या वसीयतकर्ता द्वारा किया गया बंटवारा उसके सभी बच्चों के लिए उचित और न्यायसंगत था। अदालत एक वसीयत की तैयारी में अनुच्छेद 14 को लागू नहीं करता है।"
मामले का विवरण: स्वर्णलता बनाम कलावती | 2022 लाइव लॉ (SC) 328 | 2022 की सीए 1565 | 30 मार्च 2022
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किसी को भी कोर्ट द्वारा पारित गलत आदेश का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि किसी को भी कोर्ट द्वारा पारित गलत आदेश का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसे बाद में उच्च फोरम/कोर्ट द्वारा पलट कर दिया गया था। इस मामले में, हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा पारित आदेश के अनुसार रिट याचिकाकर्ताओं (सामान्य नर्सिंग प्रशिक्षण के लिए आवेदकों) को कुछ अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया था, जिसे बाद में डिवीजन बेंच ने पलट दिया था।
अपील की अनुमति देते हुए, डिवीजन बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य मूल रिट याचिकाकर्ताओं को उनके प्रशिक्षण की अवधि के दौरान भुगतान की गई अतिरिक्त राशि को आसान समान किश्तों में उन्हें अनुमत छुट्टी की अवधि के रूप में वसूल करने के लिए स्वतंत्र होगा। इस निर्देश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
मेखा राम बनाम राजस्थान राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 324 | सीए 2229-2234 ऑफ 2022 | 29 मार्च 2022
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अनुच्छेद 226 - हाईकोर्ट को रिट याचिका में उठाए गए आधारों/मुद्दों पर विचार करना होता है और तर्कयुक्त आदेश पारित करना होता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिट याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों/आधारों का निस्तारण करना और उसके बाद एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करना अदालत का कर्तव्य है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की टीम ने कहा, "जब संविधान हाईकोर्ट को राहत देने की शक्ति प्रदान करता है तो उचित मामलों में ऐसी राहत देना कोर्ट का कर्तव्य बन जाता है और यदि पर्याप्त कारणों के बिना राहत से इनकार कर दिया जाता है तो अदालतें अपना कर्तव्य निभाने में विफल हो जाएंगी।"
विशाल अश्विन पटेल बनाम सहायक आयकर आयुक्त सर्कल 25(3) | 2022 लाइव लॉ (एससी) 322 | सीए 2200 ऑफ 2022 | 28 मार्च 2022
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केवल अनुबंध का उल्लंघन करने भर से धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि अनुबंध का उल्लंघन करने भर से धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि केवल अनुबंध का उल्लंघन अपने आप में एक अपराध नहीं है और हर्जाने के सिविल दायित्व को जन्म देता है।
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, "ऐसे मामले में भी जहां आरोपी की ओर से अपना वादा निभाने में विफलता के के आरोप लगाए जाते हैं, वादा करने के समय सदोष इरादे (culpable intention) की अनुपस्थिति में आईपीसी की धारा 420 के तहत कोई अपराध किया गया नहीं कहा जा सकता है।"
विजय कुमार घई बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 305 | CrA 463 OF 2022 | 22 March 2022
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धारा 188 सीआरपीसी - अगर भारत में अपराध का एक हिस्सा किया गया हो तो तो मंजूरी की आवश्यकता नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर भारत में अपराध का एक हिस्सा किया गया है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 188 को आकर्षित नहीं किया जाएगा। जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पामिडीघंतम श्री नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि जब पूरा अपराध भारत के बाहर किया जाता है तो धारा आकर्षित होती है; मंजूरी देने पर ऐसे अपराध की जांच या मुकदमा भारत में चलेगा।
मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोषमुक्ति को उलट दिया और आरोपी को आईपीसी की धारा 363, 366-बी, 370(4) और 506 और पॉक्सो की धारा 8 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया। आरोपी ने कथित तौर पर नेपाल की रहने वाली एक नाबालिग लड़की को शोषण के लिए भारत लाया था।
सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 321 | CrA 852 OF 2018 | 24 March 2022