धारा 188 सीआरपीसी - अगर भारत में अपराध का एक हिस्सा किया गया हो तो तो मंजूरी की आवश्यकता नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

28 March 2022 9:20 AM GMT

  • धारा 188 सीआरपीसी - अगर भारत में अपराध का एक हिस्सा किया गया हो तो तो मंजूरी की आवश्यकता नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर भारत में अपराध का एक हिस्सा किया गया है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 188 को आकर्षित नहीं किया जाएगा।

    जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पामिडीघंतम श्री नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि जब पूरा अपराध भारत के बाहर किया जाता है तो धारा आकर्षित होती है; मंजूरी देने पर ऐसे अपराध की जांच या मुकदमा भारत में चलेगा।

    मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोषमुक्ति को उलट दिया और आरोपी को आईपीसी की धारा 363, 366-बी, 370(4) और 506 और पॉक्सो की धारा 8 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया। आरोपी ने कथित तौर पर नेपाल की रहने वाली एक नाबालिग लड़की को शोषण के लिए भारत लाया था।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में अभियुक्त की एक दलील यह थी कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 188 के तहत आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया गया था और उक्त धारा के संदर्भ में कोई मंजूरी रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई थी; और यह कि इस तरह की मंजूरी के अभाव में आरोपी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।

    धारा 188 सीआरपीसी के तहत, भले ही भारत के बाहर कोई अपराध किया गया हो, (ए) एक नागरिक द्वारा चाहे समुद्र में या कहीं और या (बी) भारत में पंजीकृत जहाज या विमान पर एक गैर-नागरिक द्वारा, अपराध पर भारत में मुकदमा चलाया जा सकता है बशर्ते उक्त धारा में उल्लिखित शर्तें संतुष्ट हों।

    रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि अपराध का एक हिस्सा भारत में किया गया था।

    कोर्ट ने कहा,

    जब पूरा अपराध भारत के बाहर किया जाता है तो धारा आकर्षित होती है; और मंजूरी प्रदान करने से ऐसे अपराध की भारत में जांच या ट्रायल किया जा सकेगा ... जैसा कि मामले के तथ्य और परिस्थितियों से संकेत मिलता है, अपराध का एक हिस्सा निश्चित रूप से इस देश की धरती पर किया गया था और इस तरह सामान्य सिद्धांतों के अनुसार भारतीय अदालतों द्वारा अपराध की जांच की जा सकती है और उसका ट्रायल किया जा सकता है। चूंकि अपराध पूरी तरह से भारत के बाहर नहीं किया गया था, इसलिए मामला संहिता की धारा 188 के दायरे में नहीं आएगा और धारा 188 के प्रावधानों द्वारा अनिवार्य किसी भी मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी।

    अपील को खारिज करते हुए, अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए आरोप सही तरीके से लागू किए गए और पूरी तरह से प्रमाणित हुए।

    मामला

    सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 321 | CrA 852 OF 2018 | 24 March 2022

    कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट औ जस्टिस पी श्री नरसिम्हा

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story