सुप्रीम कोर्ट ने MANUU के पूर्व चांसलर की प्रोफेसर के खिलाफ़ टिप्पणी के लिए मानहानि मामले के खिलाफ़ याचिका पर सुनवाई की
सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वे मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) के पूर्व चांसलर फिरोज बख्त अहमद से कहेंगे कि वह MANUU के स्कूल ऑफ़ मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म के डीन प्रोफेसर एहतेशाम अहमद खान के खिलाफ़ की गई "यौन शिकारी" टिप्पणी के संबंध में अख़बार में माफ़ीनामा प्रकाशित करें।
रिपोर्ट के अनुसार, फिरोज बख्त अहमद ने तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर प्रोफेसर एहतेशाम अहमद को यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट के "यौन उत्पीड़न और अपमान" के आरोपों के संबंध में यौन शिकारी कहा था।
पेशे से वकील एहतेशाम ने फिरोज बख्त के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का मामला दर्ज कराया। उनका आरोप है कि यूनिवर्सिटी की आंतरिक शिकायत समिति को उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, फिर भी यह टिप्पणी की गई।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस वी.के. विश्वनाथन की खंडपीठ तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ फिरोज बख्त द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें इन टिप्पणियों के संबंध में प्रोफेसर एहतेशाम द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
फिरोज बख्त के वकील ने न्यायालय को संक्षेप में बताया कि माफी का हलफनामा दायर किया गया। इस पर प्रोफेसर एहतेशाम के वकील ने जवाब दिया कि उन्हें माफ़ी पर आपत्ति है।
मामले को अगले सप्ताह के लिए स्थगित करने का निर्देश देते हुए जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की:
"हम उनसे अख़बारों में माफ़ीनामा प्रकाशित करने के लिए कहेंगे। हम उनसे बोल्ड अक्षरों में प्रकाशित करने के लिए कहेंगे।"
केस टाइटल: फिरोज बख्त अहमद बनाम तेलंगाना राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 9236/2024